हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि सर तन से जुदा वाला नारा अब भारत में नहीं चलेगा। कोर्ट ने ये टिप्पणी मौलाना तौकीर रजा मामले में चल रही सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने सख्त लहजे में यह साफ कर दिया है कि इस तरह की नारेबाजी किसी तरह से इंसाफ का प्रतीक नहीं मानी जा सकती। भारत में सिर्फ और सिर्फ संविधान के हिसाब से ही हर सब कुछ चलेगा। यानी भारत के कुछ मौलाना जिस तरह से इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ का बीज बो रहे थे, अब वो नहीं चलने वाला। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि इस तरह के नारे का प्रयोग न केवल भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कार्य) के तहत दंडनीय है बल्कि यह इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत के भी खिलाफ है।
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बरेली में क्या हुआ था
बरेली में 26 सितंबर को बवाल हुआ था और उसके बाद इन आरोपियों को चिन्हित करके पकड़ा गया। इसके बाद ये सभी आरोपी लोगों से माफी मांगते दिखाई दिए थे। ये वो 15 आरोपी हैं जिन्होंने जो है पत्थरबाजी करी थी और ये अपने हाथ जोड़ रहे हैं। माफी मांग रहे हैं। । 26 सितंबर का दिन था। बरेली में नमाज के बाद इकट्ठा हुए सैकड़ों लोगों ने जोरदार प्रदर्शन। नवीन खान नाम के एक आदमी के घर से निकली भीड़ ने यूपी सरकार का विरोध करते हुए नारे लगाए थे। सारा बवाल इन्हीं नारों पर हुआ था। उन लोगों ने चिल्लाया था गुस्ताख नबी की एक ही सजा सर तन से जुदा। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन उन्होंने पुलिसकर्मियों की लाइनों को तोड़ दिया। उनकी यूनिफार्म फाड़ दी। इतना ही नहीं। इस दौरान पुलिस के हथियारों को भी लूट लिया गया था और पेट्रोल बम, गोलीबारी, पत्थरबाजी की गई जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और कई पुलिस और निजी वाहन को क्षतिग्रस्त किया गया, नुकसान पहुंचाया गया।
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नारे अभिव्यक्ति की आजादी नहीं
कोर्ट के मुताबिक सर तन से जुदा जैसे नारे भारत की जो संप्रभुता है और अखंडता है उसके लिए सीधी चुनौती है। यह नारा भारतीय कानून व्यवस्था, सार्वजनिक शांति और देश की संप्रभुता पर सीधा हमला है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि भारत में सजा देने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ कानून को है। भीड़ को नहीं। बरेली हिंसा मामले में कोर्ट ने टिप्पणी की कि धारा 163 के बावजूद भीड़ जुटना, पुलिस पर हमला करना और हिंसा फैलाना यह गंभीर अपराध हैं। हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के नारे अभिव्यक्ति की आजादी नहीं बल्कि कानून को चुनौती हैं।
जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं
अदालत ने कहा केस डायरी में यह दर्शाने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि याचिकाकर्ता उस गैर कानूनी सभा का हिस्सा था जिसने ना केवल आपत्तिजनक नारा लगाया बल्कि पुलिसकर्मियों को घायल किया, निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। उसे मौके से गिरफ्तार किया गया, इसलिए उसे जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं है। अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा, ‘‘आमतौर पर हर धर्म में नारे लगाए जाते हैं, लेकिन ये नारे ईश्वर के लिए सम्मान प्रदर्शित करने के लिए लगाए जाते हैं।
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