जस्टिस नागरत्ना बोलीं- सरकारी संस्थाएं बेकार केस लड़ रहीं:देश का पैसा और कोर्ट का वक्त बर्बाद हो रहा, इससे बेहतर मध्यस्थता का रास्ता अपनाएं

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सरकारी संस्थाओं पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि वे ऐसे मुकदमे लड़ रही हैं, जिनमें जीत की कोई संभावना नहीं होती। इससे देश के संसाधनों की बर्बादी हो रही है और अदालतों का कीमती समय भी खराब हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट की जज 27-28 सितंबर को भुवनेश्वर में हुए राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 2025 में शामिल हुई थी। सत्र का विषय था- भारत में मध्यस्थता के इको-सिस्टम को मजबूत बनाना। जस्टिस नागरत्ना की स्पीच मंगलवार को सामने आई। इस दौरान उन्होंने कहा, अगर सरकारी संस्थाएं बार-बार ऐसे मुकदमे करती रहीं, तो देश का पैसा और न्यायिक समय दोनों ही गलत दिशा में खर्च होते रहेंगे। इससे बेहतर मध्यस्थता का रास्ता अपनाएं। जस्टिस नागरत्ना बोलीं- वकील मध्यस्थता का रास्ता अपनाएं जस्टिस नागरत्ना ने वकीलों से कहा कि वे खुद को “मानव संघर्षों के समाधान करने वाले” समझें और मध्यस्थता का रास्ता अपनाएं। उन्होंने कहा, मध्यस्थता न्याय का कमजोर तरीका नहीं है, बल्कि समय पर, आसान और समान न्याय का एक नया तरीका है। मध्यस्थता सिर्फ फैसला पाने का नहीं, बल्कि न्याय तक पहुंचने का भी एक तरीका है। सुझाव: ग्रीन मीडिएटर, पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप बनें जस्टिस नागरत्ना ने सुझाव दिया कि पर्यावरण विवादों के लिए ‘ग्रीन मीडिएटर’, स्वास्थ्य मामलों के लिए ‘पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप’, बौद्धिक संपदा अधिकारों के लिए डब्लूएआइ जैसी प्रणाली और स्टार्टअप एग्रीमेंट्स में मध्यस्थता क्लॉज शामिल किए जाने चाहिए। किशोर न्याय समिति की चेयरपर्सन के तौर पर कहा कि नाबालिगों के मामलों में पीड़ित और आरोपी के बीच मध्यस्थता होनी चाहिए। इसे ट्रॉमा मध्यस्थों द्वारा संचालित किया जाए। ———————————
भुवनेश्वर में हुए राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 2025 में सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि विवादों को सुलझाने के लिए सरकार को मध्यस्थता (Mediation) के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर सरकारी विभाग हर मामले में बार-बार अपील करते रहेंगे, चाहे जीत की संभावना न हो, तो इससे समय और संसाधन दोनों बर्बाद होंगे और अदालतों का कीमती समय भी खराब होगा। उन्होंने जोर दिया कि सरकारी विवाद समाधान व्यवस्था में “बड़े सुधार” की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अगर किसी सरकारी निकाय और ठेकेदार के बीच हुए मध्यस्थता फैसले को अधिकारी संदेह से देखेंगे, तो राज्य और निजी संस्थाओं के बीच मध्यस्थता की पूरी व्यवस्था कमजोर हो जाएगी।

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