‘चीन के नेताओं के पास में कॉमन सेंस नहीं है। वे तानाशाह प्रवृत्ति के लोग हैं। चीन, भारत और तिब्बत के साथ में पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह बात दुनिया अब समझने लगी है। चीन ने 75 साल पहले हमारे देश पर कब्जा कर लिया था। हम रिफ्यूजी हो गए। एक दिन ऐसा जरूर आएगा, जब तिब्बत आजाद होगा। हम हथियार नहीं उठाएंगे, क्योंकि धर्म इसकी इजाजत नहीं देता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता दलाईलामा का व्यावहारिक और शांति पूर्ण मार्ग अपनाकर देश को आजाद कराने के लिए काम कर रहे हैं।’ ये बातें तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेनपा त्सेरिंग ने कहीं। वे लखनऊ आए हैं। दैनिक भास्कर ने उनसे बातचीत की। उन्होंने कहा- दुनिया में प्रॉब्लम बहुत हैं, लेकिन इसका जाल चीन है। यूक्रेन वॉर में चीन सपोर्ट कर रहा है। अमेरिका टैरिफ के लिए सिर्फ भारत को टारगेट कर रहा है। पेनपा ने और क्या-क्या कहा… पढ़िए बातचीत के मुख्य अंश… सवाल : तिब्बत कैसे आजाद होगा ? जवाब : ऐतिहासिक रूप से तिब्बत आजाद देश था। अभी की रियल्टी को देखते हुए आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा मध्यम मार्ग (व्यावहारिक और शांतिपूर्ण) से इसके लिए काम कर रहे हैं। मौजूदा स्थित यह है कि चाइना के लोगों ने तिब्बत पर कब्जा किया है। नाम और काम में तिब्बत को आजादी मिलनी चाहिए। यह चीन से बात करके होगा। हम लोगों से लड़ना नहीं चाहते हैं। यह हमारे बौद्ध धर्म के खिलाफ है। हमारे लिए भारत या नाटो लड़ने नहीं जा रहा है। यह हकीकत भी हम समझते हैं। हमारा मानना है कि अभी चीन के नेता के पास में कॉमन सेंस नहीं है। चीन का मेन कंसर्न स्वतंत्रता है, लेकिन हम सिर्फ मध्यम मार्ग अपना रहे। चीन सेपरेटिस्ट (अलगाववादी काम) करता रहता है। सवाल : अगला दलाई लामा कौन होगा? यह कौन तय करेगा? जवाब : चीन सरकार धर्म पर विश्वास नहीं करती है। वह कैसे धर्म को लागू करेगी? वह इस पर कैसे काम करेगी? वह पुनर्विश्वास पर कैसे काम करेगी? चीन ने पंचेन लामा को गायब कर दिया है। पता नहीं वह जिंदा हैं कि नहीं। हम लोगों को पता नहीं है। अब चीन के सरकार के लोग तिब्बत में अधिकतर समय गुजारते हैं। चीन दलाई लामा चुनने की तैयारी कर रहा है, लेकिन इससे चुनने का अधिकार सिर्फ हमारा है। चीन सिर्फ सिरदर्द बन रहा है। प्रश्न: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने भारत के हथियारों को लेकर प्रोपेगैंडा फैलाया? क्या कहेंगे? उत्तर : दुनिया में प्राब्लम बहुत है, लेकिन इसका जाल चीन है। यूरोप के लोग भी मानते हैं। अभी रूस के चलते समस्या है। यूक्रेन वॉर को चीन सपोर्ट कर रहा है। वह चीन का तेल लेते हैं। हमको यह ऐतिहासिक रूप से समझना होगा, अगर लड़ाई में डिफेंस पार्ट्स रूस से भारत नहीं आएंगे, तो समस्या होगी। भारत सरकार यही कह रही है कि चीन भी तेल खरीदता है। यूरोप भी रूस से गैस लेता