श्रीनगर में पाक सेना के हमले को निर्मल जीत ने कैसे नाकाम किया था? IAF के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता के किस्से

श्रीनगर में पाक सेना के हमले को निर्मल जीत ने कैसे नाकाम किया था? IAF के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता के किस्से

भारतीय सैन्य इतिहास में वीरता, कर्तव्य निष्ठा और आत्म-बलिदान की अनगिनत कहानियां दर्ज हैं, लेकिन उन सबमें फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों का नाम एक विशेष गौरव के साथ लिया जाता है. वे भारतीय वायु सेना के ऐसे एकमात्र अधिकारी हैं जिन्हें भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र प्राप्त हुआ. 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, श्रीनगर वायुक्षेत्र की रक्षा करते हुए उन्होंने जिस निर्भीकता और कौशल का प्रदर्शन किया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है.

निर्मल जीत सिंह सेखों का जन्म 17 जुलाई 1943 को पंजाब के लुधियाना ज़िले (इसेवाल) में हुआ. उनका परिवार सैन्य परंपराओं से जुड़ा था, उनके पिता भारतीय वायु सेना में वारंट ऑफिसर थे. इस पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उनके अंदर देश सेवा की भावना को बचपन से ही दिशा दी. उच्च माध्यमिक शिक्षा के बाद उन्होंने वायु सेना में करियर बनाने का संकल्प लिया और कठोर प्रशिक्षण प्रक्रिया से गुजरते हुए 4 जून 1967 को उन्हें भारतीय वायु सेना में कमीशन मिला. वे शीघ्र ही लड़ाकू विमान चालक के रूप में अपनी पहचान बनाने लगे.

सेखों ने उस काल के प्रसिद्ध हल्के और अत्यंत फुर्तीले लड़ाकू विमान फॉलैंड ग्नैट पर उड़ान भरी. ग्नैट को सेबर स्लेयर के रूप में ख्याति प्राप्त थी, क्योंकि 1965 के युद्ध में इस विमान ने पाकिस्तानी एफ-86 सेबर जेट्स के सामने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था. ग्नैट के साथ सेखों की एकरूपता तेज़ प्रतिक्रिया समय, निम्न ऊंचाई पर आक्रामक चालें, और लक्ष्य पर सटीक गोता ने उन्हें एक प्रखर इंटरसेप्टर पायलट बना दिया. 1971 के युद्ध के समय वे नंबर 18 स्क्वाड्रन (फ्लाइंग बुलट्स) से संबद्ध थे, जिसकी तैनाती श्रीनगर में की गई थी एक ऐसा मोर्चा जहां हर क्षण सतर्क रहना अनिवार्य था. भारतीय वायुसेना दिवस (IAF) के मौके पर पढ़ें पूरी कहानी.

1971 का वो भारत-पाक युद्ध और श्रीनगर की निर्णायक सुबह

14 दिसंबर 1971 की सुबह श्रीनगर वायुक्षेत्र पर पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-86 सेबर जेट्स ने अचानक हमला किया. उद्देश्य स्पष्ट था रनवे और वायुसेना की परिसम्पत्तियों को नष्ट कर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में भारतीय हवाई अभियानों को कमजोर बनाना. उस समय हवा में भारतीय लड़ाकू गश्त सीमित थी और वायुक्षेत्र तत्काल खतरे में था.

इसी विकट घड़ी में फ्लाइंग ऑफिसर सेखों ने जोखिम उठाते हुए ग्नैट विमान में स्क्रैम्बल किया. ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि उड़ान भरने का क्षण ही सबसे असुरक्षित होता है- कम ऊंचाई, सीमित गति और शत्रु पहले से आक्रमण मोड में. फिर भी सेखों ने बिना देर किए टेकऑफ किया और सीधे दुश्मन की ओर बढ़े.

कम संसाधन और संख्या में भारी अंतर के बावजूद उन्होंने छह शत्रु विमानों से मुकाबला छेड़ दिया. हवाई युद्ध की बारीकियों में यह एक अत्यंत कठिन परिस्थिति मानी जाती है- जहां हर सेकंड की चाल रणनीति तय करती है. सेखों ने आक्रामक मोड़, सटीक निशाना और साहसिक पीछा करते हुए एक सेबर को मार गिराया और दूसरे को गंभीर क्षति पहुंचाई. इस द्वंद्व के दौरान उनके ग्नैट पर भी भारी फायर आया. अत्यंत निम्न ऊंचाई और प्रतिकूल स्थिति के बीच उनका विमान प्रभावित हुआ और वे वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन तब तक वे शत्रु के हमले की संरचना तोड़ चुके थे,एयरफील्ड सुरक्षित रहा और भारतीय वायु अभियानों की निरंतरता बनी रही.

