1 बाइक, 4 एक्सीडेंट, चारों बार अलग-अलग ड्राइवर:फर्जी FIR से क्लेम उठा रहे; भास्कर ने खोला पुलिस-दलालों का गठजोड़

पहला केस: तारीख 8 मई 2025। बालाघाट के वारासिवनी में एक एक्सीडेंट में बाइक सवार चिनेश सोनवाने की मौत हो गई। पुलिस ने एफआईआर में लिखा कि मोटरसाइकिल की सामने से आ रही गाड़ी से टक्कर हो गई थी। इसके बाद बीमा क्लेम की रकम के लिए दावा किया गया। जब जांच हुई तो पता चला कि चिनेश की मौत बाइक फिसलने से हुई थी। दूसरा केस: इसी तरह मैहर जिले के अमरपाटन में रहने वाले अखिलेश यादव सड़क दुर्घटना में घायल हो गए। अखिलेश ने रिपोर्ट लिखाई कि सामने से आ रही मोटरसाइकिल ने टक्कर मारी, लेकिन जांच में पाया गया कि बिजली का तार गले में फंसकर मोटरसाइकिल फिसल गई थी। ये केवल दो मामले नहीं है बल्कि मध्यप्रदेश में सड़क दुर्घटना बीमा क्लेम के ऐसे हजारों मामले हैं, जिनमें एफआईआर में कुछ और लिखा है और हकीकत कुछ और ही है। दरअसल, दुर्घटना बीमा क्लेम की रकम हासिल करने के लिए दलाल और पुलिस का एक पूरा रैकेट काम कर रहा है। फर्जी क्लेम के इस कारोबार में पीड़ित परिवार के साथ क्लेम की राशि का 50 फीसदी का सौदा होता है। पीड़ित परिवार भी अनजाने में पैसों के लालच के चलते कानून का उल्लंघन कर रहा है। इसे एक्सपोज करने के लिए भास्कर ने फर्जी क्लेम के ऐसे 10 मामलों की पड़ताल की। साथ ही भास्कर रिपोर्टर ने खुफिया कैमरे पर दलालों से बात कर फर्जी क्लेम दिलाने का सौदा किया। 5 पॉइंट्स में जानिए, कैसे चलता है कारोबार दो केस से समझिए, कैसे लिया जाता है फर्जी क्लेम केस 1 : एक बाइक-चार एक्सीडेंट, चारों बार अलग-अलग ड्राइवर
ये मामला इंदौर आरटीओ में रजिस्टर्ड एक बाइक जिसका नंबर एमपी09 वीसी 5039 से जुड़ा है। इंदौर के पालदा में रहने वाले राजकुमार ढोके ने साल 2017 में ये बाइक खरीदी थी। बाइक ने 2019 से लेकर 2023 तक चार एक्सीडेंट किए, जिसमें से तीन केस में मरने वाले और घायलों को क्लेम की राशि मिली। वहीं, चौथा केस कोर्ट में विचाराधीन है। तीनों केस में फर्जी क्लेम लिए गए थे। ये इस बात से साबित होता है कि हर केस में ड्राइवर अलग-अलग थे, यानी गाड़ी मालिक राजकुमार ढोके की बजाय इसे अलग-अलग जगह के रहने वाले लोगों ने चलाया। चारों एक्सीडेंट के बारे में सिलसिलेवार जानिए… 1. 14 जनवरी की घटना, 24 दिन बाद एफआईआर
इस बाइक से मौत का पहला मामला 7 फरवरी 2019 को किशनपुरा थाने में दर्ज हुआ था। ये केस 24 दिन बाद दर्ज हुआ जबकि जिस घटना का जिक्र किया, वो 14 जनवरी 2019 को हुई थी। पुलिस की एफआईआर के मुताबिक, इस एक्सीडेंट में योगेश पुत्र हेमराज की मौत हो गई। घटना के समय संतोष पिता नारायण गाड़ी चला रहा था। क्या हुआ: इस एक्सीडेंट का 14 लाख 2 हजार रुपए का क्लेम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से लिया गया। 2. 6 महीने बाद फिर एक्सीडेंट, एक की मौत
