पूर्व मंत्री रणजीत बोले- देवीलाल के नाम अभी बहुत वोट:चौटाला परिवार इकट्ठा न हुआ तो किसी का भविष्य नहीं; पोता-पोती की लॉचिंग होगी
उप प्रधानमंत्री रहे चौ. देवीलाल के बेटे एवं पूर्व बिजली मंत्री रणजीत सिंह चौटाला ने पूरे देवीलाल परिवार के एकजुट होने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि देवीलाल के नाम पर बहुत वोट हैं। परिवार एकजुट हो जाए तो एकतरफा इलेक्शन होगा। अलग-अलग फिरेंगे तो किसी का कोई भविष्य नहीं। कोई 5-4 सीट पर खड़े रहें। पिछली बार दुष्यंत चौटाला को 10 सीटें आई थी। इस बार इनेलो को 2 मिली और JJP जीरो हो गई। अगर सब इकट्ठे होते तो कुछ अलग नतीजे होते। दैनिक भास्कर एप से बातचीत में रणजीत चौटाला ने ये बातें कहीं। उनसे सवाल पूछा गया था कि आज देवीलाल परिवार की दो पार्टियां इनेलो व जजपा हैं, आप अलग से सक्रिय हो रहे हैं, ऐसे में किसका सियासी भविष्य ठीक मानते हैं? असल में इन दिनों 80 वर्षीय रणजीत चौटाला हरियाणा के अलग-अलग इलाकों में घूमकर वर्करों से मशविरा कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने साफ कहा था कि वो अब चौटाला परिवार को एकजुट करने का जिम्मा या ठेका नहीं ले सकते। आगे पढ़िए…भाजपा में लौटने से लेकर पोता-पोती की सियासी लॉन्चिंग पर क्या बोले रणजीत चौटाला सवाल : सक्रिय हो रहे हैं, क्या भाजपा में वापसी का इरादा है, वहां 75 पार उम्र वालों का क्या भविष्य है?
चौटाला : किसने कहा, भाजपा में जा रहा हूं। नहीं-नहीं, सब यहां बैठे थे, कोई चर्चा नहीं है। कौन बीजेपी में जाएगा, कौन कांग्रेस में जाएगा। कहां जाएगा। सबसे यहीं कह रहा हूं कि पूरी भीड़ इकट्ठी करूंगा, फिर देखेंगे। लोगों को जो मन होगा, वो देख कै तय करेंगे। सवाल: आपने हिसार लोकसभा सीट पर बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा, हार के क्या कारण रहे?
चौटाला : उसका मेन कारण था कि हमारे घर से ही दो बच्चे ( नैना-सुनैना) खड़े हो गए। नैना चौटाला जजपा तो सुनैना चौटाला इनेलो से आईं। पब्लिक में ये मैसेज गया कि देवीलाल एक ही परिवार से सभी हो गए। नहीं तो चौ. देवीलाल के प्रति लोगों में काफी आस्था थी और खूब चाहते हैं। बीजेपी का भी करंट था। मुझे 5 लाख 30 हजार वोट मिले। लोगों में ये चर्चाएं चली कि चौ. देवीलाल के एक ही घर से तीन लोग खड़े हो गए, किसको वोट डालें। लोग ये भी कहने लग गए कि ये बावले हो रहे हैं। ताऊ के नाम का क्यों नाश कर रहे हो। इसी वजह से कांग्रेस जीत गई। अगर परिवार वाले नहीं खड़े होते तो रणजीत सिंह नहीं हारता। चौ. देवीलाल के नाम से बहुत बड़ा वोटबैंक है। सवाल : कुलदीप बिश्नोई के आदमपुर हलके से कम वोट मिले, इसके पीछे क्या कारण रहा?
चौटाला : नहीं, मैं नहीं मानता कि कुलदीप बिश्नोई वजह हैं। क्योंकि वोट मोदी के नाम पर पड़ रहे थे। न रणजीत सिंह के नाम के थे और न ही कुलदीप के नाम के। अब किसने विरोध किया, किसने नहीं। अब उस बात का कुछ कहने का फायदा नहीं है। सबको पता है, जिसने भी किया, वो भी जानता है। ये जरूर है कि कांग्रेस से जयप्रकाश जेपी आया तो रिजल्ट और निकला, बृजेंद्र सिंह आते तो रिजल्ट कुछ और होता। सवाल : आपकी सक्रियता को अगले कुछ महीने बाद होने वाले राज्यसभा से जोड़कर देखा जा रहा है?
