26/11 से पहले अधिकांश आतंकी हमले एक तयशुदा ढर्रे पर चलते थे—किसी जगह बम धमाका, कहीं गोलीबारी या आत्मघाती हमला, जिसका उद्देश्य कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा जानें लेना होता था। लेकिन मुंबई ने इस पैटर्न को तोड़ दिया। 26/11 में हमला किसी एक क्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे शहर को लगभग 60 घंटे तक बंधक बना लेने का प्री-प्लांड मूव था। शहर के अलग-अलग हिस्सों में एक साथ हमले किए गए, जिससे भय, भ्रम और अफरातफरी लगातार बनी रही। यह साफ हो गया कि आतंकवाद में अब सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि अटैकिंग टाइम का भी वेपन बन गया।
26/11: वो रात जब गोलियां 60 घंटे गूंजती रहीं
26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए हमले आधुनिक आतंकवाद के विकास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुए। 26/11 की घटना महज एक सामूहिक हिंसा की घटना नहीं थी, बल्कि इसने एक नए ऑपरेशनल मॉडल को प्रदर्शित किया। एक ऐसा मॉडल जिसने हमलावरों के छोटे समूहों को रणनीतिक हथियारों में बदल दिया, जो वैश्विक शहरों को पंगु बनाने में सक्षम थे। पीछे मुड़कर देखें तो, इस हमले ने न केवल पश्चिम में भविष्य के हमलों की झलक दिखाई, बल्कि इसने प्रभावी रूप से विश्व भर में फ़ेदायिन शैली के शहरी आतंकवाद के लिए एक आदर्श रूपरेखा तैयार कर दी।
मुंबई से पेरिस तक: हमले की अवधि ही बन गई हथियार
26/11 से पहले अधिकांश आतंकी हमले एक तयशुदा ढर्रे पर चलते थे—किसी जगह बम धमाका, कहीं गोलीबारी या आत्मघाती हमला, जिसका उद्देश्य कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा जानें लेना होता था। लेकिन मुंबई ने इस पैटर्न को तोड़ दिया। 26/11 में हमला किसी एक क्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे शहर को लगभग 60 घंटे तक बंधक बना लेने का प्री-प्लांड मूव था। शहर के अलग-अलग हिस्सों में एक साथ हमले किए गए, जिससे भय, भ्रम और अफरातफरी लगातार बनी रही। यह साफ हो गया कि आतंकवाद में अब सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि अटैकिंग टाइम का भी वेपन बन गया। यही मॉडल बाद के वर्षों में पश्चिमी देशों में भी दिखाई दिया। 2015 के पेरिस हमलों में कैफे, एक कॉन्सर्ट हॉल और स्टेडियम को एक साथ निशाना बनाकर पूरे शहर को लंबे समय तक सुरक्षा संकट में झोंक दिया गया। जिसकी पटकथा पहली बार मुंबई में लिखी गई थी।
आतंक का नया फ़ॉर्मूला: दस आतंकी, एक शहर ठप
26/11 से मिलने वाला सबसे बड़ा सबक इसकी घातक कार्यक्षमता थी। महज़ दस आतंकी, दो-दो की छोटी टुकड़ियों में बँटकर, न सिर्फ स्थानीय पुलिस को पस्त करने में सफल रहे, बल्कि विशेष बलों को भी कई मोर्चों पर चुनौतियां खड़ी कर दी। नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया की सुर्ख़ियाँ कई दिनों तक मुंबई पर टिकी रहीं। यह साफ संदेश था कि आतंक के लिए अब बड़े नेटवर्क या सैकड़ों लड़ाकों की ज़रूरत नहीं रही। असली ताकत प्रशिक्षण, आपसी तालमेल और स्पष्ट उद्देश्य में थी। ही सोच बाद में यूरोप में हुए फिदायीन हमलों में दिखाई दी। सीमित संसाधनों और कम मानवबल के बावजूद, छोटी और संगठित टुकड़ियों ने व्यापक दहशत फैलाई और बड़े शहरों को सुरक्षा संकट में डाल दिया। मुंबई में आज़माया गया यह मॉडल बाद में वैश्विक आतंकवाद की रणनीति बन गया।
