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Donald Trump की चाल में बुरी तरह फँस गये Asim Munir, अमेरिका की बात मानी तो पाकिस्तानी मारेंगे, नहीं मानी तो ट्रंप नहीं छोड़ेंगे

पाकिस्तान के सबसे ताकतवर सैन्य प्रमुखों में शुमार फील्ड मार्शल असीम मुनीर इस समय अपने जीवन की सबसे कठिन परीक्षा का सामना कर रहे हैं। हम आपको बता दें कि अमेरिका इस समय पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है कि वह गाजा में प्रस्तावित शांति सेना के लिए अपने सैनिक भेजे। विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम पाकिस्तान के भीतर जबरदस्त राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है।
बताया जा रहा है कि अमेरिका के इस आदेश को देखते हुए असीम मुनीर जल्द ही वॉशिंगटन जा सकते हैं। वहां उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात का कार्यक्रम तय हो चुका है। पिछले छह महीनों में मुनीर और ट्रंप की यह तीसरी मुलाकात होगी। इस बैठक का मुख्य एजेंडा गाजा में पाकिस्तानी सेना की तैनाती ही होगी। हम आपको बता दें कि ट्रंप की 20 सूत्रीय गाजा योजना में यह भी शामिल है कि मुस्लिम देशों की एक सैन्य टुकड़ी गाजा में पुनर्निर्माण और आर्थिक पुनरुद्धार के कार्यों की निगरानी करे। उल्लेखनीय है कि यह इलाका पिछले दो वर्षों से इज़रायली बमबारी में तबाह हो चुका है।

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वैसे सिर्फ पाकिस्तान नहीं बल्कि कई देश अमेरिका के इस मिशन को लेकर सशंकित हैं क्योंकि इसमें हमास को निरस्त्र करने का जोखिम शामिल है, जो उन्हें सीधे संघर्ष में घसीट सकता है और उनके अपने देशों में फिलिस्तीन समर्थक तथा इज़रायल विरोधी जनभावनाओं को भड़का सकता है। लेकिन पाकिस्तान की समस्या यह है कि मुनीर ने ट्रंप के साथ करीबी रिश्ते बना लिए हैं इसलिए अमेरिका का आदेश टालना बड़ा मुश्किल होगा। हम आपको याद दिला दें कि इस साल जून महीने में ट्रंप ने मुनीर को व्हाइट हाउस में अकेले दोपहर के भोजन पर बुलाया था। यह पहला मौका था जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को बिना किसी असैन्य नेता के आमंत्रित किया था।
दूसरी ओर, गाजा में पाकिस्तानी सेना के मुद्दे को लेकर विशेषज्ञ अलग-अलग राय व्यक्त कर रहे हैं। वॉशिंगटन स्थित अटलांटिक काउंसिल के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन के अनुसार, “यदि पाकिस्तान गाजा बल में योगदान नहीं देता, तो ट्रंप नाराज़ हो सकते हैं।” उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान जैसे देश के लिए गंभीर समस्या है, जो अमेरिकी निवेश और सुरक्षा सहायता के लिए ट्रंप की कृपा खुद पर बनाए रखना चाहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप पाकिस्तानी सेना की मांग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उसके पास युद्ध लड़ने का अनुभव है, भले वह भारत के साथ सारे युद्ध हार चुकी हो लेकिन पाकिस्तान के अंदर विद्रोह और आतंकवाद से निबटने का उसे अच्छा खासा अनुभव है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की इसी सैन्य क्षमता के कारण मुनीर पर कुछ कर दिखाने का दबाव और बढ़ गया है।
हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में मुनीर को थल, वायु और नौसेना, तीनों का प्रमुख यानि सीडीएफ नियुक्त किया गया है और उनका कार्यकाल 2030 तक बढ़ा दिया गया है। उन्हें आजीवन फील्ड मार्शल का दर्जा और संवैधानिक संशोधनों के तहत किसी भी आपराधिक मुकदमे से स्थायी छूट भी मिल चुकी है। यही नहीं, हाल के हफ्तों में मुनीर ने इंडोनेशिया, मलेशिया, सऊदी अरब, तुर्की, जॉर्डन, मिस्र और कतर के नेताओं से मुलाकात की है, जिसे गाजा बल पर परामर्श के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन पाकिस्तान के भीतर सबसे बड़ा खतरा इस बात का है कि अमेरिकी समर्थित योजना के तहत गाजा में पाकिस्तानी सैनिक भेजे गए तो इस्लामवादी दल सड़कों पर उतर सकते हैं।
हम आपको बता दें कि कट्टरपंथी इस्लामी दलों में जनसमर्थन और भीड़ जुटाने की ताकत है। पाकिस्तान में एक हिंसक और कट्टर इज़रायल विरोधी संगठन को हाल ही में प्रतिबंधित किया गया है, लेकिन उसकी विचारधारा अब भी जिंदा है। इसके अलावा, जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी भी मुनीर के खिलाफ अवसर की तलाश में है।
देखा जाये तो असीम मुनीर आज पाकिस्तान के इतिहास में शायद सबसे शक्तिशाली सैन्य शासक हैं, लेकिन यही शक्ति अब उनके लिए सबसे बड़ा बोझ बनती जा रही है। डोनाल्ड ट्रंप का गाजा प्रस्ताव उनके सामने ऐसा शतरंजी चाल बनकर आया है, जिसमें हर कदम हार की ओर जाता दिखता है। यदि मुनीर गाजा में पाकिस्तानी सेना भेजते हैं, तो वह पाकिस्तान के भीतर आग से खेलने जा रहे होंगे। इज़रायल के नाम पर सड़कों पर उतरने वाले कट्टरपंथी दल, पहले से ही आर्थिक बदहाली और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे देश में विस्फोटक माहौल बना सकते हैं। ‘असीम मुनीर इज़रायल के लिए काम कर रहे हैं’, यह नारा मिनटों में गूंज सकता है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना, जो खुद टीटीपी और अन्य आतंकवादी संगठनों से लड़ रही है, वह एक नए वैचारिक मोर्चे में फंस जाएगी।
दूसरी ओर, यदि मुनीर गाजा में सेना भेजने से इंकार करते हैं, तो उन्हें ट्रंप का गुस्सा झेलना पड़ेगा। यह गुस्सा केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिकी निवेश, आईएमएफ का समर्थन, सैन्य सहायता और कूटनीतिक संरक्षण सब दांव पर लग सकते हैं। पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था के लिए यह किसी आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक से कम नहीं होगा। इसके अलावा, सामरिक दृष्टि से भी यह प्रस्ताव खतरनाक है। गाजा जैसे शहरी युद्धक्षेत्र में तैनाती का मतलब है सीधा हमास और इज़रायल संघर्ष में दखल देना। यदि एक भी पाकिस्तानी सैनिक मारा गया, तो उसका असर केवल गाजा में नहीं, बल्कि लाहौर, कराची और पेशावर की सड़कों पर दिखेगा।
बहरहाल, ट्रंप के साथ करीबी रिश्ता वरदान नहीं, बल्कि एक ऐसा फंदा बन गया है जिसमें मुनीर उलझते जा रहे हैं। अब गाजा केवल मध्य पूर्व का संकट नहीं है, यह पाकिस्तान की आंतरिक स्थिरता, उसकी विदेश नीति और असीम मुनीर के भविष्य की अग्निपरीक्षा भी बन चुका है। चाहे वह कदम आगे बढ़ाएं या पीछे हटें, चोट लगनी तय है। फर्क सिर्फ इतना है कि वह चोट अंदर से होगी या बाहर से।


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