देख लीजिए रतन टाटा के कुत्ते की पावर, 12 लाख रुपए का मालिक, हर महीने मिलते हैं इतने पैसे
रतन टाटा का जीवन केवल व्यापार तक सीमित नहीं था. उन्हें हम एक बड़े उद्योगपति, उद्यमी और समाजसेवी के रूप में जानते थे. वहीं उनके पालतू कुत्तों के प्रति उनका गहरा प्यार भी कई बार चर्चा में रहता था. खासकर उनके जर्मन शेफर्ड कुत्ते टीटो की कहानी तो बेहद ही दिलचस्प और अनोखी है.
रतन टाटा का निधन पिछले साल 9 अक्टूबर को हुआ था, लेकिन उनकी यादें और उनके कुत्तों के लिए उनका प्रेम आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा है. टाटा ने अपने कुत्ते टीटो के लिए अपनी वसीयत में 12 लाख रुपये की राशि और हर तीन महीने में 30,000 रुपये की पेंशन देने का प्रावधान रखा था. इतना ही नहीं, टीटो की देखभाल करने के लिए उनके लंबे समय से काम कर रहे रसोइये राजन शॉ को भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी. यह बात दर्शाती है कि रतन टाटा के लिए टीटो सिर्फ एक पालतू नहीं, बल्कि परिवार का एक अहम सदस्य था.
टीटो: रतन टाटा का सच्चा दोस्त
टीटो को रतन टाटा ने करीब छह साल पहले गोद लिया था. उनका पिछला कुत्ता जो उनके साथ था, उसके गुजरने के बाद टीटो उनके जीवन में आया. रतन टाटा ने हमेशा टीटो के लिए अपने गहरे प्यार का इजहार किया. इतना ही नहीं 2018 में जब उन्हें लंदन में प्रिंस चार्ल्स से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिलना था, तब उन्होंने इस सम्मान को लेने के बजाय टीटो के साथ रहना चुना क्योंकि टीटो उस वक्त बीमार था. उन्होंने अपने इस फैसले की वजह साफ कही थी,’मेरा कुत्ता बीमार है, मैं उसे छोड़कर नहीं जा सकता.’
आवारा कुत्तों के लिए आश्रय और देखभाल
रतन टाटा ने बॉम्बे हाउस को आवारा कुत्तों के लिए एक सुरक्षित आश्रय में बदल दिया. उनका हमेशा से यह मानना था कि आवारा कुत्तों को भी प्यार, देखभाल और सुरक्षा मिलनी चाहिए. इसलिए उन्होंने हमेशा उनकी भलाई के लिए काम किया. उनके प्रयासों से टाटा ग्रुप के सामाजिक कार्यों में भी कुत्तों के लिए विशेष स्थान मिला. रतन टाटा अक्सर सोशल मीडिया पर भी आवारा कुत्तों को गोद लेने की अपील करते थे और घायल जानवरों के लिए तत्काल चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने में मदद करते थे.
ताज होटल में कुत्तों का प्यार और सम्मान
रतन टाटा के पशु प्रेम का एक सुंदर उदाहरण ताज होटल का वह दृश्य है, जहां बारिश में कर्मचारी एक आवारा कुत्ते को छाते से बचाते नजर आए. यह तस्वीर बहुत वायरल हुई और लोगों को याद दिलाई कि कभी ब्रिटिश राज के दौरान होटल के बाहर लिखा होता था कि ‘कुत्तों और भारतीयों का प्रवेश वर्जित है’ आज वही जगह कुत्तों के लिए एक प्यार और सम्मान की जगह बन गई है. यह सब रतन टाटा के संवेदनशील और दयालु स्वभाव को दर्शाता है, जिसने उन्हें एक सच्चा पशु प्रेमी और सामाजिक सरोकार वाले उद्योगपति के रूप में स्थापित किया.
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