DniNews.Live

Fast. Fresh. Sharp. Relevant News

Prabhasakshi NewsRoom: Tirupparankundram विवाद पर हिंदुओं के पक्ष में सीना तान कर खड़े हुए BJP-RSS

तमिलनाडु के तिरुप्परनकुंद्रम मंदिर में पारंपरिक दीपक जलाने को लेकर जिस तरह का विवाद खड़ा हुआ, उसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है और इसमें आरएसएस तथा भाजपा की स्पष्ट और निर्भीक भूमिका अब केंद्र में आ गई है। दोनों संगठनों ने न सिर्फ हिंदुओं के अधिकारों की आवाज बुलंद की है, बल्कि न्यायपालिका के सम्मान की रक्षा के मुद्दे पर भी बेहद दृढ़ रुख दिखाया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने साफ शब्दों में कहा है कि तमिलनाडु में हिंदुओं के भीतर जो चेतना उभरी है, वही तिरुप्परनकुंद्रम विवाद के समाधान के लिए पर्याप्त है। उनका संदेश स्पष्ट था कि हिंदू समाज अब जाग चुका है और अपनी परंपराओं पर अंकुश लगाने वाली किसी भी कोशिश को स्वीकार करने की मानसिकता में नहीं है।
हम आपको याद दिला दें कि बीते सप्ताह कार्तिगई दीपम उत्सव के दौरान तिरुप्परनकुंद्रम में तनाव भड़क उठा था। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै खंडपीठ पहले ही आदेश दे चुकी थी कि पहाड़ी मंदिर पर पारंपरिक दीप प्रज्वलित किया जाए लेकिन पुलिस ने श्रद्धालुओं को ऐसा करने से रोक दिया था। हिंदू तमिलर कच्ची के संस्थापक राम रविकुमार की याचिका पर न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने राज्य प्रशासन को निर्देश दिया था कि पवित्र दीपक पहाड़ी की चोटी पर जलाया जाए। लेकिन सरकारी अधिकारियों ने इस पर आपत्ति जताई थी।

इसे भी पढ़ें: लोगों को संघ के बारे में समझाने के लिए व्यापक जन सहभागिता की आवश्यकता : Mohan Bhagwat

तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में आरएसएस के “100 इयर्स ऑफ़ संघ जर्नी– न्यू होराइजन्स” कार्यक्रम में जब आरएसएस प्रमुख से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर तिरुप्परनकुंद्रम मुद्दे को बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी तो किया जाएगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसकी आवश्यकता है। मामला अदालत में है, उसे सुलझने दिया जाए। तमिलनाडु में हिंदुओं का जागरण ही पर्याप्त है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि परिस्थिति की मांग हुई तो राज्य में सक्रिय हिंदू संगठन आरएसएस को मार्गदर्शन देंगे। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत हुई तो तमिलनाडु के हिंदू संगठन हमें बताएंगे, फिर हम विचार करेंगे। भागवत ने कहा कि मेरा मानना है कि यह मुद्दा यहीं हिंदुओं की सामूहिक शक्ति से सुलझ जाएगा, इसे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भागवत ने साफ कहा कि समाधान हिंदुओं के पक्ष में ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक बात निश्चित है कि मामला हिंदुओं के अनुकूल ही सुलझना चाहिए, इसके लिए हम जो भी आवश्यक होगा करेंगे।
हम आपको बता दें कि लोकसभा में बुधवार को विपक्षी इंडिया गठबंधन के 100 से अधिक सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक पत्र सौंपकर न्यायमूर्ति स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग उठाई है। उनका आरोप है कि उन्होंने सुब्रमण्य स्वामी मंदिर प्रशासन को एक दरगाह के पास स्थित पत्थर के खंभे पर पारंपरिक दीप जलाने का निर्देश दिया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर “तुष्टिकरण” की राजनीति का आरोप लगाया है। लोकसभा में चुनावी सुधारों पर बहस के दौरान उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद पहली बार केवल एक फैसले के आधार पर किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश की जा रही है।
अमित शाह ने कहा, “यह आज़ादी के बाद कभी नहीं हुआ कि एक जज को उसके फैसले के लिए महाभियोग का सामना करना पड़े। विपक्ष यह सिर्फ अपने वोटबैंक को खुश करने के लिए कर रहा है।” उन्होंने यह भी आश्चर्य जताया कि शिवसेना (यूबीटी) ने भी इस याचिका पर हस्ताक्षर किए।
देखा जाये तो तिरुप्परनकुंद्रम का विवाद अब सिर्फ एक दीपक जलाने का सवाल नहीं रह गया है, यह इस बात का प्रतीक बन चुका है कि परंपरा, आस्था और न्यायिक निर्णयों को राजनीतिक तुष्टिकरण के दबाव में कब तक झुकाया जाएगा। अदालत साफ कहती है कि परंपरा का सम्मान हो, जबकि राज्य सरकार बहाना बनाती है। खासतौर पर जब एक न्यायाधीश पर सिर्फ इसलिए महाभियोग लाने की कोशिश होती है कि उसने हिंदू परंपरा के अनुरूप निर्णय दिया, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ पर राजनीतिक कुल्हाड़ी चलाने जैसा है।
मोहन भागवत का यह कहना कि तमिलनाडु के हिंदुओं का जागरण ही काफी है, असल में एक सख्त संदेश है कि हिंदू समाज अब अपनी परंपराओं पर चोट बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। विपक्ष द्वारा न्यायमूर्ति स्वामीनाथन पर महाभियोग का प्रयास इस जागरण को और तेज ही करेगा। यहां सवाल यह भी उठता है कि यह देश कब तक तुष्टिकरण के नाम पर अपने ही धार्मिक समुदाय की परंपराओं को कमजोर करता रहेगा? कब तक न्यायपालिका को वोटबैंक की राजनीति के आगे डराने की कोशिश की जाएगी? देखा जाये तो यह मामला सिर्फ तमिलनाडु का या आरएसएस का नहीं, यह भारतीय समाज के आत्मसम्मान का प्रश्न है।
बहराहल, अब देखना यह है कि अदालत का अंतिम फैसला क्या आता है। परन्तु एक बात स्पष्ट है कि हिंदू परंपराओं को अदालत के आदेश के बावजूद रोकने की कोशिश करने वालों की सियासत का सच धीरे-धीरे बेनकाब हो रहा है। समाज का यह जागरण ही भविष्य का निर्णायक मोड़ तय करेगा।


https://ift.tt/2whuedL

🔗 Source:

Visit Original Article

📰 Curated by:

DNI News Live

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *