‘मेरे साथ IAS संजीव हंस और झंझारपुर के पूर्व विधायक गुलाब यादव ने गैंगरेप किया। मेरा मुंह बंद करने के लिए रेप का लाइव वीडियो बनाया। कभी धमकी देकर तो कभी नशे की दवा खिलाकर गैंगरेप किया। कई बार गर्भपात कराया, इसके बाद मेरा एक बच्चा हुआ, वह संजीव हंस का है।’ ये आरोप इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक महिला वकील ने 1997 बैच के IAS अधिकारी संजीव हंस पर लगाए थे। FIR हुई, हाईकोर्ट तक मामला पहुंचा। संजीव हंस की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद हाईकोर्ट ने इस केस को रद्द कर दिया। मतलब बरी कर दिया। इसी केस की जांच में मनी लॉन्ड्रिंग का खुलासा हुआ। ED की एंट्री हुई, लेकिन जांच एजेंसी एक साल में ना चार्ज फ्रेम कर पाई और ना ट्रायल करा सकी। नतीजा हुआ कि 18 अक्टूबर 2025 को संजीव हंस को पटना हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद 15 दिसंबर को उनका सस्पेंशन खत्म हुआ। 30 दिसंबर को सरकार ने नई पोस्टिंग दे दी। संजीव हंस पर रेप का केस खत्म हो गया है, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग में ED की जांच अभी जारी है। IAS अफसर संजीव हंस कौन हैं? हाईकोर्ट की महिला वकील उनसे कैसे मिली, उसने क्या आरोप लगाए? जांच के दौरान कैसे मनी लॉन्ड्रिंग का मामला सामने आया? पढ़िए खास रिपोर्ट… महिला ने IAS संजीव हंस और झंझारपुर के पूर्व RJD विधायक गुलाब यादव पर पुणे और दिल्ली में गैंगरेप का आरोप लगाया। 16 नवंबर 2021 को दानापुर के ACJM कोर्ट में शिकायत की। कोर्ट के निर्देश पर 6 जनवरी 2023 को पटना के रूपसपुर थाने में FIR दर्ज हुई। महिला के आरोप, उसी की जुबानी… जो कोर्ट में दिए मैं 2009 से वकील के तौर पर प्रैक्टिस कर रही हूं। 2016 में पटना आई थी। एक साथी वकील ने मेरी मुलाकात गुलाब यादव से कराई। गुलाब ने महिला आयोग का सदस्य बनाने का लालच देकर बायोडाटा के साथ बिंदेश्वरी अपार्टमेंट बुलाया। बताए गए पते पर पहुंची तो गुलाब यादव ने बंदूक की नोक पर मेरे साथ रेप किया। मैं पुलिस के पास शिकायत करने जा रही थी तो अपने नौकर से सिंदूर मंगाया और मेरी मांग भर दी। कहा कि अपनी पहली पत्नी से तलाक ले लेगा। 8 जुलाई 2017 को गुलाब यादव ने पुणे के होटल बेस्टिल में अपने तलाक के पेपर दिखाने के लिए बुलाया। वहां उसने मेरी मुलाकात संजीव हंस के कराई। खाने में नशे की दवा मिला दिया। मैं बेहोश हो गई तो दोनों ने रेप किया। होश आया तो गुलाब ने मुझे रेप का वीडियो दिखाया और वायरल करने की धमकी दी। मैं डर गई और इलाहाबाद में रहने लगी। उस समय प्रेग्नेंट हो गई थी। इसकी जानकारी गुलाब यादव को दी तो उसने गर्भपात करा दिया। वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए गुलाब यादव ने मुझे दिल्ली के अशोका होटल, पार्क एवेन्यू होटल और ले मेरिडियन होटल में अलग-अलग दिन बुलाया। वहां संजीव हंस भी मौजूद होते थे। दोनों ने मिलकर गैंगरेप किया। मैं गर्भवती हो गई। दोनों को इसकी जानकारी दी तो वे जान से मारने की धमकी देने लगे। 25 अक्टूबर को मुझे एक बेटा हुआ। मैंने इसकी जानकारी गुलाब यादव को दी तो उसने कहा कि मैंने तो अपनी नसबंदी करा ली है। मैंने संजीव हंस से संपर्क किया तो वह भी मुकरने लगे। इसके बाद रूपसपुर थाने में FIR कराने गई तो वहां FIR नहीं हुआ। बाद में SP के पास गई तो उन्होंने भी मुझे लौटा दिया।’ मामले की जांच और कोर्ट का जजमेंट FIR दर्ज होने के बाद बिहार पुलिस ने जांच शुरू की। महिला की मेडिकल जांच कराई गई, लेकिन घटना पुरानी होने से सबूत जुटाना मुश्किल था। पुलिस ने हंस और यादव से पूछताछ की, लेकिन दोनों ने आरोपों से इनकार कर दिया। हंस ने दावा किया कि यह उनके खिलाफ साजिश है। महिला से उनकी कोई जान-पहचान नहीं है। पुलिस को भी इसके ठोस सबूत नहीं मिले। संजीव हंस ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें FIR रद्द करने की मांग की। उनके वकीलों ने तर्क दिया कि शिकायत देर से की गई। घटना 2017 की है। शिकायत 2023 में की गई। यह राजनीतिक दुश्मनी से प्रेरित है। 