शाही टुकड़ा, ताजमहल, कैबिनेट सिस्टम… मुगलों ने भारत को क्या क्या दिया?

शाही टुकड़ा, ताजमहल, कैबिनेट सिस्टम… मुगलों ने भारत को क्या क्या दिया?

साल 1526 में बाहर से आकर 1857 तक भारत पर राज करने वाले मुगलों ने अपना काफी प्रभाव छोड़ा. कला-संस्कृति से लेकर भाषा और प्रशासन तक पर आज भी इनका स्पष्ट प्रभाव दिखाई पड़ता है. उन्होंने एक नई इंडो-इस्लामिक संस्कृति को जन्म दिया, जिसका असर कला, स्थापत्य, खान-पान, भाषा और यहां तक कि कपड़ों पर भी दिखाई देता है. आइए जान लेते हैं कि खानपान से लेकर विरासत तक मुगलों ने भारत को क्या-क्या दिया?

मुगलों की भाषा मूल रूप से चगताई तुर्की थी पर तत्कालीन समय में फारसी के महत्व को देखते हुए बाद के मुगल शासकों ने इसको अपनी आधिकारिक भाषा बनाया. दरबार में भी इसी का इस्तेमाल होता था, पर आपस में मुगल तुर्की का इस्तेमाल करते थे.

नई भाषा का हुआ जन्म

धीरे-धीरे कर फारसी, अरबी, तुर्की के साथ ही स्थानीय भारतीय भाषाओं के मिश्रण से एक नई भाषा का जन्म हुआ, जिसे आज हम उर्दू कहते हैं. उर्दू का अर्थ है खेमा या शिविर. यह भाषा वास्तव में उन सैन्य शिविरों में जन्मी, जहां स्थानीय और मुगल दोनों ही तरह के सैनिक रहते थे और उनके बीच अपनी-अपनी भाषा का आदान-प्रदान होता था. धीरे-धीरे उन्हीं के मिश्रण से नई भाषा बन गई.

Akbar

बादशाह अकबर.

लजीज खानपान

मुगल अपने साथ कई तरह के लजीज खान-पान लेकर भी आए. इनमें सबसे पहला नाम तंदूर का लिया जाता है. मुगलों ने चिकन तैयार करने का एक नया तरीका दिया, जिसे अंग्रेजी में मेरिनेट कहा जाता है. शर्बत का भी चलन भारत में मुगलों के आने के बाद ही शुरू हुआ. शर्बत में गुलाब से लेकर खश तक का इस्तेमाल होता था. आज भी खासकर गर्मी के मौसम में शर्बत का सेवन किया जाता है. भले ही प्राचीन समय से भारत में चावल का इस्तेमाल होता रहा हो पर इसे मसालों के जरिए बिरयानी बनाने की कला मुगल ही लाए थे. पूरे भारत में आज तरह-तरह की बिरयानी खूब चाव से बनाई और खाई जाती है.

Biryani

भारत में खीर का चलन भी प्राचीन समय से है, पर दूध को गाढ़ा कर फिरनी बनाने की रेसिपी मुगल ही लाए थे. स्वादिष्ट मिठाई शाही टुकड़ा भी मुगल अपने साथ लाए थे. तब इसे ब्रेड के स्थान पर मैदा के नॉन से बनाया जाता था. कोरमा, निहारी, पुलाव और रोगन जोश जैसे व्यंजन भी मुगलों की देन हैं. इसके अलावा सूखे मेवे और खुशबूदार मसालों से मुगलों ने ही परिचित कराया था.

स्थापत्य और कला

मुगलों को अपनी स्थापत्य कला के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. फारसी, इस्लामी, तुर्की और भारतीय स्टाइल का मिश्रण कर मुगलों ने जिस स्थापत्य कला का विकास किया, उसे आज मुगल स्थापत्य कला के नाम से ही जाना जाता है. आगरा के पास अकबर ने फतेहपुर सीकरी जैसा योजनाबद्ध शहर बसाया, जहां की इमारतें आज भी मुगल स्थापत्य का नायाब नमूना हैं. मुगलों ने शहरों की योजना में सुधार किया. सड़कें और किलाबद्ध शहर विकसित किए.

humayuns tomb

हुमायूं का मकबरा.

