आलू पर चलने वाले सीपीआर इंडिया का शोध अब पूरा हो चुका है। अब आलू की बोवाई कंद की जगह बीज से कराने की तैयारी की जा रही है। बीज में आलू के डीएनए-क्रामोसोम को कंट्रोल करना काफी आसान होगा। इस तरह से आलू की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकेगा। जीन में बदलाव से आलू के सेवन से ग्लूकोइनडेक्स में भी सुधार आता है और इससे मधुमेह और अन्य बीमारियों वाले मरीज आराम से इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। साथ ही इससे आलू की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकेगा।
आलू में सोलानिन, चाकोनिन और कार्बोहाइड्रेट को कम किया जा सकेगा। इससे कई तरह की बीमारियों और आलू के सेवन से पड़ने वाले प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा। सीपीआर इंडिया ने इस पर अपना शोध पूरा कर लिया है। अगले साल से टीपीएस डिपलाइड विधि से तैयार होने वाली आलू की नई प्रजातियों का बीज मौजूद होगा। इससे आलू को भी बीज से बोया जाएगा। अभी तक आलू का कंद टेट्रालाइड तकनीक से तैयार किया गया है।
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अब बीज से बोया जाएगा आलू
देश-दुनिया के सभी क्षेत्रों में आलू पैदा होने वाली फसल है। इसका प्रयोग भी विभिन्न रूप से करीब सभी लोग करते हैं। हालांकि अभी तक आलू को परंपरागत तरीके से बोया जाता है। इसके कंद को जमीन में दबाकर नई फसल तैयार की जाती है। कंद को टेट्रालाइड विधि से तैयार किया जाता है। इसके जीन में क्रोमोसोम के चार गुणसूत्र होते हैं। किसी न किसी गुणसूत्र में पुरानी प्रजाति के गुणधर्म पहुंचने की भी आशंका बनी रहती है।
अभी हाल ही में एक शोध पूरा किया गया है। इसमे आलू के बीज अटालाइड की बजाय डिपलाइड विधि से तैयार किया जाएगा। इसमें जीन के क्रोमोसोम के दो गुणसूत्र होंगे। वहीं एक्सपर्ट भी इसको सही से कंट्रोल कर पा रहे हैं। परंपरागत इससे आलू के गुणधर्म में बदलाव किया गया है और आलू का ग्लूकोइंडेक्ट भी सुधारा गया है। इसमें ग्लूकोज के रिलीज होने की गति को भी आसानी से कम किया जा सकेगा। साथ ही कार्बोहाइड्रेट का लेवल भी कम किया जा सकेगा।
ऐसे में मोटापे और मधुमेह के मरीजों को सामान्य रूप से आलू का प्रयोग कर सकेंगे। इसके साथ ही इस तरह से आलू के डीएनए में चाकोनिन और सोलानिन को भी कंट्रोल किया जा सकेगा। इससे सिर चकराने, ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर के मरीज आराम से आलू का इस्तेमाल कर सकेंगे। आलू से बढ़े हुए यूरिक एसिड वाले लोगों को समस्या होती है।
जानिए क्या होगा बदलाव
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान विज्ञानी की मानें, तो अब आलू की बुआई कंदों की जगह पर ‘सच्चे आलू के बीज’ से होगी। इससे आलू उत्पादन की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आया है। आलू के बीज या टीपीएस आलू के पौधों में फूल आने के बाद बनने वाली फलियों से प्राप्त छोटे-छोटे बीज होते हैं। यह सामान्य कंद वाले बीजों से अलग होते हैं। वहीं इन फसलों में बीमारियों को भी कंट्रोल किया जा सकेगा।
आलू का शोध पूरा हो गया है। ऐसे में आने वाले साल में आलू को कंद की जगह बीज से बोया जाएगा। इसको ट्रायल के लिए हर राज्य को दिया जाएगा और फिर किसानों को आवंटन शुरू हो जाएगा। बीज से आलू बोने पर इसकी गुणवत्ता में काफी सुधार हो रहा है। इसमें कार्बोहाइड्रेट सहित अन्य कई तत्वों को कंट्रोल कर लिया गया है। इससे आलू की फसल में कम बीमारी लगेंगी और आलू का सेवन करने के दौरान बीमारियों का भी डर नहीं होगा।
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