Nobel Prize 2025: साहित्य के नोबेल पर हंगरी का परचम, लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई बने विजेता

Nobel Prize 2025: साहित्य के नोबेल पर हंगरी का परचम, लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई बने विजेता

साहित्य के नोबेल पुरस्कार-2025 का ऐलान कर दिया गया है. ये पुरस्कार हंगरी के लेखक लास्ज़लो क्राज़्नाहोरकाई को उनकी दूरदर्शी कृति के लिए दिया जाएगा, जो सर्वनाशकारी आतंक के बीच कला की शक्ति की पुष्टि करता है. पुरस्कार का ऐलान करते हुए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज की ओर से कहा गया, साहित्य में 2025 के नोबेल पुरस्कार विजेता लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई भी पूर्व की ओर अधिक चिंतनशील, सूक्ष्म रूप से संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हैं. इसका परिणाम चीन और जापान की उनकी यात्राओं से उत्पन्न गहरे प्रभावों से प्रेरित रचनाओं की एक सीरीज है.

उनका 2003 का उपन्यास ‘एज़्ज़क्रोल हेगी, डेल्रोल टो, न्युगाट्रोल उताक, केलेट्रोल फोल्यो’ शक्तिशाली काव्यात्मक अंशों वाली एक रहस्यमयी कहानी है, जो क्योटो के दक्षिण-पूर्व में घटित होती है. यह कृति समृद्ध कृति ‘सियोबो जार्ट ओडालेंट’ (2008; ‘सियोबो देयर बिलो’, 2013) की प्रस्तावना का आभास देती है, जो अनित्यता की दुनिया में सौंदर्य और कलात्मक सृजन की भूमिका के बारे में फिबोनाची क्रम में व्यवस्थित 17 कहानियों का कलेक्शन है.

लास्जलो के बारे में कुछ खास बातें

महाकाव्यों के अपने पंचक के साथ, यह क्राज़्नाहोरकाई की प्रमुख कृति का प्रतिनिधित्व करती है. यह किताब एक उत्कृष्ट चित्रण है, जिसके दौरान पाठक को ‘पार्श्व द्वारों’ की एक पंक्ति से होते हुए सृजन के अकथनीय कार्य तक ले जाया जाता है. बात करें लास्जलो के व्यक्तिगत जीवन की उनका जन्म 1954 में दक्षिण-पूर्वी हंगरी के छोटे से कस्बे ग्युला में, रोमानियाई सीमा के पास हुआ था. लास्जलो का पहला उपन्यास ‘सातांतंगो’ 1985 में प्रकाशित हुआ था.

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यह उपन्यास बेहद प्रभावशाली शब्दों में साम्यवाद के पतन से ठीक पहले हंगरी के ग्रामीण इलाकों में एक परित्यक्त सामूहिक खेत में रहने वाले एक बेसहारा निवासियों के समूह की बात करता है. उपन्यास में बताया गया है कि कैसे हर कोई किसी चमत्कार के होने का इंतज़ार कर रहा है, एक ऐसी उम्मीद जो किताब के शुरुआती काफ़्का के आदर्श वाक्य: ‘अगर ऐसा हुआ तो, मैं उस चीज़ का इंतज़ार करके उसे खो दूंगा’, से शुरू से ही टूट जाती है. इस उपन्यास पर निर्देशक बेला तार के सहयोग से 1994 में एक बेहद मौलिक फ़िल्म बनाई गई थी.

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