International Day of Older Persons: अपनों ने हर कदम पर छोड़ा साथ, फिर भी नहीं हारी हिम्मत… 85 साल के शख्स की दर्दभरी कहानी

International Day of Older Persons: अपनों ने हर कदम पर छोड़ा साथ, फिर भी नहीं हारी हिम्मत… 85 साल के शख्स की दर्दभरी कहानी

मध्य प्रदेश के जबलपुर में अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर एक भावनात्मक दृश्य देखने को मिला. शहर में आयोजित विशेष कार्यक्रम में वृद्धाश्रमों से कई बुजुर्गों को आमंत्रित किया गया था ताकि समाज को यह संदेश दिया जा सके कि बुजुर्गों की उपेक्षा नहीं, बल्कि सम्मान होना चाहिए. इसी कार्यक्रम में जब 85 वर्षीय टोनी जोसेफ मंच पर कैटवॉक करते नजर आए तो उपस्थित सभी दर्शक तालियां बजाने लगे. उनके आत्मविश्वास और मुस्कान ने सबका दिल जीत लिया.

85 वर्षीय टोनी जोसेफ ने कहा कि रेगिस्तान में खजूर के पेड़ की तरह मैं अकेला रह गया. वर्तमान में जबलपुर के एक वृद्धाश्रम में रहता हूं. 55 साल पहले पत्नी ने साथ छोड़ दिया. 2010 में मां का देहांत हो गया और अमेरिका में छोटी बहन रहती थी जिसकी कोरोना के दौरान मौत हो गई. अब रही बात बेटे की तो 35 साल पहले बेटे भी छोड़ कर चले गए. उन्होंने अपने जीवन की कहानी साझा करते हुए बताया कि कभी वह एक संपन्न परिवार से थे. उनके बेटे को बचपन में जबलपुर में और इसके बाद दिल्ली में उच्च शिक्षा दिलाने के बाद उसका चयन दुबई की एक नामी कंपनी में हो गया. परिवार के सपने थे कि बेटा विदेश जाकर तरक्की करे और परिवार का नाम रोशन करे, लेकिन वक्त ने कुछ और ही लिखा था. बेटा विदेश चला गया और उसके बाद कभी लौटकर नहीं आया, न ही संपर्क किया. टोनी जोसेफ ने बताया कि उन्होंने 1988 में दुबई सरकार एवं राजदूत को पत्र लिखा लेकिन उसका आज तक कोई जवाब नहीं आया.

बेटे से आज तक नहीं हुआ संपर्क

85 वर्षीय टोनी जोसेफ ने कहा कि आज तक उन्होंने वोट नहीं किया, ना ही उन्हें किसी भी योजना का लाभ मिलता है. वर्तमान में वह रिमझा के वृद्ध आश्रम रहते हैं, जहां पर खाने पीने से लेकर हर चीज की उपलब्धता होती है. इसके लिए उन्होंने ईश्वर का भी धन्यवाद किया. बेटे के संपर्क को लेकर कहा कि में ईसाई समाज का हूं. हमारे ग्रंथ बाइबल में लिखा है कि जब बेटे की शादी हो जाती है तो उसका भी परिवार हो जाता है. और मां-बाप से दूर हो जाता है, बस हम इसी पद्धति को लेकर आगे चल रहे हैं.

दुबई दूतावास को लिख चुके हैं पत्र

टोनी ने कहा कि उन्होंने दुबई के दूतावास से लेकर सरकारी तंत्र तक, हर जगह पत्र लिखे, बेटे का पता लगाने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. फिर धीरे-धीरे उम्मीद छोड़ दी. एक साल पहले अटैक आ गया जिसकी वजह से उन्हें मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहीं डॉक्टर सोहेल सिद्दकी ने जब उनके परिवार के बारे में पूछा तो टोनी ने कहा सब हैं, पर कोई पास नहीं है. उनकी स्थिति समझकर डॉक्टर सोहेल सिद्दीकी ने उन्हें वृद्धाश्रम में भिजवा दिया. अब वही उनका परिवार हैं. टोनी कहते हैं कि दवाई से लेकर तमाम खर्च अब डॉक्टर सिद्दीकी ही उठाते हैं.

‘मैंने जीना नहीं छोड़ा’

टोनी ने आगे कहा कि मेरे अपने होते हुए भी मैं अकेला हूं. लेकिन मैंने जीना नहीं छोड़ा. अब मैं हर दिन को मुस्कराकर जीता हूं. उनकी कैटवॉक ने यह संदेश दिया कि उम्र चाहे जो भी हो जिंदगी को जीने का जज्बा कभी कम नहीं होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर टोनी जोसेफ की यह झलक न केवल समाज के लिए प्रेरणा बनी, बल्कि यह भी याद दिलाया कि बुजुर्ग हमारे अनुभव, आशीर्वाद और संस्कारों के प्रतीक हैं. जिन्हें प्यार और सम्मान मिलना ही सच्चा उत्सव है.

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