6 अगस्त 2024 को पटना हाईकोर्ट ने हंस के पक्ष में फैसला सुनाया और रेप केस को क्वैश (रद्द) कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सबूत पर्याप्त नहीं हैं। मामले में देरी संदेह पैदा करती है। इससे हंस को बड़ी राहत मिली, लेकिन गुलाब यादव पर केस चल रहा है। 5 पॉइंट में जानें कोर्ट ने किस आधार पर FIR रद्द किया 1. देरी और स्पष्टीकरण की कमी: महिला ने घटना के लगभग 5 साल बाद 2021 में शिकायत किया। कोर्ट ने माना कि इस देरी का महिला ने कोई संतोषजनक वजह नहीं बताया। यह आरोपों को अतिशयोक्तिपूर्ण (बढ़ा-चढ़ाकर बताना) और बाद के विचार की उपज बनाता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों (जैसे प्रियंका श्रीवास्तव बनाम यूपी राज्य, 2015 इसके अलावा अन्य) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसी देरी घातक है। FIR रद्द की जानी चाहिए। 2. FIR दर्ज करने में प्रक्रिया का उल्लंघन: शिकायतकर्ता ने CrPC की धारा 154(3) का पालन नहीं किया। उसने SP को लिखित शिकायत नहीं भेजी। कोई सबूत नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार शपथ-पत्र दाखिल नहीं किया गया। मजिस्ट्रेट ने 18.11.2021 को इस कमी को नोट किया, लेकिन फिर भी 06.01.2023 को FIR दर्ज करने का आदेश दिया। यह प्रक्रिया का उल्लंघन है। कोर्ट ने प्रियंका श्रीवास्तव मामले का हवाला दिया। इसके अनुसार शपथ-पत्र अनिवार्य है ताकि झूठे मामलों को रोका जा सके। 3. आरोपों की विश्वसनीयता और दुर्भावना: पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट (31.05.2022) में संजीव हंस के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। आरोप लगाने वाली महिला ने हॉस्पिटल रिकॉर्ड में खुद को गुलाब यादव की पत्नी बताया। बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में गुलाब यादव को उसका पिता बताया। कोर्ट ने माना कि शिकायत करने वाली महिला खुद एक परिपक्व वकील है, जिसने सहमति से संबंध बनाए रखे और बाद में दुर्भावना से याचिकाकर्ता (संजीव हंस) को फंसाया। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों (जैसे नईम अहमद बनाम दिल्ली राज्य, 2023; राजीव थापर बनाम मदन लाल कपूर, 2013) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां आरोप झूठे और बदले की भावना से प्रेरित हैं, FIR रद्द की जानी चाहिए। कोर्ट ने भजन लाल मामले (1992) की श्रेणी 7 का उल्लेख किया। जहां दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही रद्द की जाती है। 4. पुलिस जांच और सबूत: पुलिस रिपोर्ट से साफ था कि संजीव हंस को अपराध से जोड़ने वाला कोई सबूत नहीं। शिकायत करने वाली महिला ने तथ्यों (जैसे- वैवाहिक संबंध और बच्चे का पिता कौन) को दबाया। कोर्ट ने माना कि मुकदमा आगे बढ़ाना कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। 