यूपी में मऊ की घोसी विधानसभा में 2023 में हुए उपचुनाव में जीते सपा विधायक सुधाकर सिंह का 67 साल की उम्र में निधन हो गया। 2022 में सपा के टिकट पर जीते दारा सिंह चौहान के पाला बदलने की वजह से यहां उपचुनाव हुआ था। अब सुधाकर सिंह के निधन के चलते एक बार फिर यहां उपचुनाव होगा। इसी के साथ घोसी विधानसभा के नाम पर एक ऐसा रिकॉर्ड भी दर्ज हो जाएगा, जहां एक ही टर्म में दो बार उपचुनाव कराना पड़ेगा। साथ ही 2027 विधानसभा चुनाव से पहले सरकार की भी परीक्षा हो जाएगी। इस विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट से यह संदेश भी निकलेगा कि प्रदेश में किसकी बयार बह रही। वहीं सबसे बड़ा सवाल यह है कि खाली हुई घोसी विधानसभा से कौन-कौन अपनी दावेदारी ठोकेगा? सुधाकर के छोटे बेटे पर दांव लगा सकते हैं अखिलेश घोसी विधायक सुधाकर सिंह के आकस्मिक निधन की खबर सुनकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी परिवार के बीच पहुंचे थे। वहां जिस तरीके से सुधाकर सिंह का बेटा उनके पैर पकड़ कर रोया, उससे संकेत मिलते हैं कि सपा यहां सहानुभूति बटोरने के लिए परिवार से ही किसी को प्रत्याशी बना सकती है। सुधाकर सिंह के परिवार में उनके अलावा छोटे बेटे सुजीत सिंह ही राजनीति में सक्रिय हैं। वह घोसी के 2 बार ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि सपा उन पर दांव लगा सकती है। वहीं, प्रत्याशी चयन करने में सबसे ज्यादा मुश्किल भाजपा को होगी। पिछली बार उपचुनाव हार चुके मंत्री दारा सिंह चौहान एमएलसी बन चुके हैं। ऐसे में शायद ही भाजपा फिर कोई जोखिम लेना चाहेगी। पिछली बार मंत्री रहते हुए उनकी हार से पार्टी और सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। भाजपा यहां से पूर्व विधायक विजय राजभर को प्रत्याशी बना सकती है। राजभर वोटर भी इस सीट पर निर्णायक संख्या में है। वहीं, दारा सिंह और इसी सीट से पूर्व विधायक रहे फागू चौहान के प्रभाव से चौहान वोटरों को भी वह साध सकती है। भाजपा के सामने उसके सहयोगी दल सुभासपा की ओर से पेंच फंसाया जा सकता है। लोकसभा में ओमप्रकाश राजभर के बेटे अनिल राजभर चुनाव हार गए थे। ऐसे में वह बेटे को विधायक बनाने के लिए इस सीट पर दावा कर सकते हैं। उनकी पार्टी का राजभर वोटरों में प्रभाव भी काफी माना जाता है। घोसी यूपी की पहली विधानसभा, जहां एक टर्म में दूसरी बार होगा उपचुनाव
सुधाकर सिंह अपने मुखर तेवर के लिए मशहूर थे। जन समस्याओं पर अधिकारियों से भी सीधे भिड़ जाते थे। इसी वजह से उनके खिलाफ कई मुकदमे भी दर्ज हुए। उनके असमय निधन के चलते घोसी विधानसभा पर फिर से 6 महीने के अंदर उपचुनाव होगा। इससे पहले घोसी सीट पर 2023 में दारा सिंह चौहान के इस्तीफा देने के चलते उपचुनाव हुआ था। आम चुनाव में अभी समय है। ऐसे में इस सीट पर जल्द ही उपचुनाव होगा। रिक्त सीट पर 6 महीने में उपचुनाव कराने का नियम है। मतलब, घोसी इसी के साथ एक प्रदेश में पहली ऐसी विधानसभा भी बन जाएगी, जहां एक ही टर्म में दो बार उप चुनाव होंगे। ऐसे में दावेदार अभी से एक्टिव हो गए हैं। घोसी विधानसभा से सबसे अधिक बार भाजपा-भाकपा जीते
1951 में यूपी में पहले चुनाव हुए। उस वक्त घोसी आजमगढ़ जिले का हिस्सा था। घोसी पूर्व और घोसी पश्चिम के नाम से 2 विधानसभा सीटें थीं। घोसी पूर्व से सोशलिस्ट पार्टी के राम कुमार और पश्चिम में यूपी रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के झारखंडे राय जीते थे। 1957 में घोसी सीट अस्तित्व में आई। तब से अब तक दो उपचुनाव समेत कुल 19 चुनाव हो चुके हैं। इस सीट पर शुरुआती दौर में 4 बार भाकपा माले, 4 बार भाजपा, 3-3 बार कांग्रेस और सपा, 2 बार बसपा और 1-1 बार जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल को जीत मिली है। फागू चौहान इस सीट से सबसे अधिक 5 बार जीत चुके हैं। वहीं झारखंडे राय इस सीट से 3 बार विधायक बने। इस सीट पर सिर्फ एक बार 1974 में मुस्लिम विधायक चुना गया था। कैसा है घोसी सीट का जातीय समीकरण?
