गोमतीनगर स्थित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान का सभागार मंगलवार को हास्य नाटक ‘अरे शरीफ़ लोग’ के मंचन से ठहाकों से गूंज उठा। इस प्रस्तुति ने समाज के तथाकथित शरीफ़ चेहरे को आईना दिखाया। इसका आयोजन अग्रसर सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था ने दृश्यमान संस्थान के सहयोग से किया था। नाटक का निर्देशन संजय त्रिपाठी ने किया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक ‘अरे शरीफ़ लोग’ की कहानी आम जीवन से जुड़ी है, जो यह संदेश देती है कि जीवन केवल नियमों में बंधा नहीं है, बल्कि इसमें मुस्कान और शरारत भी आवश्यक है। यह समाज द्वारा ‘शरीफ़’ व्यक्ति की बनाई गई पारंपरिक परिभाषा पर व्यंग्य करता है, जहां सुबह दस से शाम पांच तक की नौकरी और सीधे-सादे तौर-तरीके ही मान्य हैं, और ऊंची आवाज में हंसना भी वर्जित है। नाटक इसी रूढ़िवादी सोच से परे जीवन के विविध रंगों को उजागर करता है। देसी अंदाज में मंच पर हास्य के रूप में प्रस्तुत किया नाटक की कहानी एक ‘शरीफ’ अपार्टमेंट के इर्द-गिर्द घूमती है। ग्राउंड फ्लोर पर पद्मा रहती हैं, जबकि पहले और दूसरे फ्लोर पर साहित्यकार जयंत दत्तवदी, प्रोफेसर पंडित जी, आयुर्वेदिक डॉक्टर एके और माध्यमिक स्कूल के मास्टर विश्रान्तलाल जैसे ‘शरीफ़’ लोग निवास करते हैं। ये सभी बाहर से भले ही सधे हुए दिखते हों, लेकिन भीतर से द्वंद्वों से भरे हैं। हर घर में होने वाले रोजमर्रा के बवालों से ही हास्य की धार निकलती है। यह नाटक दर्शाता है कि इंसान का अंतर्मन कब शरारती हो जाए, यह कहना मुश्किल है। ‘मेन विल बी मेन’ की अवधारणा को देसी अंदाज़ में मंच पर हास्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। नाटक के संवाद छोटे और व्यंग्य तीखे हैं, जो दर्शकों को स्थितियों से जोड़ते हैं और उन्हें हंसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करते हैं। इन कलाकारों ने मंच पर अभिनय किया नाटक में कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया। समीर बागची , अजय कुमार,माही, अभिषेक कुमार सिंह और अनामिका सिंह ने मुख्य भूमिका निभाई। कृष्ण कुमार पाण्डेय ने मकान मालिक की भूमिका निभाई, जबकि रिमझिम वर्मा ने स्वर दिया।
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