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अयोध्या में निलंबित CMS की रिपोर्ट पर DHO का ट्रांसफर:प्रशासनिक गलियारों में होम्योपैथी विभाग की मनमानी को लेकर कानाफूसी

अयोध्या के शांत प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों होम्योपैथी विभाग को लेकर ऐसा बवंडर उठ चुका है कि शासन की ‘पारदर्शिता’ पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। जहां एक ओर शासन ने कार्यवाहक जिला होम्योपैथिक अधिकारी डॉ. अजय कुमार पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाकर उन्हें सोनभद्र सम्बद्ध कर दिया गया। वहीं, दूसरी ओर जिस रिपोर्ट के आधार पर यह कार्रवाई हुई वह रिपोर्ट देने वाली अधिकारी डॉ. संगीता भाटिया खुद निलंबित थीं, और बिना किसी सक्षम आदेश के ‘स्वतः संज्ञान’ लेकर जांच कर रही थीं। वे निलंबन में ही सेवानिवृत्त हो गई और आरोप है कि सेवानिवृत्त के अंतिम दिनों में ही उन्होंने यह रिपोर्ट दी थी। दो खेमे में बंटा दिख रहा विभाग… दो खेमों में बंटा विभाग अयोध्या का होम्योपैथी विभाग इन दिनों गहरा विवादों में है। मामला केवल एक आदेश का नहीं, बल्कि उन घटनाओं की कड़ी का है जिसने पूरे विभाग को दो खेमों में बांट दिया है। अंदरूनी गुटबाजी, कुर्सी संघर्ष और पारदर्शिता पर उठ रहे सवालों ने प्रशासनिक साख को चुनौती दे दी है। ताला लगा ऑफिस, और बढ़ता तनाव पूरा विवाद तब भड़का जब 30 नवंबर 2024 को निलंबित मुख्य चिकित्सा अधीक्षक होम्योपैथी डॉ. संगीता भाटिया, हाईकोर्ट से राहत आदेश लेकर अपने कार्यालय पहुंचीं। लेकिन वहां ताला लगा मिला। ताला देखकर आक्रोशित डॉ. भाटिया सीधे दूसरे तल पर स्थित जिला होम्योपैथिक अधिकारी डॉ. अजय कुमार के कार्यालय में गईं और उनकी कुर्सी पर बैठकर आरोप लगाया कि बिना आदेश के ऑफिस सील कर दिया गया, शासन की अवहेलना हो रही है। डॉ. अजय का पक्ष अलग था। शासन से बहाली का कोई आदेश नहीं मिला था और निलंबित अधिकारी द्वारा कार्यालय एक निजी व्यक्ति से संचालित किए जाने की सूचना के चलते सुरक्षा कारणों से ताला लगाया गया था। यहीं से विवाद ने प्रशासनिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत रंग लेना शुरू किया। खरीद में भारी वित्तीय अनियमितताएं कर रहे इसी में अवधेश तिवारी नामक व्यक्ति ने 26 नवंबर 2024 को शिकायत दी—कि डॉ. अजय होम्योपैथी औषधियों की खरीद में भारी वित्तीय अनियमितताएं कर रहे हैं। यह शिकायत मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (डॉ. संगीता भाटिया) को भेजी गई। इसके बाद बिना किसी सक्षम आदेश के निलंबन की स्थिति में होने के बावजूद उन्होंने स्वयं “जांच अधिकारी” बनकर डॉ. अजय पर लगे आरोपों की जांच कर रिपोर्ट शासन को भेज दी। शासन ने इस रिपोर्ट को आधार बनाकर डॉ. अजय के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी। लेकिन यहीं कहानी पलटती है शासन के अपने दस्तावेज़ कहते हैं कि डॉ. संगीता भाटिया 23 अक्टूबर 2024 से निलंबित थीं।उन्हें जांच का आदेश किसी सक्षम अधिकारी ने नहीं दिया था। वह अपने पद पर उस समय पदेन कार्यरत ही नहीं थीं। इसलिए उनकी भेजी जांच “संज्ञान योग्य नहीं” है। फिर भी, उसी रिपोर्ट पर डॉ. अजय का स्थानांतरण कर दिया गया। डॉ. अजय को आदेश जारी होते ही सोनभद्र से सम्बद्ध कर दिया गया।आरोप था कि 50% तक अधिक भुगतान,कमीशन लेने का संदेह, टेंडर/कोटेशन में अनियमितता।गैर-अनुमोदित दवा खरीद,बिना मांगपत्र के एसी की आपूर्ति और ओपीडी कम करना। लेकिन भीतर खाने की फुसफुसाहट कुछ और कहती है।अयोध्या में लंबे समय से दो गुट भिड़े हुए हैं। स्थानांतरण उसी गुटीय लेन देन का परिणाम है। साफ दिख रहा है कि यह मामला सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं, ‘कुर्सी युद्ध’ भी है। कुर्सी पर बैठने से लेकर ताला लगाने तक इस विवाद ने होम्योपैथी विभाग को प्रशासनिक साख काे लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। शासन की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ खड़ा हुआ है कि निलंबित अधिकारी की विवादित रिपोर्ट पर ही कार्रवाई क्यों?क्या यह सिर्फ कार्रवाई थी या फिर किसी गुट की जीत सुनिश्चित करने की कोशिश है। डॉ. संगीता भाटिया को जांच का कोई आदेश जारी नहीं डॉ. अजय कुमार का आरोप स्पष्ट है कि मेरे खिलाफ जिस रिपोर्ट पर कार्रवाई की जा रही है, वह एक निलंबित अधिकारी की है। डॉ. संगीता भाटिया को जांच का कोई आदेश जारी नहीं किया गया था। निलंबन अवधि में की गई उनकी जांच को शासन ने स्वयं अवैध और असंज्ञेय माना है।” उनका कहना है कि “मेरे साथ अन्याय हो रहा है। यह शासन की पारदर्शिता और प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। मैंने 11.अप्रैल.2025 को पूर्ण बिंदुवार स्पष्टीकरण शासन को दे दिया है। इसी तरह की दवाओं की खरीद पूरे प्रदेश में होती है। जब ब्रांडेड दवाएं खरीदी गई जो मरीजों को फायदा करें तो यह आरोप लगाया गया। यह पूरा मामला अव्यवस्था का नमूना बना हुआ है अयोध्या का होम्योपैथी विभाग आज प्रशासनिक अखाड़ा बन चुका है। ताला-कुर्सी विवाद से लेकर निलंबन, जांच, तबादला और विभागीय कार्रवाई हर कदम सवालों से भरा है। कौन सही है और किसने कुर्सी की लड़ाई में नियमों को तोड़ा मरोड़ा यह जांच तय करेगी। लेकिन एक बात साफ है यह मामला सिर्फ अनियमितता का नहीं, बल्कि निलंबित अधिकारी की विवादित जांच पर हुई कार्रवाई से उपजे अव्यवस्था का एक बड़ा नमूना है।


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