अयोध्या के मिल्कीपुर तहसील क्षेत्र स्थित सिरसिर ग्राम पंचायत का प्राचीन तीर्थ स्थल श्री आस्तिक मुनि महाराज धाम पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहा है। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा कराए जा रहे इस नवनिर्माण कार्य में तेजी देखी जा रही है। धाम 84 कोसी परिक्रमा मार्ग से जुड़ा हुआ है, जिसका विकासकार्य भी समान गति से प्रगति पर है। मंदिर के पुजारी सबल किशोर मिश्रा ने बताया कि मंदिर का निर्माण कार्य सुचारू रूप से किया जा रहा है।कुछ कार्य अभी शेष हैं, जिन्हें पूरा होते ही संपूर्ण परियोजना पूर्ण हो जाएगी। उन्होंने कहा कि नवनिर्माण से श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी और इस आस्था स्थल के महत्व को और बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय बुजुर्ग बृज किशोर मिश्रा के अनुसार, श्री आस्तिक मुनि आश्रम सैकड़ों वर्षों पुराना है। यहां सर्पदंश से पीड़ित लोग श्रद्धा से आते हैं और जन्मेजय कुंड में स्नान कर मंदिर में प्रसाद चढ़ाते हैं। मान्यता है कि आस्तिक मुनि की कृपा से पीड़ित व्यक्ति ठीक होकर लौटते हैं। यह स्थान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।वर्ष में दो बार यहां विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। धाम में स्थित जन्मेजय कुंड राणिक कथाओं से जुड़ा एक पवित्र स्थल है। महाभारत काल से संबंधित यह कुंड पांडव वंशज राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इसी स्थल पर जनमेजय ने नागों के विनाश के उद्देश्य से सर्प यज्ञ आरंभ किया था। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि जब यह यज्ञ भयंकर रूप ले चुका था और सभी नाग आहुति बन रहे थे, तब आस्तिक मुनि ने अपनी विद्वता और मधुर वाणी से यज्ञ को रुकवा दिया। ऋषि जरत्कारु और नागों की बहन मनसा देवी के पुत्र आस्तिक मुनि ने तक्षक नाग सहित सभी सर्पों का जीवन बचाया। इसी घटना के कारण यह स्थल“करुणा और संरक्षण”का प्रतीक माना जाता है। जन्मेजय कुंड को पापकषय और शांति प्रदान करने वाला स्थल माना जाता है। श्रद्धालु यहां स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं।कुंड के जल का महत्व धार्मिक मान्यता और आस्था से जुड़ा हुआ है, जिसके कारण यहां वर्षभर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है।
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