ऑस्ट्रेलिया को कौन सप्लाई करता है हथियार, सेना के पास कितने हाइटेक वेपन? जहां पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 9 और 10 अक्तूबर को दो दिन के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रहेंगे. वह बुधवार को सिडनी पहुंचे. ऑस्ट्रेलिया भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार है, ऐसे में रक्षा मंत्री का यह दौरा महत्वपूर्ण है. चर्चा है कि इस दौरान 3 एग्रीमेंट साइन हो सकते हैं. इसमें इंफॉर्मेशन शेयरिंग, मेरीटाइम सिक्योरिटी और जॉइंट मिलिट्री एक्टिविटीज एग्रीमेंट शामिल है. सिडनी में राजनाथ सिंह बिजनेस राउंड टेबल में हिस्सा लेंगे. इस प्रोग्राम में दोनों देशों की डिफेंस इंडस्ट्री से जुड़े प्रतिनिधि शामिल होंगे
आइए इसी बहाने जान लेते हैं कि ऑस्ट्रेलियन आर्मी कितनी ताकतवर है? सेना के पास कितने हाइटेक हथियार हैं? ऑस्ट्रेलिया कहां से खरीदता है अपने हथियार?
ऑस्ट्रेलियाई आर्मी कितनी पावरफुल?
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के सबसे स्थिर और समृद्ध देशों में से एक है, और उसकी सुरक्षा नीति इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर केंद्रित रहती है. ऑस्ट्रेलियाई सेना (Australian Army) देश की तीनों सेनाओं में जमीनी शाखा है, जबकि बाकी दो हैं रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी (नौसेना) और रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फ़ोर्स (वायुसेना). कुल मिलाकर ऑस्ट्रेलिया की सैन्य ताकत तकनीक, प्रशिक्षण और भागीदारी (alliances) पर आधारित मानी जाती है.
संख्या में यह कुछ बड़े देशों जितनी नहीं, लेकिन गुणवत्ता, हाई-टेक हथियारों और संयुक्त अभ्यासों के कारण यह प्रभावशाली और आधुनिक है. सेना की तैनाती का फोकस देश की सीमाओं, उत्तरी तटों, और इंडो-पैसिफिक में साझेदार देशों के साथ मिशन सपोर्ट पर रहता है.

ऑस्ट्रेलियाई आर्मी की असली ताकत आधुनिक तकनीक, बेहतरीन प्रशिक्षण और मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदारी है.
शांति स्थापना, मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) में भी यह सक्रिय भूमिका निभाती है. आस्ट्रेलियन आर्मी की ताकत का बड़ा आधार है संयुक्त अभ्यास-खासकर अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, भारत और आसियान देशों के साथ. इसके अलावा अनेक रक्षा साझेदारी ढांचे ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा को अतिरिक्त विश्वसनीयता देते हैं. ऑपरेशनल स्तर पर, छोटी लेकिन तेज़ रेस्पॉन्स क्षमता, खासकर स्पेशल फोर्सेज, एयर-मोबाइल इन्फैंट्री, और आर्मर्ड यूनिट्स, इसे आधुनिक युद्ध के अनुकूल बनाती हैं.
आस्ट्रेलियन सेना के पास कौन-कौन से हाइटेक हथियार?
- बख्तरबंद और लड़ाकू वाहन: मुख्य रूप से AS9/AS10 सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्ज़र, M777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्ज़र, और बॉक्सर CRV (Combat Reconnaissance Vehicle) जैसे 8×8 प्लेटफॉर्म. तोप की ये सारी श्रेणियां सेंसर, संचार और प्रोटेक्शन सिस्टम के साथ आधुनिकीकृत हैं. इन्फैंट्री फाइटिंग व्हीकल्स के लिए आधुनिक प्रोग्राम चल रहे हैं, जिनका उद्देश्य अधिक सुरक्षात्मक और बहुउद्देशीय गाड़ियों को शामिल करना है.