5. धारा 340 के तहत आवेदन: शिकायतकर्ता के धारा 340 CrPC के तहत आवेदन (तथ्य दबाने का आरोप) को खारिज किया गया, क्योंकि याचिकाकर्ता (IAS अधिकारी) का सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल करना अलग कार्यवाही थी। इसका उल्लेख आवश्यक नहीं था। कुल मिलाकर, कोर्ट ने संजीव हंस के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने माना कि मामला दुर्भावनापूर्ण और जानबूझकर फंसाने की कोशिश है, इसलिए FIR रद्द की जानी चाहिए। हालांकि, इस केस से हंस की छवि को काफी नुकसान हुआ। संजीव हंस ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव के साथ-साथ बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड (BSPHCL) के सीएमडी थे। बिहार सरकार ने उन्हें ऊर्जा विभाग से हटा दिया। जांच के दौरान उनके वित्तीय लेन-देन पर नजर रखी जाने लगी। इनके पैसे की लेनी-देनी के मामले सामने आए। संजीव हंस केस में ED की एंट्री कैसे हुई? पुलिस की जांच में पीड़िता के खाते में पैसे आने के सबूत मिले। पैसे कहां से जमा होते थे, इसकी जांच की गई। एसएसपी की रिपोर्ट में गवाह सुनील सिन्हा के हवाले से कहा गया कि मकान, जमीन और गाड़ी लेने के नाम पर 5 करोड़ रुपए देने की बात सामने आई है। इसका वीडियो फुटेज भी सबूत के तौर पर पुलिस को दिया गया। एसएसपी की रिपोर्ट में चंडीगढ़ के रिसॉर्ट और मर्सिडीज से लेकर अरबों रुपए की संपत्तियों का उल्लेख है। एसएसपी की रिपोर्ट में रेप केस के गवाह सुनील सिन्हा के बयान को स्पेशल विजलेंस को भेजने का उल्लेख है। इसमें सुनील सिन्हा ने बताया है कि चंडीगढ़ में संजीव हंस ने एक रिसॉर्ट 95 करोड़ रुपए में खरीदा है। यह सुरेश प्रसाद सिंघल के नाम पर है। सुनील सिन्हा ने यह भी बयान दिया कि प्रीपेड मीटर वालों ने एक मर्सिडीज कार संजीव हंस को गिफ्ट की। इतना ही नहीं, प्रीपेड मीटर वालों से जो पैसा मिला, उसे संजीव हंस ने सहारा में जमीन लेने के लिए गुलाब यादव और सुभाष यादव के साथ लगाया है। एसएसपी ने सुनील सिन्हा के बयान के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर गोपनीय तरीके से अपर पुलिस महानिदेशक स्पेशल विजिलेंस विशेष सतर्कता इकाई को भेजने का निर्देश दिया था। इसके बाद ही जांच एजेंसियां एक्टिव हुईं और संजीव हंस के साथ गुलाब यादव के ठिकानों पर रेड की। ईडी ( प्रवर्तन निदेशालय) ने जुलाई 2024 में मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। ईडी का दावा था कि हंस ने ऊर्जा विभाग में पद पर रहते हुए टेंडरों में घूस ली और यादव के साथ मिलकर संपत्ति अर्जित की। सितंबर 2024 में ईडी ने हंस के ठिकानों पर छापे मारे, जहां 40 लाख रुपए नकद, सोना-चांदी और दस्तावेज जब्त किए। ईडी की जांच ने खुलासा किया कि हंस ने 2018-2023 के बीच 100 करोड़ रुपए की संपत्ति जमा की, जो उनकी आय से ज्यादा थी। उन्होंने पावर सेक्टर के कॉन्ट्रैक्ट्स में घूस ली। ED की कमजोरी का मिला फायदा, एक साल में न चार्ज फ्रेम, न ट्रायल… मनी लॉन्ड्रिंग के एक बड़े मामले में की कार्यशैली पर पटना हाईकोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से सवाल खड़े किए हैं। आईएएस संजीव हंस व पूर्व विधायक गुलाब यादव समेत गिरफ्तार किए गए सभी 12 आरोपियों को जमानत मिल गई है। कोर्ट ने माना कि एक साल बाद भी न तो आरोप तय हो सके और न ही ट्रायल शुरू हुआ। ईडी ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा था। 26,739 पन्नों की चार्जशीट भी दाखिल की गई। फिर भी ट्रायल शुरू नहीं हुआ। क्यों मिली बेल… पटना हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकतम 7 साल की सजा वाले मामले में 1 साल तक जेल में रखना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसी आधार पर सभी आरोपियों को जमानत दी गई। संजीव हंस 18 अक्टूबर 2024 से न्यायिक हिरासत में थे। चार्जशीट दाखिल है, पर आरोप तय नहीं। कोर्ट ने कहा कि निकट भविष्य में ट्रायल शुरू होने की संभावना नहीं है। 16 अक्टूबर 2025 को जमानत दी गई। संजीव हंस जेल से बाहर आए तो बिहार सरकार ने उनका सस्पेंशन वापस लिया। 15 दिसंबर 2025 को सामान्य प्रशासन विभाग ने आदेश जारी किया। अब उन्हें नई पोस्टिंग मिल गई है।
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