अमृतसर में 4 हजार से ज्यादा बच्चे बने लंगूर:लाल बाणा पहनकर 10 दिन निभाएंगे कठोर नियम, इस बार विदेश से कोई नहीं
पंजाब के अमृतसर में ऐतिहासिक दुर्ग्याणा तीर्थ के बड़े हनुमान मंदिर में आज 22 सितंबर से लंगूर मेला शुरू हो गया। यह मेला हर साल पहले नवरात्र से शुरू होता है। इस बार 4 हजार से ज्यादा बच्चों ने इसमें रजिस्ट्रेशन कराया है। मान्यता है कि अगर निसंतान दंपती बड़े हनुमान मंदिर में संतान की कामना करते हैं तो उनकी इच्छा पूरी होती है। संतान होने के बाद माता-पिता नवरात्र में अपने बच्चे को यहां लाते हैं और उसे 10 दिन तक लंगूर का बाणा पहनाकर बजरंगबली का स्वरूप बनाते हैं। लंगूर बने बच्चों को नवरात्र के दौरान कई कठोर नियमों का पालन करना होता है। दशहरे की शाम रावण दहन के बाद, अगले दिन सुबह ये बच्चे बड़े हनुमान मंदिर में माथा टेककर अपना चोला उतारते हैं। मेले के दौरान पूरे दुर्ग्याणा मंदिर परिसर में लाल गोटेदार कपड़े, सिर पर शंकु जैसी टोपी और हाथ में छोटी छड़ी लिए छोटे-छोटे बच्चे नजर आते हैं। लोग इन्हें हनुमानजी का रूप मानकर आशीर्वाद लेते हैं। इस बार मेले पर पंजाब में आई बाढ़ का असर भी दिखा। पिछले साल की तुलना में श्रद्धालुओं की संख्या कम रही और इस बार विदेश से कोई बच्चा लंगूर बनने नहीं आया। मंदिर प्रांगण में निकलती है वानर सेना
लंगूर मेले की असली रौनक शाम को दिखती है, जब बच्चों की वानर सेना मंदिर प्रांगण में निकलती है। इस दौरान कई लड़के हनुमान, सुग्रीव, अंगद या दूसरों का रूप धरकर झांकियां निकालते हैं। लंगूर बने इन बच्चों की उछल-कूद और डमरू की थाप के बीच जयकारों से पूरा इलाका गूंज उठता है। इन झांकियों को देखने के लिए बच्चों के साथ बुजुर्ग और महिलाएं न केवल मंदिर पहुंचती हैं बल्कि घंटों खड़े होकर उनका इंतजार भी करते हैं। बजरंग बली यहां विश्राम मुद्रा में
दुर्ग्याणा के बड़ा हनुमान मंदिर की दूसरी खासियत है यहां की बजरंग बली की प्रतिमा। सामान्यतः: मंदिरों में भगवान हनुमान खड़े या वीर मुद्रा में नजर आते हैं लेकिन अमृतसर के इस बड़ा हनुमान मंदिर में बजरंग बली विश्राम मुद्रा में विराजमान हैं। लोगों की आस्था है कि बजरंग बली यहां भक्तों की थकान और दुख हर लेते हैं। कहा जाता है कि ये बड़ा हनुमान मंदिर रामायण काल से है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ करने के बाद जो घोड़ा छोड़ा था उसे लव-कुश ने यहीं रोका था। जब हनुमानजी घोड़े को छुड़वाने पहुंचे तो लव-कुश ने उन्हें बंदी बना लिया और दुर्ग्याणा तीर्थ स्थित वट वृक्ष से बांध दिया। उसके बाद भगवान श्रीराम खुद यहां पहुंचे और उनका लव-कुश से युद्ध हुआ। उस युद्ध के बाद जब बजरंग बली बंधनमुक्त हुए तो श्रीराम ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जिस जगह वह अपनी संतान से मिले हैं, वहां अगर कोई भी संतान प्राप्ति की कामना करेगा, तो वह पूरी होगी। पूरा माहौल जयकारों से गूंज उठता
बड़ा हनुमान मंदिर के पुजारी मेघनाथ शास्त्री बताते हैं-‘लंगूर मेले की परंपरा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अनुशासन और आत्मबल का पाठ है। बच्चे जब लंगूर बनते हैं तो उनके परिवार भी कठोर नियमों का पालन करते हैं। यह सामूहिक साधना पीढ़ियों से चली आ रही है। दशहरे की रात रावण और मेघनाद के पुतलों पर ये नन्हे लंगूर तीर चलाते हैं तो पूरा माहौल जयकारों से गूंज उठता है। अगले दिन सुबह वे अपना चोला उतारते हैं। लंगूर मेले की तस्वीरें..
Source: देश | दैनिक भास्कर
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