म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के पांच साल बाद रविवार को कड़ी सुरक्षा और पाबंदियों के बीच मतदान शुरू हुआ। जहां सत्ताधारी सैन्य जुंटा इसे ‘लोकतंत्र की वापसी’ बता रहा है, वहीं विपक्षी दलों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे एक ‘दिखावा’ करार दिया है।
क्यों विवादों में है यह चुनाव?
लोकप्रिय नेता जेल में
देश की सबसे बड़ी नागरिक नेता आंग सान सू की अभी भी 27 साल की सजा काट रही हैं। उनकी पार्टी को भंग कर दिया गया है और वह इस चुनाव का हिस्सा नहीं है।
वोटरों की बेरुखी
2020 के चुनावों में जहां लंबी कतारें लगी थीं, वहीं इस बार मतदान केंद्रों पर सन्नाटा पसरा रहा। यांगून और मांडले जैसे बड़े शहरों में वोटरों से ज्यादा सुरक्षाकर्मी और पत्रकार नजर आए।
अधूरा चुनाव
देश गृह युद्ध की चपेट में है। विद्रोही समूहों के कब्जे वाले इलाकों में मतदान नहीं हो रहा है। सेना ने खुद माना है कि निचले सदन की लगभग 20% सीटों पर चुनाव कराना संभव नहीं है।
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दमन और पाबंदियां
संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों ने इस चुनावी प्रक्रिया की कड़ी निंदा की है। मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तुर्क के अनुसार, यह चुनाव ‘हिंसा और दमन’ के माहौल में हो रहा है। जुंटा सरकार ने चुनाव का विरोध करने या आलोचना करने के आरोप में 200 से अधिक लोगों पर मुकदमा चलाया है।
क्या कह रहे हैं लोग?
यांगून के एक केंद्र पर वोट देने पहुंचे 63 वर्षीय बो सॉ ने कहा, ‘हमारी पहली प्राथमिकता शांति और सुरक्षा बहाल करना होनी चाहिए।’
वहीं, जंगलों में छिपे विद्रोही समूहों और विस्थापित लोगों में भारी गुस्सा है। हवाई हमलों से बचकर भाग रही 40 वर्षीय मो मो म्यिंट ने कहा, ‘जब इस सेना ने हमारी जिंदगी बर्बाद कर दी है, तो हम उनके चुनाव का समर्थन कैसे कर सकते हैं? यह चुनाव कभी निष्पक्ष नहीं हो सकता।’
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क्या है सेना का इरादा?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह चुनाव सैन्य समर्थक ‘यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी’ को सत्ता दिलाने का एक जरिया है। इसे ‘मार्शल लॉ’ को नया रूप देने की कोशिश कहा जा रहा है। सैन्य प्रमुख मिन आंग हलिंग ने इसे सुलह का रास्ता बताया है, लेकिन विपक्षी गुटों ने साफ कर दिया है कि वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
अगले चरण
यह चुनाव तीन चरणों में होना है। दूसरा चरण दो हफ्ते बाद होगा, जबकि आखिरी चरण 25 जनवरी को निर्धारित है।
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