वीरता का सैन्य-रणनीतिक महत्व

फ्लाइंग ऑफिसर सेखों के योगदान को केवल व्यक्तिगत बहादुरी के चश्मे से देखना पर्याप्त नहीं है; उसका व्यापक सैन्य महत्व था. श्रीनगर वायुक्षेत्र उस समय उत्तरी मोर्चे पर भारतीय वायु संचालन का प्रमुख आधार था. यदि उस सुबह रनवे या महत्वपूर्ण सुविधाएं निष्क्रिय हो जातीं, तो सीमावर्ती इलाकों में जमीनी सेना को हवाई समर्थन, आपूर्ति और टोह में बाधा आती. सेखों की आक्रामक प्रतिक्रिया ने दुश्मन के हमले की गति तोड़ी, उसे बिखेरा और उसका मनोबल हिला दिया. यह केवल एक हवाई जीत नहीं थी, बल्कि पूरे क्षेत्र में भारतीय सैन्य-रणनीतिक पकड़ को मजबूत रखने वाला निर्णायक क्षण था.

इसके अलावा, कम ऊंचाई पर, टेकऑफ के तुरंत बाद, संख्या में छह-के-एक की विषमता में संलग्न होना वायु युद्ध सिद्धांत में अत्यंत जोखिमभरा माना जाता है. फिर भी सेखों ने अपने इंटरसेप्टर विमान की क्षमताओं छोटे आकार, तीव्र चढ़ाई और चुस्ती का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए ऐसी आक्रामकता दिखाई जिसने दुश्मन के गणित को पलट दिया. उनकी यह कार्रवाई हवाई युद्धकला में डिटरेंस बाय ऑडेसिटी, दुश्मन को दुस्साहस से रोकना जीवंत उदाहरण है.

परमवीर चक्र और राष्ट्रीय सम्मान

उनकी अद्वितीय वीरता, कर्तव्यपरायणता और सर्वोच्च त्याग के लिए फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. वे भारतीय वायु सेना के इतिहास में इस सर्वोच्च सम्मान के एकमात्र प्राप्तकर्ता हैं. यह तथ्य उनके योगदान की विशिष्टता को रेखांकित करता है, जहां बहादुरी और कौशल ने मिलकर इतिहास रचा. उनके सम्मान में स्मारक स्थापित किए गए, भारत सरकार ने डाक-टिकट जारी किया, और उनके नाम पर चौक, पार्क तथा संस्थान भी नामित किए गए. वायुसेना के प्रशिक्षण केंद्रों और स्क्वाड्रनों में उनकी कथा नए पायलटों के लिए प्रेरक ध्वज की तरह फहराती रहती है.

सेखों के व्यक्तित्व में तीन गुण विशेष रूप से उभरकर आते हैं

  • तत्परता: खतरे की घड़ी में एक पल की देरी भी निर्णायक हो सकती है. उनका तत्काल स्क्रैम्बल, वह भी शत्रु की गोलाबारी के बीच, कर्तव्यनिष्ठा का सर्वोच्च मानक प्रस्तुत करता है.
  • तकनीकी दक्षता: ग्नैट जैसे तेज़ और संवेदनशील प्लेटफॉर्म पर उत्कृष्ट नियंत्रण, शूटिंग समाधान निकालने की क्षमता, और कम ऊंचाई की जटिलताओं में लक्ष्य का पीछा, ये सब उच्च कोटि के प्रशिक्षण और अभ्यास के बिना संभव नहीं.
  • नेतृत्व और साहस: संख्या में कम होते हुए भी शत्रु पर चढ़ जाना केवल साहस नहीं, बल्कि सहकर्मियों और आधार की सुरक्षा हेतु नेतृत्वकारी निर्णय था.

इन मूल्यों ने उन्हें केवल एक कुशल पायलट नहीं, बल्कि वायुरक्षा की अग्रिम पंक्ति का आदर्श प्रहरी बना दिया. भारतीय युवाओं के लिए उनका जीवन संदेश देता है कि सच्चा नेतृत्व अक्सर सबसे कठिन क्षणों में जन्म लेता है, जहां व्यक्तिगत सुरक्षा से अधिक महत्त्व राष्ट्र और कर्तव्य को दिया जाता है.

आधुनिक हवाई युद्धकला में तकनीक और नेटवर्क-सेंट्रिक ऑपरेशन्स का महत्त्व बढ़ा है, लेकिन साहस, तत्परता और मनोबल आज भी जीत-हार का अंतर तय करते हैं. सेखों की विरासत हमें याद दिलाती है कि श्रेष्ठतम उपकरण भी उस मनुष्य की जिजीविषा के बिना अधूरे हैं जो उन्हें संचालित करता है. भारतीय वायु सेना में आज जो पेशेवर संस्कृति, मिशन-फोकस, टीमवर्क, और खतरों के सामने अडिगता, देखने को मिलती है, उसमें सेखों जैसे नायकों का मौन योगदान गहराई से समाया हुआ है.

यही कारण है कि 14 दिसंबर का वह प्रातः काल केवल एक हवाई मुठभेड़ का विवरण नहीं, बल्कि एक ऐसी कहानी है जिसमें एक युवा अधिकारी ने अपने कौशल और साहस से शत्रु के इरादों को ध्वस्त कर दिया और अपनी मातृभूमि की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा. उनका बलिदान केवल अतीत की स्मृति नहीं, वर्तमान और भविष्य के लिए मानक है—कि जब आकाश में तिरंगा लहराता है, तो उसके पीछे अनगिनत पहरेदारों का निःस्वार्थ त्याग और अदम्य जज़्बा काम कर रहा होता है.

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