वाराणसी का रोपवे प्रोजेक्ट मंगलयान से भी महंगा क्यों? जानें क्या है खास, कितना सुरक्षित
बनारस में देश का पहला अर्बन रोपवे अब हकीकत बनने जा रहा है. कुछ दिन पहले इसका ट्रायल रन शुरू हो गया है, जो करीब तीन महीने तक चलेगा. यह प्रोजेक्ट लगभग 807 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है और इसका मकसद है शहर में जाम की समस्या को कम करना और लोगों की आवाजाही को आसान बनाना.
रोपवे से आसान सफर अभी शुरू भी नहीं हुआ है लेकिन इस प्रोजेक्ट की कीमत को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. कुछ लोग इसे मंगल मिशन से महंगा बता रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि जापान की मैग्लेव ट्रेन भी काशी रोपवे से सस्ती है. हालांकि इस चर्चा पर विराम लगाते हुए प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग ने साफ किया है कि यह एशिया का पहला अर्बन रोपवे है और तकनीकी व अन्य कारणों से इसकी लागत बढ़ी है.
820 करोड़ रुपए तक पहुंचा बजट
रोपवे की आधारशिला 24 मार्च 2023 को रखी गई थी. उस समय इसकी लागत लगभग 645 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन निर्माण आगे बढ़ते-बढ़ते अब यह खर्च 820 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. प्राधिकरण का कहना है कि इन तुलना का कोई आधार नहीं है. प्राधिकरण के मुताबिक इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 815.58 करोड़ रुपये है और इसमें पंद्रह साल का संचालन व रखरखाव भी शामिल है. उन्होंने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार ने पर्वतमाला योजना के तहत इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य है कि शहरी परिवहन को और आधुनिक बनाना, जिससे वाराणसी जैसे भीड़भाड़ वाले शहर को जाम से राहत दिलाई जा सके.
कैंट रेलवे स्टेशन को गोडौलिया चौक से जोड़ेगा रोपवे
यह रोपवे 3.75 किलोमीटर लंबा होगा और सीधे कैंट रेलवे स्टेशन को गोडौलिया चौक से जोड़ेगा. अभी कैंट से गोडौलिया पहुंचने में 45 से 50 मिनट लग जाते हैं, लेकिन रोपवे शुरू होने पर यही सफर सिर्फ 15 मिनट में पूरा हो जाएगा. किराए को लेकर फिलहाल फैसला नहीं हुआ है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि इसे सस्ता और आम लोगों के लिए किफ़ायती रखा जाएगा. रोपवे के तीन स्टेशन-कैंट, विद्यापीठ और रथयात्रा, बनकर तैयार हैं. इन स्टेशनों पर यात्रियों की सुविधा के लिए लिफ्ट, ऑटोमेटिक सीढ़ियां, व्हीलचेयर रैंप, शौचालय, पार्किंग और खाने-पीने व खरीदारी की भी व्यवस्था की गई है.
एक किलोमीटर पर 45 से 75 करोड़ होते हैं खर्च
विशेषज्ञ बताते हैं कि सामान्य तौर पर एक किलोमीटर रोपवे बनाने में 45 से 75 करोड़ रुपये खर्च आता है. इसकी गति 25 से 30 किलोमीटर प्रति घंटे होगी. इसे खासतौर पर उन जगहों पर उपयोगी माना जाता है, जहां सड़क चौड़ी करने की गुंजाइश न हो और यातायात का दबाव बहुत ज्यादा हो. इस रोप-वे की खासियत ये होती है कि पहाड़ी और भीड़भाड़ वाले शहरी इलाकों में कम खर्च में आवाजाही को अरामदायक बनाया जा सके.
काशी रोप वे को दूसरे से कंपेयर करना ठीक नहीं
रोप वे प्रोजेक्ट मैनेजर पूजा मिश्रा ने कहा, काशी रोप वे का किसी और दूसरे प्रोजेक्ट या मिशन से कंपेयर करने को ठीक नहीं है. पूजा मिश्रा ने टीवी 9 डिजिटल से हुई बातचीत में बताया कि दुनिया में वाराणसी तीसरा शहर होगा, जिसके सघन आबादी वाले इलाके से रोप वे गुजरेगा. इसकी तुलना मिशन मंगल से या किसी दूसरे प्रोजेक्ट से नहीं किया जा सकता है. दुनिया के प्राचीनतम जीवंत शहर के घनी आबादी वाले इलाकों में स्टेशन बनाने में चुनौती भी आती है और खर्च भी बढ़ता है. इसके साथ ही इसमें 15 साल के ऑपरेशन एन्ड मेंटेनेन्स का खर्च भी जुड़ा हुआ है. दूसरे प्रोजेक्ट्स में सिर्फ इक्विपमेंट पर ही भारी भरकम खर्च हो जाता है जबकि हम इसको इसी खर्च में 15 साल तक चलाएंगे.
स्विट्ज़रलैंड से रखी जाएगी निगरानी
देश के पहले अर्बन रोपवे को लेकर सुरक्षा इंतज़ाम पुख्ता किए गए हैं. अधिकारियों के मुताबिक पूरे रोपवे कॉरिडोर में 38 टावर खड़े किए गए हैं और इन पर कुल 228 सेंसर लगाए गए हैं. ये सेंसर हर गोंडोला की हरकत पर नज़र रखेंगे. गोंडोला किस टावर से गुजर रहा है, उसकी गति कितनी है और वह अगले स्टेशन से कितनी दूरी पर है- इसकी जानकारी सेंसर तुरंत दे देंगे.
सबसे खास बात यह है कि अगर गोंडोला के किसी पैनल में गड़बड़ी आती है तो इसे स्विट्ज़रलैंड में बैठे विशेषज्ञ वहीं से ऑनलाइन दुरुस्त कर सकेंगे. यानी यात्री सफर के दौरान किसी तरह की दिक्कत का सामना न करें, इसके लिए तकनीक का पूरा इस्तेमाल किया जा रहा है. सुरक्षा से जुड़ी सारी रिपोर्ट कंट्रोल रूम तक लगातार पहुंचती रहेंगी.
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