चौटाला : वो बीजेपी तय करेगी, किसको मनाएंगे-बनाएंगे। मैं तो अभी पार्टी में भी नहीं हूं। 2019 विधानसभा चुनाव भी निर्दलीय जीता था। अगले लोकसभा चुनाव से पहले मुझसे कहा गया कि आप बीजेपी ज्वॉइन करो। आपका टिकट पक्का है। मेरे पास आधा घंटा पहले मैसेज आया। मैंने बीजेपी ज्वॉइन कर ली। फिर लोकसभा का टिकट दिया। इज्जत मिली तो मैंने कह दिया कि मैं चुनाव लड़ूंगा। सवाल : जब भाजपा का वोटबैंक मानते हैं तो विधानसभा चुनाव बीजेपी से अलग होकर क्यों लड़ा?
चौटाला : देखिए। रानियां हलके में मुझे इनडिपेंडेंट होते हुए भी 36 हजार से ज्यादा वोट मिले। इनेलो के अर्जुन चौटाला 43,914 वोट पाकर विजेता बने। मैं पार्टी की तरफ से मैं कैंडिडेट होता तो 15 हजार वोट जुड़ते और डेरे के 10 हजार वोट भी मुझे मिलते। गोपाल कांडा अब कह रहे हैं कि ‘ऊपर’ से कहा गया था, इसलिए उन्होंने इनेलो की मदद की। अगर मैं भाजपा में होता तो वो वोट भी मिलते। कुल मिलाकर मुझे 72 हजार के पार वोट मिलते और मेरी लीड 50 हजार वोटों से होती। इनेलो का वोट बैंक कहीं नहीं था। डबवाली में मैंने दिग्विजय चौटाला की मदद की। पूरे हरियाणा में किसी भी सीट पर जजपा को 10 हजार से ज्यादा वोट नहीं मिले, लेकिन डबवाली में दिग्विजय को 35 हजार मिले, इसमें मेरा भी असर था। मैं पांच से छह हजार वोट से हारा और ऐलनाबाद में अभय चौटाला 15 हजार से हार गया। वो तो हम आपस में घर की लड़ाई में चुनाव हारे हैं। सवाल : आप जगह-जगह प्रोग्राम कर रहे हैं, तो क्या देवीलाल परिवार में तीसरी पार्टी बनने की उम्मीद है?
चौटाला : मैं जिलों में वर्कर मीटिंग करने जा रहा हूं। अभी गुरुग्राम में है, फिर नूंह में। फिर पलवल, भिवानी, जींद, फतेहाबाद में भी कार्यक्रम करूंगा। बड़ी रैली भी करूंगा। लोगों से तय करूंगा। जब वोट पब्लिक ने देने हैं तो पब्लिक ही तय करे। मेरे पिता भी पब्लिक ओपिनियन लेकर काम करते थे, मैं भी वैसे ही करूंगा। सवाल : चर्चा है कि पोते-पोती की सियासी लॉन्चिंग का प्लेटफार्म तैयार कर रहे हैं?
चौटाला : मैंने कहा ना, जनता से पूछकर करूंगा। जो जनता कहेगी, उसके आदेश को मानूंगा। अभी हाल ही में पोते सूर्यप्रकाश ने पंजाब यूनिवर्सिटी में बीबीए की है। फाइनल रिजल्ट में यूनिवर्सिटी में टॉप किया है। सूर्य प्रकाश चौटाला और गायत्री विजय लक्ष्मी चौटाला अपने दादा रणजीत सिंह के साथ चुनावी दौरे या रैली में सक्रिय दिखे हैं। 25 सितंबर को देवीलाल जयंती पर रणजीत चौटाला के घर में हुए कार्यक्रम में पोता-पोती ने भी वर्करों को संबोधित किया। सवाल : भाई के निधन पर हर रस्म में आगे रहे, देवीलाल जयंती सम्मान दिवस में तवज्जो क्यों नहीं मिली?
