कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद बड़ा खुलासा:राजस्थान के बड़े अफसर पर आरोप- नकली दवाओं की परिभाषा बदली, फार्मा कंपनियों को बचाया

सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली कफ सिरप पीने से 2 बच्चों की मौत के साथ ही तबीयत बिगड़ने के मामले सामने आ रहे हैं। जिस विभाग पर ऐसी एक्शन लेने का जिम्मा है, उसी के अधिकारी फार्मा कंपनियों को बचाने में जुटे हैं। राजस्थान के फूड सेफ्टी ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने नकली दवाइयां बनाते पकड़ी गई कंपनियों को बचाने के लिए एक्ट की परिभाषा ही बदल दी। पिछले 3 साल में नकली दवाईयों के आंकड़ों में फेरबदल कर उन्हें लोकसभा और नीति आयोग को भिजवा दिया। इतना ही नहीं, विधानसभा में भी यही गलत आंकड़े भेजने की तैयारी थी। लेकिन उससे पहले विभागीय जांच में पूरे मामले का खुलासा हो गया है। माना जा रहा है यह पूरा खेल 14-15 फार्मेसी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए रचा गया था। एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़िए- कैसे हुआ खेल? सरकारी हो या प्राइवेट, नकली और सब स्टैंडर्ड (अमानक) दवाएं बनाने वाली कंपनी पर शिकंजा कसने का काम फूड सेफ्टी एंड ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट का होता है। यह विभाग समय-समय पर दवाओं के सैंपल लेकर जांच करता है। गड़बड़ी पाए जाने पर ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट,1940 के अनुसार कार्रवाई की जाती है। इसके तहत एक-दो साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इस एक्ट में यह भी बताया गया है कि कौनसी दवा नकली दवा के दायरे में आएगी। लेकिन ड्रग कंट्रोलर (द्वितीय) राजाराम शर्मा ने नकली दवाओं को लेकर बने एक्ट की परिभाषा ही बदल दी। उन्होंने अपनी बनाई परिभाषा के आधार पर नकली दवाओं के आंकड़ों में हेरफेर कर दी। क्या है पूरा मामला? भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि लोकसभा ने इसी साल मार्च में राजस्थान में पकड़ी गई नकली दवाओं को लेकर डीजीसीए (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) से सूचना मांगी थी। जिस पर प्रदेश के फूड सेफ्टी एंड ड्रग डिपार्टमेंट ने डीजीसीए को 1 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2024 तक 55 दवाओं को नकली मानकर सूचना भेजी। इसके कुछ महीने बाद ही जून, 2025 को नीति आयोग ने राजस्थान में पकड़ी गई नकली दवाओं की जानकारी मांगी। ड्रग डिपार्टमेंट ने नीति आयोग को साल 1 जनवरी 2022 से लेकर जून 2025 तक 60 नकली दवाओं की सूचना भेजी। लेकिन हमारी पड़ताल में सामने आया कि नीति आयोग को नोटशीट (पीयूसी-4-सी) में जो आंकड़े भेजे गए थे, उसमें नकली दवाओं का आंकड़ा महज 39 था। वहीं, राजस्थान विधानसभा में लगे एक प्रश्न के जवाब के लिए यह जानकारी मांगी गई थी, लेकिन अचानक आंकड़ा कम हो गया। इसी टाइम पीरियड में ये डेटा सिर्फ 44 रह गया। अधिकारी ने विधानसभा को भी गुमराह करने की कोशिश करते हुए गलत जवाब भेजने की पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन फिर विभाग में हुई जांच के बाद जवाब भेजने से पहले ही रोक लिया गया। कैसे हुआ पूरा खेल? विधानसभा से आए प्रश्नों के जवाब पेश करने को लेकर ड्रग कंट्रोलर ने 19 सितंबर को मीटिंग रखी। इस