भारतीय सेना ने 27-28 नवंबर को नई दिल्ली में चाणक्य रक्षा संवाद (सीडीडी) 2025 के तीसरे संस्करण की मेजबानी की, जिसने वैश्विक रुझानों और राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी रक्षा रणनीति में बदलाव लाने की भारत की प्रतिबद्धता को और पुष्ट किया। इस वर्ष का संवाद 2047 तक भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के लिए एक व्यापक त्रि-चरणीय रोडमैप प्रस्तुत करने के लिए उल्लेखनीय है – जिसमें सैन्य तैयारियों को भारत के एक विकसित राष्ट्र बनने के दृष्टिकोण के साथ जोड़ा गया है। सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि युद्ध लगातार खुद को नये-नये स्वरूप में गढ़ता रहता है और जो अवधारणाएं भविष्यवादी लगती हैं, वे लागू होने से पहले ही अप्रचलित हो सकती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भविष्य के युद्धों के लिए कल्पना करने, पूर्वानुमान लगाने और तैयारी करने की क्षमता अस्तित्व का प्रश्न बन जाता है, जिसका कोई विकल्प नहीं है। सेना द्वारा यहां आयोजित एक महत्वपूर्ण सम्मेलन, चाणक्य रक्षा संवाद के तीसरे संस्करण के उद्घाटन के दिन भविष्य के युद्ध : सैन्य शक्ति के माध्यम से रणनीतिक रुख’’ विषय पर अपने विशेष संबोधन में सीडीएस ने कहा कि जब युद्ध पहले से ही जारी है, तो उस संदर्भ में दुश्मन को जानना अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। उन्होंने विस्तार से बताए बिना कहा शायद भविष्य में किसी युद्ध में दुश्मन को अपने बारे में पता न चलने देना, युद्ध जीतने का एक महत्वपूर्ण कारक बन जाएगा। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि पारंपरिक प्रतिरोध एक ‘नया रूप’ ले रहा है। परमाणु क्षेत्र के विषय पर, उन्होंने कहा कि आज यह ‘विशेष स्थिरता कमज़ोर हो रही है।
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उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि साइबरस्पेस, अंतरिक्ष और संज्ञानात्मक युद्ध जैसे नए क्षेत्र सीमाओं, क्षेत्रीय अखंडता और यहाँ तक कि नागरिकता की पारंपरिक धारणाओं को नष्ट कर रहे हैं, जिससे संप्रभुता कार्यात्मक रूप से छिद्रपूर्ण होती जा रही है। ऑपरेशन सिंदूर का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि आधुनिक क्षमताएँ अब किसी विरोधी के प्राकृतिक, नेटवर्क, आर्थिक और सूचना क्षेत्रों को निशाना बना सकती हैं, जो दर्शाता है कि कैसे राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा समकालीन संघर्ष का एक प्रमुख घटक बन गया है। जनरल चौहान ने कहा कि ये रुझान पूर्वी यूरोप और पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्षों में स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, जहाँ सीमाओं का पुनर्परिभाषित किया जा रहा है और ग्रीनलैंड जैसे संप्रभु क्षेत्रों पर दावे, संप्रभुता के कमजोर पड़ने को उजागर करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि पारंपरिक प्रतिरोध की उपयोगिता कम होती जा रही है, और बयानबाजी की धमकियों और वास्तविक क्षमता के प्रदर्शन के बीच का अंतर कम होता जा रहा है, जिससे वैश्विक परमाणु क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ रही है।
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भविष्य की दुनिया अधिक हिंसक और बहुत ही अस्थिर होगी।’ सीडीएस ने कहा कि युद्ध लगातार खुद को नये-नये स्वरूप में गढ़ता रहता है। जो अवधारणाएं भविष्योन्मुखी लगती हैं, वे लागू होने से पहले ही पुरानी पड़ सकती हैं। फिर भी, यह एक ऐसा जोखिम है जो सभी सैन्य अधिकारियों को उठाना पड़ता है। इसलिए, भविष्य के संघर्षों की कल्पना करने, पूर्वानुमान लगाने और उनके लिए तैयारी करने की क्षमता हमारे लिए अस्तित्व का प्रश्न बन जाता है, और इसका कोई विकल्प नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि सैनिक हर दिन नहीं लड़ते, वे उस अंतिम दिन के लिए तैयारी करते हैं, और फिर भी उनसे उस अंतिम दिन असफल होने की अपेक्षा नहीं की जाती, क्योंकि युद्ध में कोई भी विफलता राष्ट्र के लिए विनाशकारी हो सकती है, ‘‘इसलिए यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
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