दिल्ली में स्थित हुमायूं का मकबरा पहला बाग युक्त मकबरा था, जिसका निर्माण मुगलों ने किया था. यही बाद में आगरा में ताजमहल के निर्माण की प्रेरणा भी बना. शाहजहां द्वारा अपनी पत्नी की याद में आगरा में बनाए गए मकबरे की मिसाल पूरी दुनिया में नहीं है. मुमताज महल की याद में बना ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में एक माना जाता है. आगरा का लाल किया हो या फिर दिल्ली का, पहले तो दोनों मुगलों की शक्ति का प्रतीक रहे और बाद में ये अंग्रेजों से भारत की आजादी की निशानी बन गए. भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक दिल्ली की जामा मस्जिद भी मुगलों की ही देन है. इस दौर की इमारतों की खासियत हैं इनके झरोखे, छतरियां, छज्जे और चारबाग. इन सबको मुगल वास्तुकला की प्रमुख विशेषता माना जाता है.

मुगलों के बनवाए बगीचे

मुगलों ने तमाम बगीचों का भी निर्माण कराया, जो अपनी खास शैली के लिए आज भी मशहूर हैं. खासकर चारबाग शैली के बगीचे जिन्हें एक समान चौकोर खंडों में बांटकर फव्वारों, बहते पानी और छायादार पेड़ों से तैयार किया गया है. इनमें आगरा का आराम बाग सबसे पुराना मुगल बगीचा है, जिसे पहले मुगल शासकर बाबर ने भारत आने के साथ ही बनवाया था. कश्मीर के श्रीनगर में स्थित शालीमार बाग और निशात बाग भी मुगल शैली के नायाब नमूने हैं. पिंजौर में स्थित यादवेंद्र बाद जहां मुगल शैली में बना है तो वहीं दिल्ली में राष्ट्रपति भवन का अमृत उद्यान भी मुगल शैली से प्रेरित है, भले ही इसे अंग्रेजों ने बनवाया था.

सशक्त प्रशासनिक व्यवस्था

मुगलों ने भारत में एक मजबूत, केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था बनाई, जिसने आधुनिक भारतीय शासन व्यवस्था तक को प्रभावित किया. अकबर ने मुगल अफसरों के लिए रैंकिंग और सैलरी सिस्टम शुरू किया, जिसे मनसबदारी प्रथा के नाम से जाना जाता है. अकबर के नवरत्न टोडरमल ने भू राजस्व के असेसमेंट के लिए नई व्यवस्था शुरू की, जिसे जब्ती प्रथा के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही भू-राजस्व व्यवस्थित हुआ. रिकॉर्ड रखना, टैक्सेशन और कानून का पालन कराना इस दौर में और मजबूत व व्यवस्थित हुआ. नवरत्नों के कारण एक कैबिनेट सिस्टम विकसित हुआ.

धार्मिक और सांस्कृतिक सद्भाव

मुगल शासकों में से एक अकबर ने धार्मिक और सांस्कृतिक सद्भाव को खास तौर से बढ़ावा दिया. यहां तक कि अलग-अलग धर्मों का एकीकरण कर एक नया पंथ शुरू किया, दीन-ए-इलाही. सभी धर्मों-पंथों को मानने वालों के लिए सुल्ह-ए-कुल यानी यूनिवर्सल पीस की कल्पना की. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और जैन धर्मों के बीच अंतरधार्मिक चर्चा को बढ़ावा दिया.

व्यापार और अर्थव्यवस्था

मुगलों के समय में भारत दुनिया भर के अमीर क्षेत्रों में से एक बनकर सामने आया. टेक्सटाइल्स, ज्वेलरी, मेटल वर्क और कारपेट बुनाई को इस दौर में खूब बढ़ावा मिला. मध्य एशिया, फारस और यूरोप के साथ व्यापार बढ़ा. इससे देश की समृद्धि को चार चांद लगे. इस दौर में सूती कपड़ों, मसाले, चीनी और नील का खूब निर्यात होता था. स्थानीय वाणिज्य और व्यापार में भी बढ़ोतरी हुई. इसमें कपड़े और खाद्यान्य जैसी जरूरी वस्तुओं का लेनदेन होता था.

कला और संगीत

मुगलों के आने के बाद ही भारतीय और फारसी संगीत के मिलन से एक नए संगीत का जन्म हुआ, जिसे हम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रूप में जानते हैं. अकबर के नवरत्न संगीतकार ने तमाम नए राग विकसित किए. कव्वाली, गजल और मुजरा जैसी परंपराओं को भी मुगलों ने बढ़ावा दिया. मुगल काल में लघु चित्रकला को खूब बढ़ावा मिला. इसमें नाजुक ब्रश से चटख रंगों का इस्तेमाल किया जाता था. मुगल काल की चित्रकला में भी भारतीय और फारसी कला का मिश्रण मिलता है. मुगलों ने कैलिग्राफी और सजावटी कला को भी बढ़ावा दिया.

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