Vijay Rally Stampede: विजय की रैली में 39 मौतों का जिम्मेदार कौन, सिस्टम की नाकामी कितनी बड़ी?

Vijay Rally Stampede: विजय की रैली में 39 मौतों का जिम्मेदार कौन, सिस्टम की नाकामी कितनी बड़ी?

Vijay’s Karur Rally Stampede:तमिलनाडु के करूर में एक्टर, राजनेता विजय की रैली में मची भगदड़ से तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. सैकड़ों घायल होकर अस्पतालों में हैं. मृत लोगों की संख्या अभी भी बढ़ सकती है. और हमेशा की तरह पुलिस अफसरों का एक ही तर्क है कि वे जांच कर रहे हैं. जब तक जांच नहीं पूरी हो जाती, तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है. संभव है कि इस हादसे की मजिस्ट्रियल जांच हो, पुलिस एसआईटी गठित कर दे, सरकार न्यायायिक जांच के आदेश दे दे, पर दोषी या दोषियों की जिम्मेदारी तय करना मुश्किल से ही होगा. यह व्यंग्य नहीं है, देश में भगदड़ का एक कड़वा सच यही है.

आइए जानते हैं, आखिर ऐसे हादसों में क्यों नहीं तय हो पाती जिम्मेदारी? क्यों किसी को नहीं मिलती है सजा? कैसे भांति-भांति की जांचों के मकड़जाल में उलझाकर पुरानी घटना को भूलने और नई के इंतजार में हम लग जाते हैं, सरकारी सिस्टम भी? आखिर कहां है कमी?

बार-बार भगदड़ सिस्टम की कमजोरी

भारत में बार-बार होने वाली भगदड़ (Stampede) की घटनाएं हमारे प्रशासन, व्यवस्थाओं और राजनीतिक सिस्टम की गंभीर खामियों को उजागर करती हैं. चाहे धार्मिक स्थल हों, राजनीतिक रैलियाँ हों या फिर किसी प्रसिद्ध आयोजन स्थल हर बार सैकड़ों-हजारों की भीड़ उमड़ती है और सुरक्षा इंतजामों की कमी या लापरवाही जीवन का मोल चुका लेती है.

नई घटना में अभिनेता से नेता बने विजय की रैली में कई दर्जन लोगों की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर वही सवाल खड़े कर दिए हैं-

  • आखिर जिम्मेदार कौन है?
  • बार-बार एक जैसी घटनाओं के बावजूद सबक क्यों नहीं लिया जाता?
  • भीड़ प्रबंधन (Crowd Management) पर सुधार क्यों नहीं दिखते?
  • क्यों बड़े पदों पर बैठे लोग जांच में बच निकलते हैं और असली दोष केवल नीचे के कर्मचारियों या अज्ञात कारणों पर डालकर केस खत्म कर दिया जाता है?
Vijay Rally Karur Stampede

विजय की रैली में भगदड़

सिस्टम की नाकामी कितनी बड़ी?

1- भीड़ अनुमान का अभाव

आयोजनों या रैलियों के लिए आने वाली भीड़ का सही आंकलन ही नहीं किया जाता. अपेक्षा से कई गुना अधिक भीड़ जमा हो जाती है और स्थानीय प्रशासन हाथ खड़े कर देता है. इंटेलिजेंस एजेंसियां, पुलिस-प्रशासन का अपना तंत्र इस मसले में अक्सर फेल नजर आता है.

2- बुनियादी सुरक्षा सुविधाओं की कमी

एंट्री और एग्जिट गेट पर्याप्त नहीं होते. क्योंकि भीड़ का सटीक आंकलन नहीं होता. ऐसे में इंतजाम भी सटीक नहीं किये जाते. आपातकालीन निकासी मार्ग (Emergency Exits) या तो होते ही नहीं या अवरुद्ध रहते हैं.भीड़ को नियंत्रित करने वाली बैरिकेडिंग और मार्गदर्शन संकेत (signages) बेहद कमजोर होते हैं या होते ही नहीं हैं.

3- राजनीति और धर्म की छाया

जब आयोजन बड़े नेताओं, धर्मगुरुओं या VIP हस्तियों का हो, तो प्रशासन अक्सर अनावश्यक सख्ती करने से बचता है, ताकि आयोजक और नेता नाराज न हों.

4- जांच और जवाबदेही का अभाव

लगभग हर बड़ी भगदड़ के बाद जांच के अलग-अलग आदेश होते हैं लेकिन नतीजे प्रायः निम्न बताकर केस खत्म मान लिया जाता है. अत्यधिक भीड़ और अफवाहों की वजह से भगदड़, विजय की रैली में भी प्राइमरी कहानी यही बनी है. मानवीय त्रुटि (Human Error) बताकर जिम्मेदारी का ठीकरा निचले स्तर के किसी अधिकारी या पुलिस कर्मी पर फोड़ दिया जाता है. बड़े पदों पर बैठे लोग और आयोजक अक्सर साफ बच निकलते हैं.

Actor Vijay Rally Stampede

एक्टर विजय की रैली में भगदड़.

भगदड़ रोकने के लिए कितने सुधार की जरूरत?

