अरुणाचल प्रदेश इन दिनों सामाजिक संवेदनशीलता और राजनीतिक बहस के एक नाजुक मोड़ पर खड़ा दिखाई दे रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अवैध मस्जिदों की वैधता जांचने और संदिग्ध अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए शुरू हुआ अभियान अब एक व्यापक विवाद का रूप ले चुका है। इस विवाद के केंद्र में है अरुणाचल प्रदेश इंडिजिनस यूथ ऑर्गेनाइज़ेशन (APIYO), जो हाल के दिनों में मस्जिदों का निरीक्षण कर रही है और ऐसे लोगों के दस्तावेज़ जांच रही है जिन्हें वह अवैध प्रवासी होने के संदेह में देखती है। संगठन का दावा है कि यह अभियान किसी समुदाय को निशाना बनाने के लिए नहीं, बल्कि केवल अवैध घुसपैठ और अनधिकृत संरचनाओं पर रोक लगाने के उद्देश्य से है।
हम आपको बता दें कि APIYO के अध्यक्ष टारो सोनम लियाक इस समय अरुणाचल प्रदेश के नये हीरो के रूप में उभर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके अभियान के पीछे कोई सांप्रदायिक मंशा नहीं है। उनका कहना है कि अभियान किसी धर्म के खिलाफ नहीं है बल्कि उन बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ है जो बिना वैध कागज़ात के राज्य में प्रवेश करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनके खिलाफ प्रसारित किए जा रहे कुछ वीडियो संपादित हैं और झूठे आरोप लगाने वालों के खिलाफ मामले दर्ज कराए जा चुके हैं।
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हम आपको यह भी बता दें कि अरुणाचल प्रदेश के नाहरलागुन जामा मस्जिद में 27 नवंबर को हुई एक तीखी बहस का वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल है। वीडियो में अरुणाचल प्रदेश इंडिजिनस यूथ ऑर्गेनाइज़ेशन (APIYO) के दो पदाधिकारी महासचिव टापोर मेयिंग और अध्यक्ष टारो सोनम लियाक मस्जिद के मौलवी से “भारत माता की जय” बोलने की मांग करते दिखाई देते हैं। घटना के दौरान मस्जिद में भीड़ बढ़ती गई और माहौल गर्माता चला गया। वीडियो में मौलवी “इंडिया जिंदाबाद” कहकर जवाब देते हैं, लेकिन APIYO के सदस्य उनसे ठीक वही नारा दोहराने पर जोर देते हैं।
बहस के दौरान टारो सोनम लियाक का एक सवाल भी वायरल हुआ कि “हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं होता, मगर हर आतंकवादी मुस्लिम क्यों होता है?” हम आपको बता दें कि APIYO पिछले एक महीने से राज्य में अवैध प्रवासियों और अवैध धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ अभियान चला रहा है। 25 नवंबर को संगठन ने नाहरलागुन हेलिपैड के पास कथित रूप से अवैध निर्माणाधीन जामा मस्जिद के विरोध में बंद का आह्वान किया था, लेकिन गृह विभाग के आश्वासन के बाद बंद वापस ले लिया गया।
इस बीच, स्थिति को नियंत्रित करने के लिए राज्य सरकार ने भी हस्तक्षेप किया है। गृह मंत्री मामा नटुंग ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि कोई भी व्यक्ति कानून अपने हाथ में न ले। उन्होंने आश्वासन दिया है कि राज्य में किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति या जनजाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। दूसरी ओर, राजनीतिक पटल पर भी यह मुद्दा तेजी से उभर रहा है। अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बीजेपी सरकार पर सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ने देने का आरोप लगाया है और कहा है कि राज्य को “विभाजनकारी राजनीति की प्रयोगशाला” नहीं बनने दिया जा सकता। पार्टी ने अवैध प्रवासियों की जांच, धार्मिक संरचनाओं का सत्यापन और नफरत फैलाने वालों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है।
इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच, राज्य के कई नागरिक मानते हैं कि असली चुनौती यह है कि कैसे मूल निवासियों की पहचान की रक्षा करते हुए सभी समुदायों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित किया जाए। देखा जाये तो अरुणाचल प्रदेश अपनी शांति, आपसी विश्वास और सह-अस्तित्व की संस्कृति के लिए जाना जाता है। यह भी सही है कि किसी भी राज्य को यह जांचने का पूरा अधिकार है कि उसकी सीमाओं में कौन बिना अनुमति प्रवेश कर रहा है। लेकिन यह अधिकार तभी वैध और प्रभावी ठहरता है जब उसके साथ पारदर्शिता, संवेदनशीलता और जवाबदेही जुड़ी हो।
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