सरकारी स्कूल का पता-श्मशान घाट का बरामदा:बच्चे नाला पार नहीं कर सकते थे, जहां चिता जलती है, वहीं लगा दी क्लास

ऊपर दिख रही तस्वीर राजसमंद के कुंभलगढ़ के मोरचा गांव की है। ये बच्चे किसी स्कूल नहीं बल्कि श्मशान घाट में बैठकर पढ़ रहे हैं। वजह फराट का भीलवाड़ा सरकारी स्कूल और बस्ती के बीच बहने वाला नाला। बारिश के दिनों में नाला पूरी वेग से बहता है। पूरे कुंभलगढ़ का बारिश का पानी इसी नाले में आता है। पुलिया नहीं होने के कारण बच्चे ही नहीं बड़े भी नाला पार करने से डरते हैं। बारिश के तीन महीनों में हर साल बच्चों की पढ़ाई बाधित होती थी। इस बार ऐसा ना हो, इसलिए स्कूल टीचर्स ने बस्ती के लोगों से बच्चों को यहीं पढ़ाने की बात की। बस्ती के लोगों ने इस पर सहमति और खुशी जताई, लेकिन अब समस्या सामने आई की बच्चों को पढ़ाए कहां? क्योंकि बस्ती के सभी घर कच्चे हैं। बारिश में पेड़ के नीचे बैठकर भी नहीं पढ़ा सकते। बस्ती के पास एक ही पक्का निर्माण नजर आया और वो था श्मशान घाट का बरामदा। बस्ती के लोगों ने सहमति दी और बच्चों की पढ़ाई यहीं शुरू हो गई। श्मशान में बच्चों को पढ़ाकर स्कूल में उपस्थिति लगाने जाते हैं टीचर
फराट का भीलवाड़ा स्कूल के टीचर दिनेश बैरवा ने बताया- पहले से पांचवीं तक के हमारे स्कूल में 38 बच्चों का नामांकन है। इनमें से 15 बच्चे मोरचा गांव के बड़े नाले के इधर और 23 बच्चे स्कूल की तरफ रहते हैं। स्कूल में मेरे अलावा नाथू सिंह बच्चों को पढ़ाते हैं। नाथू सिंह का घर मोरचा गांव और मेरा घर 5 किलोमीटर दूर धोरण गांव में है। मैं यहां साल 2018 से पोस्टेड हूं। तब से दोनों बारिश के तीन महीने में नाला पार कर स्कूल पहुंचते थे। नाले में पानी तेज होने पर भील बस्ती में रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पाते थे, जिसके कारण हम उन्हें घर-घर जाकर होमवर्क देते थे। इस वर्ष जैसे ही बारिश शुरू हुई हमने पहले ही बस्ती के लोगों से बच्चों को पढ़ाने को लेकर बात की। ग्रामीणों ने सहमति दी तो यहीं पढ़ाई शुरू कर दी। मैं श्मशान घाट के बरामदे में और टीचर नाथू सिंह स्कूल में पढ़ाने लगे। पढ़ाने के बाद स्कूल में उपस्थिति लगाकर आते हैं टीचर
दिनेश बैरवा ने बताया- सुबह साढ़े 7 बजे से 1 बजे तक यहां पढ़ाने के बाद मैं नाला पार कर आधा किलोमीटर दूर स्कूल पैदल जाता और अपनी और बच्चों की उपस्थिति लगाकर आता। 30 अगस्त को एसीबीईओ शंकर लाल नागदा निरीक्षण करने आए थे। यहां उन्होंने नाले का पानी देखकर निर्देश दिए कि जब तक पानी का बहाव तेज है, तब तक ना तो बच्चों को नाला पार करवाना है और ना ही हमको नाला पार करना है। इस कारण तीन दिन स्कूल की तीन दिन छुट्टी करनी पड़ी थी। पिछले एक महीने से पोषाहार की सप्लाई नहीं आ रही है। ऐसे में गांव की ही मीरा बाई वैष्णव सुबह साढ़े सात बजे श्मशान वाली जगह दूध लेकर आती हैं और बच्चों को देती हैं। तेज बारिश के दिनों में गांव के ही एक व्यक्ति के यहां पोषाहार बनवाया गया। संपर्क पोर्टल पर शिकायत की, कोई जवाब नहीं आया
टीचर दिनेश ने कहा- करीब 4 साल पहले संपर्क पोर्टल पर इस पूरे मामले की शिकायत डाली गई थी। पंचायत ने तो संबंधित विभाग को इसके बारे में लिख दिया, लेकिन वहां से अभी तक कोई जवाब नहीं आया। कोई विकल्प नहीं, इसलिए श्मशान चुना
बस्ती में रहने वाली आंगनबाड़ी सहायिका शशि बाई राजपूत ने बताया- मेरे बच्चे फराट का भीलवाड़ा स्कूल में पढ़ते हैं। पानी आने के कारण बच्चे नाला पार नहीं कर पाते हैं। इसके कारण शिक्षक श्मशान घाट के बरामदे में पढ़ाते हैं। शिक्षक से बात करने के बाद पूरे बस्ती के लोगों ने वहां पढ़ाने पर सहमति दी थी। बात रही डरने की तो बच्चे यहीं आसपास खेलते-कूदते बड़े हो रहे हैं। इसके कारण उनको यहां आने में कोई डर नहीं लगता है। CBEO ने कहा- पुलिया या सड़क ठीक बन जाए तो असुविधा नहीं होगी
स्कूल को लेकर सीबीईओ नूतन प्रकाश जोशी ने कहा- मामला हमारे संज्ञान में आया है। अगर पुलिया और रोड का काम सही पूरा हो जाता है तो बच्चों को आने-जाने में असुविधा नहीं होगी। मामले में उच्च अधिकारियों से भी बात करूंगा। —- राजस्थान में शिक्षा व्यवस्था की ये खबरें भी पढ़िए… राजस्थान स्कूल हादसा- टूटी छत, लटकते सरिये, दरकती दीवारें:350 साल पुराने जर्जर महल में भी पढ़ाई, नाम कटवाने पहुंचे पेरेंट्स सड़ चुके सिस्टम की तरह प्रदेश के 2 हजार (अलग-अलग रिपोर्ट के दावे) से ज्यादा स्कूलों की बिल्डिंग या तो कभी भी गिर सकती हैं, या उनकी हालत काफी खराब है। (पूरी खबर पढ़ें…) झोपड़ी-तबेलों में राजस्थान के स्कूल:गुरुजी के लिए बच्चे लाते हैं चारपाई; 40 डिग्री गर्मी में गोबर की बदबू के बीच पढ़ाई, सांपों का खतरा स्कूल चलें हम? लेकिन क्यों…. 40 डिग्री से ज्यादा गर्मी में खुले आसमान के बीच लू के थपेड़े खाने के लिए? गोबर की बदबू झेलने के लिए या कीड़ों की चपेट में आने के लिए? (पूरी खबर पढ़ें…)

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