इसी गाड़ी के खिलाफ 6 महीने बाद इंदौर के देपालपुर थाने में केस दर्ज हुआ। जिसमें बताया गया कि गाड़ी को मनोज पुत्र बंशीलाल चला रहा था। उसने 28 अक्टूबर को राहुल नागर को टक्कर मारी, जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना की एफआईआर आठ दिन बाद 5 नवंबर 2019 को इंदौर के देपालपुर थाने में दर्ज हुई थी। क्या हुआ: इस एक्सीडेंट का क्लेम टाटा एआईजी कंपनी से लिया गया। 3. एक साल बाद नवंबर 2020 में तीसरा एक्सीडेंट
इसी गाड़ी ने एक साल बाद सितंबर 2020 में एक बार फिर एक्सीडेंट किया। तब गाड़ी को उमेश पुत्र श्रीराम पाटीदार चला रहा था। उसने शिवकन्या पत्नी सत्यनारायण की बाइक को टक्कर मारी, जिससे सिर पर गहरी चोट लगी और इलाज के दौरान शिवकन्या की मौत हो गई। इस मामले की एफआईआर 24 दिन बाद 9 नवंबर 2020 को पीथमपुर थाने में दर्ज हुई। क्या हुआ: इस एक्सीडेंट के लिए नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम लिया गया। मरने वाले को करीब 15 लाख रुपए और घायल को क्लेम की राशि के तौर पर 44 हजार रुपए मिले। केस 2: एक बाइक से तीन एक्सीडेंट, तीन मौतें और एक घायल
एक बाइक बड़वानी आरटीओ में रजिस्टर्ड है, जिसका नंबर एमपी 46 एमजी 7867 है। इस बाइक ने तीन एक्सीडेंट किए। इसमें तीन लोगों की मौत हो गई जबकि एक शख्स घायल हुआ था। बाइक के मालिक का नाम महेश यादव है, लेकिन तीनों केस में अलग-अलग लोगों ने एक्सीडेंट किए। तीनों मामलों के क्लेम पीड़ितों को मिल चुके हैं। बाइक से एक्सीडेंट के कुक्षी थाने में दो और सिलावद थाने में एक केस दर्ज हुआ है। नीचे दी गई स्लाइड से तीनों एक्सीडेंट के बारे में समझ सकते हैं… महेश यादव की कार ने भी बाइक सवार युवक की जान ली
महेश यादव की बाइक ही नहीं बल्कि मारूति वैन नंबर एमपी09 बीए 0116 ने भी दो बाइक सवारों को टक्कर मारी। इसमें भीमा नाम के युवक की मौत हो गई जबकि राजाराम घायल हो गया। ये घटना 11 मार्च 2021 को हुई और सात दिन बाद 18 मार्च 2021 को कुक्षी थाने में मामला दर्ज किया गया था। इस घटना में भी क्लेम पास हो चुका है। एक्सीडेंट करने वाले चालकों को सजा ही नहीं हुई
इन सभी मामलों में जिन लोगों ने एक्सीडेंट किए, उनमें से किसी को भी सजा नहीं हुई बल्कि इनकी टक्कर से सामने वाले शख्स की मौत हो गई थी। इन सभी पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ था। आखिर इन्हें सजा क्यों नहीं हुई, इसे लेकर भास्कर ने ऐसे केस देखने वाले एडवोकेट मुजीब खान से बात की। उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटना में होने वाली मौत के मामले में कोर्ट में दो केस चलते हैं। एक्सीडेंट क्लेम का केस अलग कोर्ट में चलता है और आरोपी को सजा दिलाने के लिए दूसरा केस ट्रायल कोर्ट में चलता है। ऐसे मामलों में देखा गया है कि जैसे ही कोर्ट से क्लेम पास होता है, दूसरे मामले में कुछ ही दिन बाद गवाह पलट जाते हैं। भास्कर रिपोर्टर