- हेलिकॉप्टर और एअर-मोबिलिटी: आर्मी एविएशन के पास टैक्टिकल ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टर (जैसे MRH-90 Taipan की जगह नए प्लेटफॉर्म की ओर संक्रमण), और अटैक हेलिकॉप्टर के रूप में AH-64E Apache Guardian के अधिग्रहण की दिशा में आगे बढ़ा चुका है. ये नाइट-फाइटिंग, प्रिसीजन स्ट्राइक और नेटवर्क्ड कम्युनिकेशन के साथ आते हैं.
हाइटेक बख्तरबंद गाड़ियां, प्रिसीजन आर्टिलरी, आधुनिक हेलिकॉप्टर, ड्रोन और डिजिटल नेटवर्क सेना को ताकतवर बनाते हैं. फोटो: Ian Hitchcock/Getty Images
- मिसाइल और प्रिसीजन फायर: ग्राउंड-लॉन्च रॉकेट सिस्टम (जैसे HIMARS) इसे और ताकतवर बनाता है. जिससे लंबी दूरी की सटीक मारक क्षमता मिलती है. इसके साथ लेज़र-गाइडेड और GPS-गाइडेड गोला-बारूद पर भी आस्ट्रेलियन आर्मी का जोर है.
- संचार, सर्विलांस और इलेक्ट्रॉनिक्स: युद्ध क्षेत्र प्रबंधन सिस्टम (Battlefield Management Systems), सुरक्षित रेडियो, ड्रोन, यूएवी निगरानी, और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सपोर्ट सिस्टम आर्मी को सूचना पाने के मामले में बढ़त देते हैं.
- व्यक्तिगत हथियार और गियर: आधुनिक असॉल्ट राइफलें, स्नाइपर सिस्टम, नाइट-विजन डिवाइस, बॉडी आर्मर और डिजिटल सिचुएशनल अवेयरनेस उपकरण भी इसकी ताकत में इजाफा करते हैं.
संयुक्त क्षमता भी रखती है आस्ट्रेलियन आर्मी
समग्र सैन्य शक्ति में रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी के आधुनिक फ्रिगेट, सबमरीन प्रोग्राम, न्यूक्लियर-सबमरीन पाथवे और वायुसेना के F-35A, P-8A, AEW&C जैसे प्लेटफॉर्म निर्णायक भूमिका निभाते हैं. आर्मी इन सेवाओं के साथ संयुक्त ऑपरेशन्स में काम करती है.
ऑस्ट्रेलिया हथियार कहां से खरीदता है?
रक्षा सौदों में आस्ट्रेलिया के प्रमुख साझेदार देश अमेरिका, यूरोप के कई देश, इजरायल आदि प्रमुख है. अमेरिका इस देश को फाइटर जेट, हेलिकॉप्टर, मिसाइल, कम्युनिकेशन और सेंसर टेक्नोलॉजी की आपूर्ति करता है. आस्ट्रेलिया जर्मनी से बॉक्सर CRV, आर्टिलरी सिस्टम, फ्रांस और यूके से विभिन्न रक्षा प्रणालियां और टेक्नोलॉजी सहयोग लेता आ रहा है तो इज़राइल से वह ड्रोन, सेंसर, आयरन-डोम से प्रेरित व एयर-डिफेंस टेक्नोलॉजी आदि लेता है.
आत्मनिर्भर भारत की तरह ऑस्ट्रेलिया भी रक्षा क्षेत्र में इन्वेस्ट कर रहा है. शिपबिल्डिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और मेंटिनेंस-अपग्रेड में स्थानीय कंपनियां सक्रिय हैं. ऑफसेट और इंडस्ट्रियल पार्टनर-शिप के जरिए विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर उत्पादन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को प्रोत्साहन दिया जाता है. ऑस्ट्रेलिया क्वालिटी ओवर क्वांटिटी पर जोर देता है. कम प्लेटफॉर्म, पर अत्याधुनिक तकनीक, बेहतर मेंटेनेंस, और उच्च ऑपरेशनल उपलब्धता. साथ ही, गठबंधनों के अनुरूप इंटर-ऑपरेबिलिटी प्राथमिकता रहती है.

