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Unnao rape victim ने जांच अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी की मांग को लेकर सीबीआई से किया संपर्क

वर्ष 2017 के उन्नाव बलात्कार मामले की पीड़िता ने पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के साथ मिलीभगत के लिए तत्कालीन जांच अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध करते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से संपर्क किया है। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी ठहराया गया था।

पीड़िता ने यह भी दावा किया कि उसे और उसके परिवार को विभिन्न पक्षों से धमकियों का सामना करना पड़ रहा है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है, जब सेंगर को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में सशर्त जमानत दिए जाने और मामले में उसकी आजीवन कारावास की सजा निलंबित किए जाने के बाद कई हलकों में निराशा बढ़ गई है।
हालांकि, सेंगर जेल में ही रहेगा, क्योंकि वह बलात्कार पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत मामले में 10 साल की सजा भी काट रहा है।

पीड़िता ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि जांच अधिकारी ने दुर्भावना से और कपटपूर्ण तरीके से और इस तरह से जांच की, ताकि सेंगर और अन्य आरोपियों को जानबूझकर की गई चूक और पेश किए गए तथ्यों में हेरफेर का लाभ मिल सके और एक अनुकूल परिणाम सुरक्षित हो सके।

उसने आरोप लगाया कि अधिकारी ने आरोप पत्र में जाली स्कूल दस्तावेजों का इस्तेमाल किया, जिसमें उसे एक सरकारी स्कूल की छात्रा के रूप में दिखाया गया और उसकी जन्मतिथि भी अलग दिखाई गई, जबकि वास्तव में, उसने कभी उस स्कूल में प्रवेश नहीं लिया था।

पीड़िता ने यह भी दावा किया कि अधिकारी ने आरोपपत्र में उल्लेख किया है कि वह हीरा सिंह नाम की एक महिला का मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रही थी, जबकि उसने कभी उस फोन का इस्तेमाल नहीं किया। उसने दावा किया कि इसके अलावा, आरोप पत्र में कई बयानों को उसके हवाले से शामिल किया गया है।
छह पन्नों की शिकायत में, पीड़िता ने दावा किया कि उसने पहले भी शिकायत की थी, लेकिन अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

पीड़िता 2017 में बलात्कार के समय नाबालिग थी।
सेंगर को दोषी ठहराने वाली निचली अदालत के आदेश का हवाला देते हुए, जहां अदालत ने जांच अधिकारी द्वारा उसके बयान दर्ज करने पर सवाल उठाया, उसने अधिकारी पर उन्हें (सेंगर और अन्य) अभियोग से बचाने के लिए आरोपियों के साथ मिलीभगत करने का आरोप लगाया।

सीबीआई ने निचली अदालत की टिप्पणी को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
मुकदमे के दौरान, सीबीआई ने कहा था कि पीड़िता द्वारा इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन पर जांच अधिकारी के दावे महज राय थे, ना कि निर्णायक सबूत , और केवल उस आधार पर, ‘‘कोई धारणा नहीं बनाई जा सकती कि अधिकारी आरोपी का पक्ष ले रहा था।’’

अदालत ने कहा था, ‘‘मामले में जो दिखाई देता है, उससे कहीं अधिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की गई और जांच अधिकारी/सीबीआई का रवैया इस बात का संकेत देता है कि लड़की का बयान वर्तमान मामले में पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों के कथन को अविश्वसनीय ठहराने के उद्देश्य से दर्ज किया गया।


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