ने खुद को एजेंट बताकर किया एक्सीडेंट क्लेम का सौदा एक्सीडेंट क्लेम के इस कारोबार में पुलिस, एजेंट, डॉक्टरों की पूरी मिलीभगत होती है। इसकी पड़ताल करने भास्कर रिपोर्टर ने इंदौर के एक एजेंट रमेश कुशवाह से मुलाकात की। खुफिया कैमरे पर कुशवाह ने खुलकर बात की। उसने बताया कि किस तरह से वह पीड़ित परिवार को पैसों का लालच देता है और कैसे थाने से लेकर क्लेम मिलने तक पूरी प्रक्रिया को मैनेज करता है। पढ़िए, बातचीत… रिपोर्टर: नमस्कार मैं राजीव जैन (बनावटी नाम) हूं। अब तक भोपाल में एजेंट था। आपसे मिलना है। एजेंट: ठीक है आ जाओ, कल मिल लेते हैं कोर्ट में। रिपोर्टर: कोर्ट के बजाय ऑफिस में मिलें तो कैसा रहेगा? एजेंट: ठीक है ऑफिस आ जाओ। ….दूसरे दिन रिपोर्टर एजेंट के ऑफिस पहुंचा। यहां औपचारिक बातचीत के बाद एजेंट सीधे मुद्दे की बात पर आया। एजेंट: आप कैसे काम करोगे? दुर्घटना के कौन से केस लेकर आओगे और कमीशन कितना लोगे? रिपोर्टर: भोपाल में मुझे सैलरी मिलती थी। यहां 15 से 20 फीसदी कमीशन पर कर लेंगे। जहां तक केस की बात है तो ज्ञात और अज्ञात दोनों लेकर आएंगे। अज्ञात पर 40 से 50 फीसदी कमीशन पर बात होती है। एजेंट: आप तो 50 प्रतिशत पर ही बात करना। रिपोर्टर: ठीक है। इस बातचीत के बाद रिपोर्टर ने एजेंट से फर्जी गाड़ी लगाने की बात की। एजेंट ने कहा कि एक गाड़ी थी, जिसे क्लेम के लिए लगा दिया है। रिपोर्टर ने उससे कहा कि गाड़ी है लेकिन यहां लाना मुश्किल है तो वह बोला- लेकर आओ। सबकुछ मैनेज कर लेंगे। एजेंट ने पीड़ित परिवार को सेट करने की भी तरकीब बताई
एजेंट ने रिपोर्टर को ये भी बताया कि पीड़ित परिवार को कैसे सेट करना है? उसने कहा- अज्ञात एक्सीडेंट के मामले में जो मृतक है, उसकी पूरी प्रोफाइल पता करना पड़ती है। जैसे वो कितना कमाता था, क्या करता था? रिपोर्टर ने बात को आगे बढ़ाने के लिए एक उदाहरण दिया। उसे बताया कि देपालपुर का एक मामला है। मृतक 45 हजार रुपए महीना कमाता था। इसका कितना क्लेम बनेगा? इतना सुनते ही एजेंट बोला- अरे इसमें तो तगड़ा क्लेम बनेगा। कोई दूसरा एजेंट न लपक ले, उससे पहले हम लोग वहां चले जाते हैं। रिपोर्टर ने कहा कि मैंने बात कर ली है, ये केस अपने ही पास आएगा। पीड़ित परिवार के साथ स्टाम्प पेपर पर होती है लिखा-पढ़ी
एजेंट ने ये भी बताया कि केस हाथ में लेने के बाद पीड़ित परिवार से स्टाम्प पर लिखा- पढ़ी भी जरूरी है। रिपोर्टर ने जब इसकी वजह पूछी तो एजेंट ने कहा कि बाद में विवाद होता है। कई बार पीड़ित पक्ष कमीशन देने से मुकर जाता है। उसने एक केस का जिक्र किया। उसने बताया कि एक मामले में क्लेम मिलने के बाद परिवार कोर्ट में ही कहने लगा कि 10 प्रतिशत का सौदा तय हुआ था, उसकी जगह 50 प्रतिशत ले रहे हैं। जबकि इस केस में हमने पीड़ित परिवार को 12 से 15 लाख की बजाय 25 लाख रुपए क्लेम दिलाया था। एजेंट ने रिपोर्टर के विजिटिंग कार्ड तक छपवाने के लिए कहा