है, लेकिन अमेरिका सिर्फ भारत को टैरिफ के लिए टारगेट कर रहा है। सवाल : पाकिस्तान के बारे में क्या राय है? जवाब : पाकिस्तान चीन और अमेरिका के ऊपर डिपेंड है। चीन बोलता है कि हमारा और पाकिस्तान का रिश्ता आसमान से ऊंचा, समुद्र से गहरा और शहद से मीठा है। चीन इसलिए ऐसा करता है क्योंकि एशिया में अगर कोई चीन को टक्कर दे सकता है, तो वह सिर्फ भारत है। इंडिया बढ़ता है तो चीन को दिक्कत होती है। जियो पॉलिटिक्स में बातचीत से अगर रास्ता निकले तो बॉर्डर इश्यू खत्म हो जाएगा। अमेरिका इन क्षेत्रों में स्ट्रेटजिक मूव कर रहा है। दुनिया बदल रही है। इसमें ये भी देखना पड़ रहा है कि हमारी चीजों में कितना बदलेगा। चीन के चलते जापान अब अपनी सुरक्षा पर खर्च बढ़ा रहा है। सवाल : चाइना के लिए दो शब्द क्या कहेंगे? जवाब : चीन के ऊपर विश्वास करना मुश्किल है। वह खुद किसी के ऊपर विश्वास नहीं करता है। दुनिया को भी ऐसा ही समझता है। वह जो खुद सोचते हैं, वहीं दूसरे को ऊपर लगा देते हैं। दुनिया ने 2001 में वोट का मेंबर बनाया। ओलिंपिक ऑर्गेनाइज करने के लिए इन्हें हिस्सा बनाया। बावजूद इसके चीजें नहीं बदलीं। आज यूरोप से लेकर जहां भी जाते हैं, तो लोग सुनते हैं कि चाइना किस तरह से कम कर रहा है? तिब्बत अपनी परिस्थितियों को लेकर दुनिया को आगाह कर रहा है। भारत और तिब्बत की सुरक्षा और मुद्दे एक-दूसरे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। हम इन्हीं चीजों को लेकर देश दुनिया में जा रहे हैं। चीन कहां क्या कर रहा है, लोगों को पता ही नहीं चलता है। वह दुनिया के बंदरगाहों पर कब्जा कर रहा है। सवाल : भारत और तिब्बत के रिश्तों को आप कैसे देखते हैं? जवाब : भारत के साथ हमारा रिश्ता बहुत ही पारदर्शी है। ऐतिहासिक रूप से हमारा देश पर जब कब्जा किया गया, तब भारत को आजाद हुए तीन साल हुए थे। बुद्ध जयंती के समय जब दलाई लामा भारत आए तो चीन के प्रधानमंत्री तीन बार आए। वह पंडित नेहरू से बोलने आए थे कि दलाई लामा को शरण न दो, उन्हें वापस भेजो। पहली बार भारत ने तिब्बत रीजन ऑफ चाइना का दर्जा दिया। 1962 की लड़ाई के बाद चीन और भारत का रिश्ता बिखर गया। राजीव गांधी के समय डिप्लोमेटिक चीजें फिर से शुरू हुईं। उस समय तिब्बत इज ए ऑटोनॉमस रीजन ऑफ चाइना हुआ। ———————— ये खबर भी पढ़िए… लखनऊ में भागवत बोले- धर्म के लिए लड़ना होगा : योगी बोले- RSS सामाजिक समर्थन से चलता है, विदेशी फंडिंग से नहीं लखनऊ में RSS प्रमुख मोहन भागवत और सीएम योगी ने रविवार को दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव में मंच साझा किया। मोहन भागवत ने कहा- हमारा भारत पूरी दुनिया का विश्वगुरु था। दुनिया के लिए एक बड़ा सहारा था। कभी चक्रवर्ती सम्राट भी होते थे। हजारों साल तक आक्रमणकारियों के पैरों तले रौंदा गया। हमें गुलामी में जीना पड़ा। (पूरी खबर पढ़िए)
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