मीडिया की लाइव कवरेज से आतंकियों को मिली मदद
26/11 के दौरान मुंबई ने यह भी उजागर किया कि आधुनिक आतंकवाद किस तरह लाइव मीडिया को हथियार बना सकता है। टीवी चैनलों की पल-पल की कवरेज ने सुरक्षा बलों की तैनाती, हताहतों की जानकारी और सार्वजनिक प्रतिक्रिया को वास्तविक समय में दुनिया के सामने रख दिया। बताया जाता है कि विदेश में बैठे हैंडलर इन प्रसारणों पर नज़र रखे हुए थे और उसी के आधार पर हमलावरों को निर्देश दे रहे थे। इस तरह हिंसा सिर्फ ज़मीन पर नहीं हो रही थी, बल्कि स्क्रीन के ज़रिये कई गुना बढ़ाई जा रही थी। बाद के वर्षों में पेरिस, ब्रसेल्स और अन्य शहरों में हुए आतंकी हमलों में यही सबक साफ़ तौर पर दिखाई दिया। आतंकियों ने हमलों की योजना इस तरह बनाई कि उन्हें अधिकतम लाइव कवरेज मिले और समाज पर मनोवैज्ञानिक दबाव लंबे समय तक बना रहे। मुंबई में देखा गया यह मीडिया-केंद्रित मॉडल आगे चलकर वैश्विक आतंकवाद की रणनीति का हिस्सा बन गया।
होटल, स्टेशन, कैफ़े—सब निशाने पर
26/11 में निशानों का चयन पूरी तरह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। लग्ज़री होटल, व्यस्त रेलवे स्टेशन, कैफ़े और एक धार्मिक केंद्र—इन जगहों को केवल ज़्यादा जानें लेने के लिए नहीं चुना गया था, बल्कि इनके प्रतीकात्मक महत्व के कारण निशाना बनाया गया। ये वे स्थान थे जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी, वैश्विक संपर्क और खुले समाज की पहचान थे। इन पर हमला कर आतंकियों ने यह संदेश देने की कोशिश की कि अब सामान्य जीवन भी सुरक्षित नहीं है। यही सोच बाद के वर्षों में पश्चिमी देशों में हुए फिदायीन हमलों की पहचान बन गई। आम नागरिकों की रोज़मर्रा की जगहों को निशाना बनाकर आतंक ने यह जताया कि उसका उद्देश्य सिर्फ नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा भावना को तोड़ना है। मुंबई में अपनाई गई यह रणनीति आगे चलकर वैश्विक आतंकवाद का स्थायी पैटर्न बन गई।
बहरहाल, 26/11 का मुंबई हमला केवल भारत तक सीमित कोई अलग-थलग त्रासदी नहीं था। यह आधुनिक शहरी आतंकवाद का एक ऐसा प्रोटोटाइप था, जिसे बाद के वर्षों में अलग-अलग महाद्वीपों में दोहराया और अपनाया गया। 2015 में पेरिस में जब इसी तरह की रणनीतियाँ देखने को मिलीं, तो वह महज़ संयोग नहीं था, बल्कि आतंक के एक विकसित होते स्वरूप का संकेत था। दुनिया ने 26/11 से मिलने वाले सबक देर से सीखे, क्योंकि उनकी पटकथा पश्चिमी राजधानियों से बहुत दूर लिखी गई थी। आतंकवाद के इतिहास में यह कोई पहला मामला नहीं था—अक्सर चेतावनियों को तब तक पूरी तरह समझा नहीं जाता, जब तक वही खतरा दोबारा, किसी और शहर की सड़कों पर सामने आकर खड़ा नहीं हो जाता।
https://ift.tt/Mp1twh6
🔗 Source:
Visit Original Article
📰 Curated by:
DNI News Live

Leave a Reply