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LoC के उस पार हुआ व्यापार J&K के भीतर का व्यापार माना जायेगा क्योंकि PoK हमारा ही हैः हाईकोर्ट का स्प्ष्ट फैसला

जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की एक डिविजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के बीच हुआ क्रॉस-LoC व्यापार वास्तव में अंतर-राज्यीय नहीं, बल्कि राज्य के भीतर (intra-state) व्यापार माना जाएगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान के कब्जे में मौजूद क्षेत्र भी कानूनी रूप से जम्मू-कश्मीर का ही हिस्सा है, इसलिए LoC के आर-पार होने वाला व्यापार राज्य के अंदर ही हुआ माना जाएगा।
हम आपको बता दें कि न्यायमूर्ति संजीव कुमार और न्यायमूर्ति संजय परीहार की बेंच 2008 से शुरू हुए क्रॉस-LoC ट्रेड से जुड़े उन मामलों पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें व्यापारियों को CGST अधिनियम 2017 के तहत नोटिस जारी किए गए थे। अदालत ने कहा, “यह बात विवादित नहीं है कि राज्य का वह हिस्सा जो इस समय पाकिस्तान के कब्जे में है, वास्तव में जम्मू-कश्मीर प्रदेश का ही हिस्सा है। अतः आपूर्तिकर्ताओं का स्थान और आपूर्ति का स्थान, दोनों ही जम्मू-कश्मीर के भीतर आए, इसलिए यह व्यापार intra-state ही माना जाएगा।”
हम आपको बता दें कि याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि 2008 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच विश्वास-निर्माण उपायों के तहत यह व्यापार शुरू हुआ था, तब जम्मू-कश्मीर वैट कानून लागू था, जिसके अनुसार यह व्यापार ज़ीरो-रेटेड माना जाता था। लेकिन 2017 में GST लागू होने के बाद, कर अधिकारियों ने व्यापारियों की inward और outward आपूर्ति की जांच शुरू की और बड़े पैमाने पर हुई आपूर्ति के आधार पर उन्हें नोटिस जारी किए।
व्यापारियों ने यह भी तर्क दिया कि यह व्यापार बार्टर सिस्टम पर आधारित था— अर्थात सामान के बदले सामान, इसलिए टैक्स मांगना अनुचित है। हालांकि अदालत ने इस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया और सभी याचिकाएँ खारिज कर दीं। हम आपको बता दें कि क्रॉस-LoC ट्रेड 2008 में उन दो महत्वपूर्ण confidence-building measures में से एक था, जिनमें दूसरा था 2005 में शुरू हुई कारवां-ए-अमन बस सेवा। हालांकि 2019 में केंद्र सरकार ने इसी आधार पर यह व्यापार निलंबित कर दिया था कि इसके माध्यम से हथियार, नशीले पदार्थ और नकली मुद्रा की तस्करी हो रही थी।
देखा जाये तो जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का यह फैसला कानूनी स्पष्टता, संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय हित, तीनों मोर्चों पर अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से इसलिए क्योंकि यह निर्णय सिर्फ कर विवाद से आगे बढ़कर उस ऐतिहासिक और संवैधानिक सत्य को पुनः स्थापित करता है जिसे लेकर भारत का रुख हमेशा से एकदम स्पष्ट रहा है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा है। न्यायालय ने इसी मूलभूत सिद्धांत को आधार बनाते हुए क्रॉस-LoC व्यापार की प्रकृति को परिभाषित किया, जो पूरी तरह तार्किक, न्यायसंगत और संवैधानिक भावना के अनुरूप है।

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सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि अदालत ने तकनीकी कानूनी तर्कों में उलझने की बजाय उस व्यापक राजनीतिक-कानूनी वास्तविकता को ध्यान में रखा, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। अगर व्यापार LoC के आर-पार हुआ भी, तो भी दोनों क्षेत्र एक ही राज्य की सीमा के भीतर आते हैं, यह सिद्धांत अदालत ने अत्यंत स्पष्टता से रखा। इस तरह अदालत ने न सिर्फ कर अधिकारियों को दिशा दिखाई बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी प्रकार की प्रशासनिक व्याख्या भारत के क्षेत्रीय दावों के विपरीत न जाए।
फैसले की दूसरी अहम विशेषता यह है कि अदालत ने याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए बार्टर ट्रेड जैसे तकनीकी तर्कों को भी ठोस तर्कों से खारिज किया। बार्टर ट्रेड होने का यह अर्थ नहीं कि टैक्स कानून लागू नहीं हो सकता। अदालत ने इस बिंदु पर बिल्कुल सटीक टिप्पणी की और यह सुनिश्चित किया कि ‘शून्य-रेटेड’ होने का पुराना प्रावधान GST युग में स्वतः लागू नहीं माना जा सकता। यह न्यायपालिका की आर्थिक समझदारी और विधिक सतर्कता का मजबूत उदाहरण है।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील के निष्पक्ष रुख की सराहना भी की, जो दिखाता है कि न्यायालय कानूनी पेशे के नैतिक आचरण की भी उतनी ही कद्र करता है जितनी कानून की व्याख्या की। इससे न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा और पारदर्शिता और मजबूत होती है।
सबसे अधिक प्रशंसा योग्य तथ्य यह है कि यह फैसला किसी राजनीतिक बयान की तरह नहीं, बल्कि कानूनन समर्थित न्यायिक घोषणा की तरह सामने आता है। इसमें न तो अतिशयोक्ति है, न अनावश्यक विस्तार, सिर्फ स्पष्ट तथ्यों के आधार पर स्थापित न्यायिक निष्कर्ष है। यही न्यायपालिका की वह ताकत है जो उसे राष्ट्र के संवैधानिक ढांचे का सबसे भरोसेमंद स्तंभ बनाती है।
बहरहाल, यह निर्णय न सिर्फ कर विवाद का समाधान है बल्कि यह एक बेहद ठोस संदेश भी देता है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला क्षेत्र भारत का ही हिस्सा है और उससे जुड़ी सभी गतिविधियों का मूल्यांकन भी भारत की संवैधानिक दृष्टि से ही किया जाएगा। इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का यह फैसला सिर्फ कानूनी जीत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक संप्रभुता का भी सशक्त प्रतिपादन है।


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