घाटों पर कैसा था जीवन? हाथीबागान दुर्गा पूजा पंडाल में दिखी ऐसी थीम, फ्रेंच आर्टिस्ट का कमाल- Photos
जब भी पुरानी कोलकाता की बात होती है, तो गंगा के घाटों का ज़िक्र जरूर सामने आता है. लेकिन अब ये घाट धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. कहीं कटाव के कारण पानी में समा गए हैं, तो कहीं कब्ज़ा कर लिया गया है. जो कुछ घाट अब भी बचे हैं, वे आज भी कोलकाता की पहचान और आकर्षण के केंद्र हैं. इस बार हाथीबागान सर्वजनिन पूजा की थीम में इन घाटों को ही समाज के वर्तमान जीवन में प्रासंगिक रूप में प्रस्तुत किया गया है.
“अथः घाट कथा” नामक इस थीम में शहर के घाटों को चित्रों और धागों के कारीगरी के ज़रिए दिखाया गया है. इस काम को साकार रूप दिया है फ्रांस के कलाकार थॉमस हेनरियट ने. 'जियांग एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स' के पूर्व छात्र थॉमस की पेंटिंग्स पेरिस आर्ट फेस्टिवल में प्रदर्शित हो चुकी हैं. अब उन्होंने हाथीबागान के मंडप के लिए 22 फुट × 4 फुट का कैनवस खुद हाथ से बनाया है.
थॉमस ने लगातार 20 साल वाराणसी के घाटों पर बिताए हैं. उन्होंने घाट को महसूस किया है — घाट का दर्द, उसकी मोहब्बत, उसकी आत्मा को समझा है. थॉमस के साथ बंगाल के अपने कलाकार तापस दत्ता और परिमल पाल ने मिलकर काम किया है. इनका साझा प्रयास बन गया है एक ऐसी रचना जिसमें बांग्ला की भावना और फ्रेंच कला का सुंदर संगम देखने को मिलता है.
जैसे मुंबई या वाराणसी के घाट कभी ज़िंदादिल और जीवंत हुआ करते थे, वैसे ही कोलकाता के घाट भी कभी जीवन से भरे रहते थे. आज की पीढ़ी शायद उन घाटों का असली रूप देख ही नहीं पाई. उनके लिए ये घाट बस इतिहास की किताबों या तस्वीरों तक ही सीमित हैं.
हाथीबागान की यह थीम सिर्फ एक पूजा पंडाल नहीं है, बल्कि एक जीवंत कैनवस है, जो हमारी नई पीढ़ी को हमारे शहर की पुरानी यादें दिखा रही है. यह थीम हमें फिर से याद दिलाती है कि हमारी जो सांस्कृतिक विरासत है, वह धीरे-धीरे खत्म हो रही है. उसे बचाना बेहद जरूरी है.
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