इस सीट पर साढ़े 4 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिम और दलितों की है। 90 हजार से अधिक मुस्लिम मतदाता जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। 70 हजार से ज्यादा दलित मतदाता भी निर्णायक भूमिका में हैं। वहीं, करीब 56 हजार यादव, 52 हजार से ज्यादा राजभर और 46 हजार से अधिक चौहान मतदाता प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही घोसी सीट पर क्षत्रिय, निषाद, मौर्य, भूमिहार मतदाताओं की संख्या भी 10-10 हजार से ज्यादा है। 20 नवंबर को हुआ था सुधाकर सिंह का निधन
तीसरी बार विधायक चुने गए सुधाकर सिंह 17 नवंबर को दिल्ली में मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी के मैरिज रिसेप्शन में शामिल हुए थे। 18 नवंबर (मंगलवार रात) को सुधाकर सिंह दिल्ली से लौटे थे। उसी रात उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। उन्हें तुरंत लखनऊ के मेदांता में भर्ती कराया गया था। 20 नवंबर की सुबह इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया था। 17 साल की उम्र में जेपी आंदोलन में शामिल हुए थे
सुधाकर सिंह का जन्म 11 नवंबर, 1958 घोसी ब्लॉक क्षेत्र के भावनपुर गांव में हुआ था। वह छात्र राजनीति में सक्रिय थे। आपातकाल के दौरान 17 साल की उम्र में जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रांति आंदोलन में शामिल हुए और जेल गए। 1977-78 और 78-79 में सर्वोदय डिग्री कॉलेज घोसी के अध्यक्ष रहे। पहली बार 1996 में नत्थूपुर से सपा से विधायक बने। फिर 16 साल बाद 2012 में घोसी से विधायक बने। 2017 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी के फागू चौहान से हार गए। 2019 में घोसी विधायक फागू चौहान बिहार प्रदेश के राज्यपाल बन गए। उपचुनाव हुआ, तो सुधाकर सिंह भाजपा के विजय राजभर से 2000 वोटों से फिर हार गए। 2022 विधानसभा चुनाव में सपा ने घोसी से उनके नाम की घोषणा की। लेकिन, आखिरी समय में उनका पत्ता काट दिया। सपा ने भाजपा छोड़कर आए दारा सिंह चौहान को घोसी से प्रत्याशी बनाया। इसके बाद सुधाकर सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। हालांकि, उन्हें दारा सिंह ने हरा दिया। 2023 में दारा सिंह चौहान दोबारा भाजपा में शामिल हो गए और विधायकी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए उपचुनाव में सुधाकर सिंह ने दारा सिंह चौहान को हराया। यह जीत सपा के लिए बेहद अहम मानी गई। क्योंकि, घोसी सीट पर मुकाबला भाजपा-सपा की प्रतिष्ठा से जुड़ा था। ———————- ये खबर भी पढ़ें- यूपी में अखिलेश 50-60 सीट से ज्यादा नहीं देंगे, बिहार में दुर्गति के बाद राहुल मोल-भाव की हैसियत में नहीं बिहार चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति हुई। 61 सीटों पर चुनाव में उतरी कांग्रेस 10% स्ट्राइक रेट से 6 सीट ही जीत सकी। कांग्रेस की यह दुर्गति यूपी में सपा के लिए परेशानी का सबब बन गई है। सपा के एक बड़े नेता का दावा है कि पार्टी यूपी विधानसभा में 340 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। मतलब सहयोगियों के लिए वह अधिकतम 63 सीट ही छोड़ने को तैयार है। पढ़िए ये रिपोर्ट…
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