मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र के निधन से देश भर में शोक की लहर है। उनके प्रशंसकों और फिल्म जगत से जुड़े लोगों ने उनके योगदान को याद किया। धर्मेंद्र ने 65 वर्षों तक फिल्म उद्योग में सक्रिय रहकर एक लंबा और सफल करियर बनाया। फिल्म जगत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त, वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से बीकानेर से सांसद भी रहे। उनके निधन के बाद, मुजफ्फरनगर जनपद में आज शाम 4 बजे राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में बड़ी संख्या में लोगों ने पहुंचकर धर्मेंद्र के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की और फिल्म जगत में उनके योगदान को याद किया। यह कार्यक्रम जाट महासभा द्वारा आयोजित किया गया था। जाट महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर बालियान ने इस अवसर पर कहा कि धर्मेंद्र सर्व समाज के चहेते थे, लेकिन उन्हें इस बात पर विशेष गर्व है कि धर्मेंद्र ने उनके समाज में जन्म लिया। उन्होंने कहा कि ऐसे हीरे को खोना दुखद है। जब से मैंने होश संभाला है, तब से लेकर आज तक मैंने धर्मेंद्र जैसा हीरो नहीं देखा। उनका रौब, उनका ओरा ऐसा था कि फिल्मों में भी अगर वे किसी को चांटा मारते थे तो वह दर्शकों को बिल्कुल असली लगता था। कहते थे—“जाट के हाथ का थप्पड़ था, तगड़ा ही लगेगा।” यह प्रभाव उनकी रील लाइफ में भी था और रियल लाइफ में भी। वे 89 वर्ष के हो चुके थे और 15 दिन बाद 90 वर्ष के होने वाले थे। इस उम्र में भी काम कर रहे थे। लगातार 65 साल तक फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय रहना अपने आप में इतिहास है। शायद ही कोई दूसरा स्टार हो जिसने इतना लंबा करियर इतनी सक्रियता से जिया हो। समाज में उनकी सबसे बड़ी पहचान यह थी कि वे ग्रामीण संस्कृति और अपनी जड़ों से जुड़े रहे। आज भी अगर उनके गांव का कोई गरीब मजदूर उनसे मिलता था, तो वे उसे दिल से अपनाते थे। वे समझ लेते थे कि सामने वाला व्यक्ति सच में मिलने आया है या सिर्फ औपचारिकता निभा रहा है। उन्होंने कभी किसी को निराश नहीं किया। हमारा सौभाग्य रहा कि 2007 में तालकटोरा स्टेडियम में जाट महासभा के एक कार्यक्रम में हम उनसे मिले थे। इच्छा थी कि दोबारा भी मिलें, लेकिन समय ने मौका नहीं दिया। परमात्मा करे कि अगले जन्म में ऐसा अवसर मिल सके। धर्मेंद्र जी हमारे बीच नहीं रहे—यह दर्द भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन विधि का विधान है—जो आया है, उसे एक दिन जाना ही है। धर्मेंद्र जी का इतने साधारण तरीके से अंतिम संस्कार होना समझ से परे है। परिवार ने ऐसा क्यों किया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही। उनकी फैन फॉलोइंग बहुत बड़ी थी। वे पद्मभूषण सम्मानित थे। बीकानेर से सांसद भी रहे। ऐसे व्यक्ति को राजकीय सम्मान मिलना चाहिए था, लेकिन 2 बजे उनके निधन की खबर आई और 3 बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया। जरूर कोई कारण रहा होगा, पर हम समझ नहीं पा रहे। अगर समय मिलता तो हम जैसे हजारों-लाखों चाहने वाले मुंबई पहुंच जाते। यह परिवार का फैसला था, इसलिए हम अधिक टिप्पणी नहीं करते, लेकिन समाज में यह टीस जरूर रहेगी कि धर्मेंद्र जैसे दिग्गज को राजकीय सम्मान मिलना चाहिए था। देहाती फिल्म कलाकार विकास बालियान ने कहा भारतीय सिनेमा ने वह अदाकार खो दिया, जिसने पर्दे पर सच्चाई, जीवंतता और ईमानदारी का मतलब सिखाया। धर्मेंद्र वह कलाकार थे जो किसी भी किरदार में जान डाल देते थे। सिर्फ अभिनेता ही नहीं, एक बेहतरीन इंसान भी थे—सहयोगी, मददगार और बेमिसाल सादगी से भरे हुए। इतनी ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने अपनी धरातल वाली सोच कभी नहीं छोड़ी। वे शानदार पिता थे। पहली पत्नी से हुए बच्चों को भी उतना ही प्यार, सम्मान और अधिकार दिया, जितना दूसरी पत्नी हेमा मालिनी और उसके बच्चों को। उन्होंने अपनी बेटी विजेता के नाम पर प्रोडक्शन हाउस बनाया। अपने बेटे सनी देओल को बेताब और बॉबी देओल को बरसात जैसी फिल्में दीं। हेमा मालिनी से शादी में भी जो-जो शर्तें थीं, उन्हें उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया। परिवार की बातें कभी बाहर नहीं आने दीं। वे अच्छे भाई भी थे, अच्छे दोस्त भी। सलमान खान, राज बब्बर जैसे कलाकार आज भी उनसे भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। उनके फार्महाउस पर गांव से कोई आदमी आ जाता था, चाहे जानते हों या नहीं—चारपाई बिछती थी, खाने-पीने का इंतज़ाम होता था। मेरी इच्छा थी कि उनसे मिलकर एक फोटो खिंचवाऊं, लेकिन किस्मत में नहीं था। हाँ, तालकटोरा स्टेडियम में जाट महासभा के कार्यक्रम में उन्हें करीब से देखने का सौभाग्य मिला। दारा सिंह जी और ‘टिकट साहब’ के साथ मंच पर वे नाचे भी थे। उनकी कद-काठी मेरे पिता जैसी थी, इसलिए मुझे वे हमेशा पिता जैसे ही लगे। उनके जाने से ऐसा लग रहा है जैसे कोई अपना चला गया हो। भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा- धर्मेंद्र जी का निधन बड़ा नुकसान है। वे अपने समय के हीरो ही नहीं, आखिरी समय तक ग्रामीण भारत की पहचान बने रहे। हम भी एक बार उनसे मुंबई में मिले थे। वे गांव और खेती की बातें करते थे। हंसकर बताते थे कि—घरवाले कहते हैं कि जहां भी जाते हो, जमीन खरीद लेते हो। बोले—“मैं बीकानेर से सांसद बना तो वहां भी जमीन ले ली। गांव का आदमी कहीं भी रहे, उसे जमीन से ही सबसे ज्यादा प्यार रहता है।” मुंबई वाले फार्महाउस पर उन्होंने हमें लस्सी पिलाई, वहीं की उगाई सब्जी खिलाई। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत जी से उनकी मुलाकात का जिक्र किया। आंदोलन के दौरान वोट क्लब वाले पहले बड़े आंदोलन को याद किया। वे मुज़फ्फरनगर को ‘गुड़’ के नाम से याद रखते थे—कहते थे कि यहां का गुड़ पूरे देश में मशहूर है। तालकटोरा स्टेडियम में एक कार्यक्रम में जो फोटो वायरल हुआ था, उसमें धर्मेंद्र जी, दारा सिंह जी और टिकट साहब तीनों थे। दुख की बात है कि आज वे तीनों हमारे बीच नहीं रहे।
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