इस बातचीत के दौरान रिपोर्टर ने एजेंट से कहा कि भोपाल में तो बीमा कंपनी के इन्वेस्टिगेशन अधिकारी भी सेट थे, एजेंट ने कहा कि यहां भी सब सेट है। उन्हें पता चलता है तो वो खुद ही आ जाते हैं। आप तो कल से ही काम शुरू करो। रिपोर्टर ने जब हामी भरी तो एजेंट बोला- आप निश्चिंत रहना, कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। जो भी मिलेगा, सब प्रेम से मिलेगा। एजेंट ने ये भी कहा कि कुछ फॉर्म चाहिए तो बताओ और मेरे विजिटिंग कार्ड ले जाओ। इसमें आपका नाम भी छपवा देंगे। रिपोर्टर ने भी कहा कि ठीक है कि मैं अपने कार्ड पर आपके नाम की सील लगा दूंगा। इस बातचीत के दूसरे ही दिन एजेंट ने रिपोर्टर को वॉट्सऐप पर एक्सीडेंट की जानकारी भेजना शुरू कर दी। अखबारों की कटिंग भेजी और जिन थाने के पुलिसकर्मियों से उसकी सेटिंग थी, उनके नंबर भी भेजे। अब जानिए, इससे आम आदमी को कैसे नुकसान 1. एक्सीडेंट करने वाले असली लोग बच जाते हैं
वरिष्ठ एडवोकेट संजय मेहरा एक उदाहरण देकर कहते हैं- मान लीजिए कि यदि किसी व्यक्ति की गाड़ी का इंश्योरेंस नहीं है। वह एक एक्सीडेंट करता है, जिसमें सामने वाले की मृत्यु हो जाती है तो एक्सीडेंट करने वाले को सजा होना तय है। इस स्थिति में एजेंट पुलिस के साथ मिलकर एक ऐसी गाड़ी से एक्सीडेंट होने की कहानी गढ़ते हैं, जिसका इंश्योरेंस होता है। पीड़ित परिवार से लेकर पुलिस वाले, डॉक्टर और गाड़ी मालिक से बाकायदा पूरा सौदा होता है। जिस असली गाड़ी से एक्सीडेंट होता है, वो तो पकड़ा ही नहीं जाता। 2. इंश्योरेंस प्रीमियम की राशि बढ़ रही
संजय मेहरा बताते हैं कि नई गाड़ी खरीदते समय हर कोई बीमा कराता है। ये तीन साल के लिए वैलिड होता है। उसके बाद वाहन मालिक को थर्ड पार्टी बीमा कराना होता है। मेहरा कहते हैं कि एक अनुमान के मुताबिक 50 फीसदी गाड़ियों का बीमा बाद में होता ही नहीं है। इसके बाद भी 100 में से 99 केस की एफआईआर में उसी गाड़ी से एक्सीडेंट होना बताया जाता है, जिसका इंश्योंरेस हो। बीमा कंपनियों को कोर्ट के आदेश के बाद क्लेम देना पड़ता है। इसका पूरा भार बीमा कंपनियों पर बढ़ रहा है। आम आदमी थर्ड पार्टी इंश्योरेंस करवा नहीं रहा है। ऐसे में कंपनियां अपना घाटा पूरा करने के लिए प्रीमियम की राशि बढ़ाती जा रही है। ये खबर भी पढ़ें… लाइसेंस के लिए फर्जी आधार, 3 कार्ड पर पता अलग-अलग न लर्निंग लाइसेंस बनवाने की जरूरत, न ड्राइविंग टेस्ट देने का झंझट। बस एक ऑनलाइन फोटो, कुछ फर्जी दस्तावेज…और आपके हाथ में होगा एक असली ड्राइविंग लाइसेंस, जो भारत के किसी भी कोने में मान्य होगा। मप्र के आरटीओ यानी क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय इसी तरह बिना जांच पड़ताल के फर्जी लाइसेंस जारी कर रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर…

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