चौटाला : ओमप्रकाश मेरे बड़े भाई थे। आदरणीय थे। उनके निधन पर घर पर 12 दिन जो भी रस्में हुईं, मैं 24 घंटे मौजूद रहा। वो हमारा पारिवारिक-सामाजिक मामला था। राजनीति में मैं और ओमप्रकाश जी आमने-सामने चुनाव लड़े हैं। रही चौ. देवीलाल जयंती कार्यक्रम की तो चौ. देवीलाल के तो हर जगह स्टेच्यू हैं, हर किसी के दिलों में हैं। उनकी जयंती घर में मनाओ या बाहर मनाओ, कहीं भी मनाओ। कोई फर्क थोड़ी होता है। सवाल : बादल ने आपके व ओमप्रकाश चौटाला की दूरियां खत्म करने की कोशिश की, कहां कमी रही?
चौटाला : प्रकाश सिंह बादल साहब ने भी किया और चौधरी साहब (पिता देवीलाल) ने भी बहुत कोशिश की थी। पर आज ओमप्रकाश जी नहीं रहे। उस चीज पर कहना अच्छा नहीं लगता। बड़े भाई थे, मेरे परिवार के मेंबर हैं। रीजन थे, लोग भी जानते हैं, कौन जिम्मेदार है। अब अजय और अभय की आपस में नहीं बन रही। हमसे जो हुआ, वो ही आगे बच्चों में चल पड़ा है। सवाल : देवीलाल के नाम पर इनेलो, जजपा और आप अलग कार्यक्रम करते हैं, एक मंच पर आने की उम्मीद है?
चौटाला : समय और परिस्थितियां भूमिका तय करती है। कब कौन, क्या करेगा। 10 साल से ऐसा हो रहा है। इनेलो अपनी रैली कर रही है, मैं यहां कर रहा हूं, अजय चौटाला ने भी अपना वहां कर दिया तो। अपनी-अपनी मर्जी है, कहीं करे। बहुत से लोग हैं, जो राजस्थान में भी कर रहे हैं। रोड़ी हलका बना था रणजीत और ओमप्रकाश चौटाला के बीच दरार की वजह
रणजीत चौटाला 1987 में सिरसा जिले के रोड़ी हलके से लोकदल के विधायक बने थे। उस वक्त उनके बड़े भाई ओमप्रकाश चौटाला राज्यसभा सदस्य थे। 1996 के चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला रोड़ी हलके से चुनाव लड़ने पर अड़ गए तो रणजीत चौटाला से बिगड़ गई। इस चुनाव में ओमप्रकाश समता पार्टी से चुनाव जीते। साल 2000 के चुनाव में रोड़ी हलके से दोनों चौटाला भाई एक-दूसरे के सामने उतरे। जीत ओमप्रकाश चौटाला को मिली। 2005 में ओमप्रकाश रोड़ी से ही जीते। 2007 के परिसीमन में यह हलका खत्म कर रानिया, डबवाली व सिरसा हलकों में शामिल कर दिया गया। 2024 में 7 विस हलकों में चुनाव लड़ा चौटाला परिवार
अक्टूबर 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार के 7 सदस्य चुनाव मैदान में उतरे थे। जेजेपी के टिकट पर उचाना से दुष्यंत चौटाला और डबवाली से दिग्विजय चौटाला मैदान में उतरे। इनेलो के टिकट पर ऐलनाबाद से अभय चौटाला, रानिया से अर्जुन चौटाला, डबवाली से आदित्य देवीलाल चौटाला और फतेहाबाद से सुनैना चौटाला ने चुनाव लड़ा। रणजीत चौटाला ने रानिया से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इनमें से आदित्य व अर्जुन को ही जीत मिली। गायत्री-सूर्यप्रकाश से पहले चौटाला परिवार के 5 युवा सक्रिय
रणजीत चौटाला अपनी पोती गायत्री विजय लक्ष्मी व पोते सूर्य प्रकाश को सियासी कार्यक्रमों में मंच व माइक दे रहे हैं। इससे पहले चौटाला परिवार से 5 युवा पहले ही सक्रिय हैं। इनमें अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत-दिग्विजय चौटाला, अभय चौटाला के बेटे करण-अर्जुन चौटाला, ओमप्रकाश चौटाला के भाई जगदीश चौटाला के बेटे आदित्य देवीलाल शामिल हैं।
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