हथियारों की खरीद में अमेरिका और यूरोपीय देश प्रमुख साझेदार हैं. फोटो: Ian Hitchcock/Getty Images
ऑस्ट्रेलियाई आर्मी का इतिहास
19वीं शताब्दी में विभिन्न उपनिवेशों की मिलिशिया और वॉलंटियर यूनिट्स थीं. 1901 में राष्ट्र के रूप में ऑस्ट्रेलिया के संघ बनने के बाद 1901-1903 के बीच कॉमनवेल्थ मिलिट्री फोर्सेस का गठन हुआ, जो आगे चलकर ऑस्ट्रेलियन आर्मी का औपचारिक गठन हुआ. प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान Australian and New Zealand Army Corps की गैलीपोली मुहिम ऑस्ट्रेलियाई सैन्य इतिहास का प्रतीक बन गई. वेस्टर्न फ्रंट पर भी ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस दौर ने राष्ट्रीय पहचान और सैन्य परंपरा को आकार दिया.
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान यूरोप, उत्तर अफ्रीका और प्रशांत मोर्चे पर ऑस्ट्रेलियाई यूनिट्स ने लड़ाई लड़ी. जापानी खतरे के चलते ऑस्ट्रेलिया की होम-डिफेंस और उत्तरी तटों की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण हुई.
कोरिया, मलेशिया, बोर्नियो और वियतनाम युद्धों में ऑस्ट्रेलिया ने योगदान दिया. इस दौर में अमेरिका के साथ सुरक्षा संबंध और गहरे हुए. कई साझेदार बने.आधुनिक दौर में यह सेना ईस्ट तिमोर (Timor-Leste) में शांति स्थापना, सोलोमन आइलैंड्स, अफगानिस्तान और इराक अभियानों में भागीदारी रही. आर्मी ने क्षेत्रीय साझेदारी मिशनों में खास पहचान बनाई. आज फोकस इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, साइबर-ईडब्ल्यू, और लॉन्ग-रेंज प्रिसीजन इफेक्ट्स पर है.
सेना की चुनौतियां
विशाल समुद्री परिधि और कम जनसंख्या घनत्व के कारण, ऑस्ट्रेलिया दूरी और त्वरित प्रतिक्रिया की चुनौती से जूझता है. इसलिए एयर-मोबाइल, सी-लिफ्ट और नेटवर्क्ड कमांड एंड कंट्रोल महत्वपूर्ण हैं. उन्नत सेंसर, ड्रोन, एआई-सक्षम विश्लेषण, साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर में निवेश बढ़ रहा है. घरेलू रक्षा उत्पादन पर भी जोर है ताकि सप्लाई चेन अधिक विश्वसनीय हो सके.
AUKUS, QUAD भागीदारी, और अमेरिका-जापान-भारत-यूके जैसे देशों के साथ संयुक्त अभ्यास, इंटर-ऑपरेबिलिटी को मजबूत करते हैं. छोटी फोर्स होने के बावजूद, प्रोफेशनल ट्रेनिंग, NCO कॉर्प्स की मजबूती, और वैलफेयर सिस्टम सेना की गुणवत्ता बनाए रखते हैं. वेटरन्स के लिए सपोर्ट और पुनर्वास कार्यक्रम भी प्रमुख हैं.
ऑस्ट्रेलिया की आर्मी संख्या के हिसाब से बड़ी ताकतों से छोटी हो सकती है, लेकिन उसकी असली शक्ति आधुनिक तकनीक, बेहतरीन प्रशिक्षण, मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदारी और तेज़-प्रतिक्रिया क्षमताओं में है. हाइटेक बख्तरबंद गाड़ियां, प्रिसीजन आर्टिलरी, उन्नत हेलिकॉप्टर, ड्रोन और डिजिटल नेटवर्क इसे फोर्स-मल्टिप्लायर देते हैं. हथियारों की खरीद में अमेरिका और यूरोपीय साझेदार प्रमुख हैं, जबकि घरेलू उद्योग को भी तेजी से बढ़ावा मिल रहा है. ऑस्ट्रेलियाई आर्मी ने हमेशा पेशेवराना और विश्वसनीयता का परिचय दिया है. यही कारण है कि यह सेना अपने क्षेत्र में एक सक्षम, आधुनिक और भरोसेमंद शक्ति मानी जाती है.
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