सीवान शहर के टाउन हॉल में जदयू द्वारा आयोजित कार्यकर्ता सम्मान समारोह उस वक्त विवादों में घिर गया, जब बड़हरिया से जदयू विधायक इंद्रदेव पटेल मंच से अपना संयम खो बैठे। एनडीए गठबंधन की सात विधानसभा सीटों पर जीत के जश्न के लिए बुलाए गए इस कार्यक्रम में विधायक का बयान न केवल उनकी ही पार्टी और सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर गया, बल्कि प्रशासन और चुनाव आयोग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े कर गया। कार्यक्रम में बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार सहित जदयू के कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे। अपने संबोधन के दौरान विधायक इंद्रदेव पटेल ने रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर जदयू प्रत्याशी की हार का ठीकरा सीधे प्रशासन और बिहार सरकार पर फोड़ दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार सरकार और जिला प्रशासन ने जानबूझकर जदयू उम्मीदवार को हराया और अधिकारियों को अपशब्दों में संबोधित करते हुए उन्हें “घटिया” तक कह डाला। ”ऐसा बौना और घटिया प्रशासन कभी नहीं देखा” विधायक ने कहा कि वर्ष 2005 के बाद ऐसा “बौना और घटिया” प्रशासन कभी नहीं देखा। उनका दावा था कि मतदान के दिन रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में चार से छह बजे तक बूथों पर कब्जा किया गया और प्रशासन टुकुर-टुकुर यानि मूकदर्शक बना रहा। इस बयान के जरिए उन्होंने न केवल जिला प्रशासन, बल्कि चुनाव आयोग के भयमुक्त और निष्पक्ष चुनाव के दावों पर भी सीधा हमला कर दिया। हालांकि विधायक के इस आरोप के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि प्रशासन इतना ही “घटिया” था, तो उसी प्रशासन की देखरेख में सीवान की आठ में से सात विधानसभा सीटों पर एनडीए की जीत कैसे हुई? क्या सात सीटों पर प्रशासन ने अच्छा काम किया और केवल एक सीट पर ही उसकी भूमिका संदिग्ध हो गई? यह विरोधाभास विधायक के बयान की गंभीरता और विश्वसनीयता दोनों पर सवाल खड़ा करता है। किसी भी बड़े प्रशासनिक अधिकारी का ट्रांसफर-पोस्टिंग नहीं हुआ इसके अलावा, यह तथ्य भी सामने आ रहा है कि सीवान में चुनाव के दौरान किसी भी बड़े प्रशासनिक अधिकारी का ट्रांसफर-पोस्टिंग नहीं हुआ था। सामान्य प्रशासन और गृह विभाग दोनों की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास थी। ऐसे में विधायक द्वारा खुले मंच से अपने ही मुख्यमंत्री के निर्णयों और प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाना पार्टी के भीतर असंतोष की तस्वीर पेश करता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सत्ता में रहते हुए संवैधानिक पद पर बैठे जनप्रतिनिधि द्वारा मंच से वरीय प्रशासनिक अधिकारियों, खासकर जिला पदाधिकारी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग करना न केवल असंवैधानिक मर्यादाओं के खिलाफ है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था का मनोबल गिराने वाला भी है। आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक हलकों में भी चर्चा तेज अब विधायक के इस बयान को लेकर आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक हलकों में भी चर्चा तेज है। सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव में हार की जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय प्रशासन और चुनाव आयोग पर आरोप मढ़ना लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप है? साथ ही, जब विपक्ष पहले से ही चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाता रहा है, तब सत्ता पक्ष के विधायक का ऐसा बयान लोकतंत्र के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकता है—यह आने वाले दिनों में और गहराई से चर्चा का विषय बनने वाला है।
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