  • भीड़ प्रबंधन योजना (Crowd Management Plan) जरूरी.हर बड़े आयोजन के लिए न्यूनतम मानक तय हों.
  • रैलियों, धार्मिक आयोजनों, मेलों में भीड़ की सीमा (Capacity) पहले से निश्चित की जाए.
  • CCTV सर्विलांस, ड्रोन, भीड़-संवेदनशील सेंसर लगाए जाए.
  • भीड़ के घनत्व को तुरंत मापने और दिशा बदलने जैसे उपाय किए जाए.
  • अगर कोई हादसा होता है, तो सिर्फ छोटे कर्मचारी नहीं-मुख्य आयोजक, स्थानीय प्रशासनिक प्रमुख और पुलिस कप्तान को भी कानूनी रूप से जवाबदेह बनाया जाए.
  • घटना की जांच सिर्फ ड्यूटी मजिस्ट्रेट तक सीमित न हो. राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र आयोग बने जो जिम्मेदार नाम सार्वजनिक करे.
  • चाहे कितने बड़े नेता या गुरु क्यों न हों, सुरक्षा नियमों में ढील नहीं दी जानी चाहिए.
  • एंट्री, एग्जिट, बैरिकेड और इमरजेंसी रूट अनिवार्य किए जाएं.

विजय की रैली में कई दर्जन मौतें कोई दुर्भाग्यपूर्ण संयोग नहीं बल्कि उसी विफल सिस्टम का हिस्सा हैं, जिसमें हर साल सैकड़ों लोग जिंदगी गंवाते हैं. सवाल ऐसे हादसों का नहीं, बल्कि उस जवाबदेही का है जो हमारे सिस्टम से नदारद है. जब तक उच्च पदों पर बैठे राजनैतिक और प्रशासनिक अधिकारी भी कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराए जाएंगे, तब तक ये हादसे मुआवजे और औपचारिक जांच में दबते रहेंगे. भीड़ नियंत्रण को प्राथमिक सुरक्षा एजेंडा बनाया जाए और दोषियों को पद के हिसाब से दंड मिले, तभी हजारों जानों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकेगी.

जिम्मेदारी टालने की आदत

हर बार रिपोर्ट यही कहती है-भीड़ अचानक बढ़ गई, अफवाह फैल गई, लोग घबरा गए लेकिन यह मानवीय त्रुटि नहीं बल्कि प्रशासनिक विफलता है. ऐसे हादसों पर कई सवाल उठते हैं.

  • भीड़ अनुमान की जिम्मेदारी किसकी थी?
  • जरूरी सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं हुए?
  • निकासी मार्ग क्यों पर्याप्त नहीं थे?
  • भीड़ प्रबंधन का अब तक कोई ठोस तरीका क्यों नहीं बन सका?

जिम्मेदारी तय करने की जगह सरकारी सिस्टम मुआवजा देकर मामला खत्म मान लेता है. यही कारण है कि पीड़ित परिवार न्याय से वंचित रह जाते हैं.

भगदड़ में कहां-कितनी मौतें?

1. कुंभ मेला (प्रयागराज, 1954)

  • मौतें: लगभग 800
  • कारण: VIP मूवमेंट के दौरान भीड़ रोकना और बैरिकेड का टूटना.
  • परिणाम: जांच आयोग बना, लेकिन किसी पर कार्रवाई नहीं हुई.

2. रत्नागिरी (महाराष्ट्र, 2001) – मियादरी देवी मंदिर

  • मौतें: 52
  • कारण: मंदिर के संकरे रास्ते में उमड़ी भीड़ और फिसलन.
  • परिणाम: प्रशासन ने भीड़ और अनियंत्रित श्रद्धालुओं को जिम्मेदार बताया.
  • एक्शन: किसी पर गंभीर कानूनी कार्रवाई नहीं. जिम्मेदार बच निकले.

3. मांडहाता, मध्य प्रदेश (2006) – नागचंद्रेश्वर मंदिर

  • मौतें: लगभग 60
  • कारण: भारी बारिश में फिसलन और अफवाह से भगदड़.
  • परिणाम: मुआवजा दिया, प्रशासनिक लापरवाही पर केवल चेतावनी.

4. नक्सलबाड़ी, पश्चिम बंगाल (2008) – मेला स्थल

  • मौतें: 16
  • परिणाम: मामूली स्तर के पुलिस अधिकारियों पर जिम्मेदारी डाली गई.

5. प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश (2010) – कृष्ण जन्माष्टमी आयोजन

  • मौतें: करीब 63
  • कारण: भंडारे के दौरान भीड़ उमड़ना और गेट गिरना
  • परिणाम: धार्मिक ट्रस्ट पर कार्यवाही, कोई बड़ा जिम्मेदार नहीं ठहराया.

6. रत्नागिरी (2012) – कपिलेश्वर मंदिर

  • मौतें: लगभग 20
  • परिणाम: जांच समिति बनी पर निष्कर्ष वही, भीड़ अधिक थी.

7. मध्य प्रदेश, रतनगढ़ मंदिर साल 2013

  • मौतें: 115
  • कारण: अफवाह थी कि पुल टूट रहा है.
  • परिणाम: छोटे कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया. बड़े नाम सुरक्षित रहे.

8. प्रयागराज (2013) – कुंभ मेला

  • मौतें: लगभग 36
  • कारण: रेलवे स्टेशन पर उमड़ी भीड़, पर्याप्त निकासी द्वार न होना.
  • परिणाम: रेल मंत्रालय और प्रशासन दोनों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार बताया.

9. मुंबई (2017) – एलफिंस्टन ब्रिज

  • मौतें: 23
  • कारण: संकरे पुल पर बारिश, अफवाह और धक्का-मुक्की.
  • परिणाम: भीड़ और अफवाह का हवाला, अधिकारियों पर नाममात्र कार्रवाई.

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