मीटिंग में ड्रग कंट्रोलर प्रथम अजय फाटक, ड्रग कंट्रोलर (द्वितीय) राजाराम शर्मा, डिप्टी डायरेक्टर ड्रग टेस्टिंग लेबोरेट्री गिरीश कुमार, जूनियर लीगल ऑफिसर अजिता कालरा शामिल हुए। मीटिंग में मौजूद अधिकारियों ने अपनी जांच में पाया कि ड्रग कंट्रोलर (द्वितीय) राजाराम शर्मा ने ई-फाइल क्रमांक Spurious Drug List For CSS-09302-7677196 {Para 4/N} में कई जगह अपनी परिभाषा देते हुए टिप्पणी कर रखी थी। दरअसल, प्रदेश में नकली दवाओं को लेकर ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट,1940 बना हुआ है। इसमें स्पष्ट है कि किसी भी दवा में 3-4 या जितने भी सॉल्ट (रसायन) दर्शाए गए हैं, जांच में उनमें से एक भी नहीं मिलता है तो उस दवा को नकली ही माना जाएगा। लेकिन राजाराम शर्मा ने उनमें से कई नकली दवाओं के आगे टिप्पणी करते हुए हटा दिया। उसमें नई परिभाषा लिखी गई- इस गलत व्याख्या के कारण नकली दवाओं का आंकड़ा कम हो गया, जिसे विधानसभा को जवाब के तौर पर भेजा जाना था। शर्मा ने यह नोट सहायक औषधि नियंत्रक मुख्यालय (एडिशनल ड्रग कंट्रोलर) को भिजवा दिया। इसे विधानसभा में भेजी जाने वाली आधिकारिक नोटशीट में बदलने के निर्देश दिए। भास्कर के पास मीटिंग में सामने आए खेल का सबूत विधानसभा को भेजे जाने वाले रिप्लाई से पहले हुई बैठक में क्या-क्या हुआ? भास्कर के पास इसकी मिनट-टू-मिनट रिपोर्ट है। रिपोर्ट के अनुसार- ड्रग कंट्रोलर (द्वितीय) राजाराम शर्मा के निर्देश पर ही सहायक औषधि नियंत्रक ने नोटशीट के सभी आंकड़े बदले। इसी परिभाषा का इस्तेमाल करते हुए गलत आंकड़े नीति आयोग को भेजे गए थे। जिस समय मीटिंग चल रही थी इस मामले के आरोपी राजाराम शर्मा वहीं मौजूद थे। हालांकि राजाराम शर्मा ने डेटा की नोटशीट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर उसकी जिम्मेदारी लेने से भी इनकार कर दिया। कई कंपनियों को बचाया, अधिकारी बोले- कार्रवाई विचाराधीन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि राजाराम शर्मा ने फार्मा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए ही यह पूरा खेल रचा था। इस तरह उसने करीब 14-15 कंपनियोंं को कार्रवाई से बचाने की कोशिश की। उन सभी कंपनियों ने जो गड़बड़ी की, एक्ट के अनुसार उनके खिलाफ आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इस मामले में ड्रग कमिश्नर डॉ. टी शुभमंगला से हमने बात की। उन्होंने बताया कि मामला संज्ञान में आया है, अभी संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई विचाराधीन है। भास्कर टीम ने आरोपी ड्रग कंट्रोलर द्वितीय राजाराम शर्मा से भी उनका पक्ष जानने की कोशिश की। उन्होंने खुद पर लगे आरोपों पर कहा- अभी मैं छुटिट्यों पर बाहर हूं। छुट्टियों से लौटकर कर बता पाउंगा। …. दवा पीने से बच्चों की मौत से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… कफ-सिरप पीने के बाद नहीं उठा 2 साल का तीर्थराज:घरवालों का दावा- दवा देते ही अचेत हुआ, 4 दिन तक अस्पताल में भर्ती रहा भरतपुर में मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना में मिली खांसी की सिरप से 2 साल के बच्चे की मौत हो गई। घरवालों का दावा है कि वैर के सरकारी अस्पताल से खांसी की दवा ली थी। ​​​​​​पूरी खबर पढ़िए…

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