एक ओर भारत लगातार विभिन्न देशों के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास कर अपनी सैन्य क्षमता को नया आयाम दे रहा है, तो दूसरी ओर मित्र देशों के साथ हो रहे रणनीतिक रक्षा करार भारत की सामरिक शक्ति में ऐसी धार जोड़ रहे हैं, जिसकी काट आज किसी भी विरोधी राष्ट्र के पास नहीं है। इसी निर्णायक समय में भारतीय नौसेना द्वारा नये भारतीय समुद्री सिद्धांत 2025 का अनावरण उस व्यापक राष्ट्रीय-सुरक्षा दृष्टिकोण का हिस्सा है, जो भारत को आने वाले दशकों में हिंद–प्रशांत क्षेत्र का निर्णायक शक्ति केंद्र बनाने की तैयारी का संकेत देता है। यह वह भारत है जो अब सुरक्षा का उपभोक्ता नहीं, सुरक्षा का निर्माता बन चुका है और इसका प्रमाण जमीन से लेकर आसमान और समुद्र से लेकर सामरिक साझेदारियों तक हर स्तर पर स्पष्ट दिख रहा है।
हम आपको बता दें कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा से पहले रूस ने असैन्य परमाणु सहयोग को गहराने वाले समझौते पर हस्ताक्षर की मंजूरी दे दी और यह भारत की रणनीतिक सोच में एक नए अध्याय की शुरुआत है। रोसएटम को अधिकृत कर रूस ने संकेत दिया है कि भारत न सिर्फ़ छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों, बल्कि उन्नत परमाणु तकनीकों के स्थानीय निर्माण और तकनीकी हस्तांतरण का केंद्र बनेगा।
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इसके साथ ही नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने जिस नये समुद्री सिद्धांत का अनावरण किया है, वह साधारण दस्तावेज़ नहीं, यह एक रणनीतिक संकल्प है कि हिंद महासागर में भारत “प्रतिक्रियात्मक” नहीं बल्कि “नियामक” भूमिका में रहेगा। इसमें ‘युद्ध नहीं—शांति नहीं’ को युद्ध–शांति के बीच की एक नई श्रेणी के रूप में स्वीकार करना बताता है कि भारत अब पड़ोसी देशों की चालों से अनजान नहीं, बल्कि उनके संज्ञानात्मक, आर्थिक और सैन्य दबावों को समझते हुए हर स्थिति के लिए तैयार है। हम आपको बता दें कि भारतीय समुद्री सिद्धांत साइबर और स्पेस को युद्ध के प्रमुख आयाम मानता है, मानव रहित प्लेटफॉर्मों और स्वायत्त युद्ध प्रणालियों पर बल देता है, तीनों सेनाओं के बीच अभूतपूर्व संचालन-स्तरीय एकीकरण चाहता है, हिंद महासागर को “विकसित भारत 2047” का ऊर्जा–व्यापार–सामरिक पिलर घोषित करता है। स्पष्ट है कि भारत अब समुद्रों को सिर्फ व्यापार मार्ग नहीं, बल्कि शक्ति-प्रक्षेपण के मंच के रूप में देख रहा है।
इसके अलावा, इस समय चल रहे संयुक्त युद्धाभ्यास, भारत की मित्रता नहीं बल्कि शक्ति का वैश्विक प्रदर्शन है। मालदीव के साथ हो रहे ‘एकुवेरिन’ अभ्यास की बात करें तो आपको बता दें कि केरल में शुरू हुआ यह अभ्यास जंगल, तटीय और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में आतंकवाद-रोधी अभियानों की तैयारियों को नए स्तर पर ले जा रहा है। मालदीव जैसे छोटे लेकिन सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण देश के साथ भारत की यह भागीदारी बताती है कि हिंद महासागर में सुरक्षा का केंद्र भारत ही रहेगा।
वहीं नेपाल के साथ जारी सूर्यकिरण अभ्यास पिथौरागढ़ में चल रहा है। यह अभ्यास दोनों देशों के बीच सदियों पुराने संबंधों का सैन्य रूप है। यह पहाड़ी युद्ध, जंगल युद्ध और संवेदनशील सीमाई इलाकों में आतंकवाद-रोधी सहयोग भारत के उत्तरी मोर्चे को और सुदृढ़ करता है।
साथ ही ब्रिटेन के साथ चल रहे ‘अजेया वॉरियर’ के तहत अर्ध-शहरी इलाकों में कंपनी-स्तर की संयुक्त कार्रवाई दिखाती है कि भारत आधुनिक युद्ध के हर पहलू में ब्रिटेन जैसे सैन्य-परिपक्व राष्ट्र के बराबर खड़ा है। यह अभ्यास भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा का संकेत है।
वहीं इंडोनेशिया के साथ चल रहे ‘गरुड़ शक्ति’ अभ्यास में विशेष बलों की संयुक्त सर्जिकल स्ट्राइक, हेलिबोर्न ऑपरेशन, ड्रोन–C-UAS तकनीक का इस्तेमाल, संकेत देते हैं कि भारत अब इंडोनेशिया के साथ मिलकर दक्षिणी हिंद–प्रशांत क्षेत्र में शक्ति-संतुलन का नेतृत्व करेगा।
इसके अलावा, इजराइल से आपातकालीन प्रावधानों के तहत हेरॉन MK-2 की अतिरिक्त खरीद स्पष्ट संदेश है कि भारत “रिएक्शनरी” नहीं बल्कि “फ्यूचरिस्टिक” युद्ध रणनीति अपना रहा है। 35,000 फीट की ऊँचाई और 45 घंटे तक उड़ान क्षमता वाला ये ड्रोन सीमापार आतंकवाद और चीन–पाकिस्तान की गतिविधियों पर 24×7 नजर रखने का आधुनिक हथियार हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान के एफ-16 और जेएफ-17 को तबाह करने में इन ड्रोन की भूमिका ने साबित कर दिया कि भारत तकनीकी युद्ध में किसी भी शत्रु से दस कदम आगे है।
इसके अलावा, डीआरडीओ द्वारा 800 किमी/घंटा पर टेस्ट किया गया उन्नत एस्केप सिस्टम सिर्फ विज्ञान की उपलब्धि नहीं, यह सैनिक की जान बचाने का राष्ट्रीय व्रत है। हर आधुनिक विमान में यह तकनीक भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता को और निर्भय बनाती है। देखा जाये तो अब भारत उन गिने–चुने देशों में शामिल है जो इस स्तर का परीक्षण स्वयं कर सकते हैं— यह आत्मनिर्भर भारत की असली तस्वीर है।
बहरहाल, भारत आज जिस दिशा में बढ़ रहा है, वह स्पष्ट संकेत है कि उसकी रणनीति अब तटस्थ नहीं, निर्णायक है। रूस के साथ परमाणु–ऊर्जा और रक्षा सहयोग, हिंद महासागर में भारतीय नौसेना का उभार, इजराइल से आधुनिक ड्रोन खरीद, डीआरडीओ की आत्मनिर्भर क्षमताएँ, नेपाल, मालदीव, ब्रिटेन और इंडोनेशिया के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास, ये सब मिलकर एक ही संदेश देते हैं कि भारत अब वह राष्ट्र नहीं जिसे धमकाया या डराया जा सके। यह वह शक्ति है जिसकी आहट मात्र से शत्रु की नींद उड़ जाती है। नया भारत शांति चाहता है, पर शांति की रक्षा के लिए युद्ध की हर तैयारी पूरी रखता है। यही है 21वीं सदी का उभरता भारत, साहसी, आत्मनिर्भर और सामरिक रूप से अजेय।
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