पटना के चंद्रगुप्त इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (CIMP) में आज कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) पर 5वां अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ। यह कार्यक्रम CIMP सेंटर फॉर CSR एंड ESG स्टडीज़ फाउंडेशन के तहत यूनिसेफ और हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ के सहयोग से आयोजित किया गया। सम्मेलन में देश–विदेश से आए नीति-निर्माताओं, प्रोफेसर, स्पीकर, कॉर्पोरेट जगत के प्रतिनिधियों, विकास विशेषज्ञों और छात्रों ने हिस्सा लिया। बाल-केंद्रित मॉडल-पारदर्शी निवेश पर जोर दिया गया है। एक्सपर्ट ने कहा है कि सीएसआर में बिहार काफी पीछे है। कार्यक्रम में बिहार में कैसे CSR को और प्रभावी, पारदर्शी और परिणाम-केंद्रित बनाया जाए, ताकि राज्य के विकास को नई दिशा मिल सके इसपर विस्तार से चर्चा की गई। CSR अब सिर्फ चेक लिखने तक सीमित नहीं-निदेशक CIMP के निदेशक प्रो. राणा सिंह ने कहा कि पिछले कुछ साल में भारत में CSR खर्च में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि जहां शुरुआत में CSR की अनुमानित राशि करीब 20,000 करोड़ रुपए थी, वहीं 2020 तक यह लगभग 2 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई। CSR अब सिर्फ चेकबुक चलाने तक नहीं रह गया है। इसे बिहार की जरूरतों के हिसाब से साक्ष्य-आधारित और परिणाम देने वाले मॉडल में बदलना होगा। यूनिसेफ ने बिहार को “बाल-केंद्रित CSR मॉडल” बनाने का दिया प्रस्ताव यूनिसेफ की प्रतिनिधि मार्गरेट ग्वाडा ने कहा कि बिहार का शासन-तंत्र पिछले साल में काफी मजबूत हुआ है। उन्होंने सरकार, कंपनियों और सिविल सोसाइटी के बीच और बेहतर तालमेल बनाने की जरूरत बताई। यूनिसेफ की कई पहले बिहार में सफल रही हैं। अब समय है कि राज्य को बाल-केंद्रित CSR नवाचार का मॉडल बनाया जाए। पानी, पोषण और स्वास्थ्य में CSR की बड़ी भूमिका डॉ. हिश्मी जमील हुसैन ने कहा कि स्वच्छ पानी, पोषण, गरिमा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करने में CSR अत्यंत उपयोगी है। उन्होंने मल्टी-स्टेकहोल्डर पार्टनरशिप यानी कई पक्षों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत पर जोर दिया। 2,000 रुपए करोड़ से ज्यादा की CSR परियोजनाएं नाबार्ड के लक्ष्मण कुमार ने बताया कि उनके संस्थान ने देशभर में 43 CSR पार्टनरों के साथ 2000 करोड़ से अधिक खर्च पर करीब 300 परियोजनाएं चला रही है। उन्होंने कहा कि बिहार में CSR का वितरण असमान है- कुछ जिलों में बहुत कम निवेश होता है। इसे सुधारने की जरूरत है। बिहार को सिर्फ 1% CSR फंड मिलता है नीति विशेषज्ञ मैथ्यू चेरीयन ने बताया कि बिहार की जरूरतें बहुत अधिक हैं, लेकिन फिर भी राष्ट्रीय CSR फंड का सिर्फ 1% हिस्सा राज्य को मिलता है। आज 28,000 कंपनियां हर साल लगभग 35,000 करोड़ रुपए CSR में खर्च करती हैं। 2035 तक यह राशि 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है। बिहार भविष्य में CSR का एक बड़ा केंद्र बन सकता है।
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