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Bangladesh में उथल-पुथल के बीच ISI ने बनाई खतरनाक योजना! भारत में लाखों लोगों को धकेलने की तैयारी

बांग्लादेश में हालिया उथल पुथल के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने सीमा पर बहुत ऊंचा अलर्ट जारी किया है। हम आपको बता दें कि इस बार आशंका केवल अवैध घुसपैठ की नहीं है, बल्कि उस संगठित साजिश की है जिसमें सीमा को भीड़ से पाट कर व्यवस्था को पंगु करने की तैयारी चल रही है। खुफिया सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश में अराजकता के माहौल का फायदा उठाकर आईएसआई समर्थित गिरोह भारत में लाखों लोगों को धकेलने की योजना पर काम कर रहे हैं। मकसद है अव्यवस्था फैलाना और पर्दे की आड़ में आतंकी तत्वों की घुसपैठ कराना।
मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यह दबाव खास तौर पर पश्चिम बंगाल के चुनावों के आसपास तेज किया जाएगा। राज्य विधानसभा चुनावों में मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है और हिंसा की आशंका को देखते हुए सुरक्षा बल पहले से सतर्क हैं। बताया जा रहा है कि आईएसआई की योजना यह है कि भीड़ के बीच प्रशिक्षित आतंकी भी सरका दिए जाएं, ताकि पहचान और रोकथाम कठिन हो जाए।

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खुफिया तंत्र का कहना है कि बांग्लादेश में हालिया सत्ता परिवर्तन के बाद आईएसआई का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। इसी दौरान दर्जनों आतंकियों को भारत भेजने के इरादे से प्रशिक्षित किया गया। असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के नदी किनारे के रास्ते, कम दृश्यता वाले रास्ते और घने वन क्षेत्र इस साजिश के लिए चुने गए हैं। यही वे इलाके हैं जहां निगरानी चुनौतीपूर्ण होती है और भीड़ की आड़ में घुसपैठ आसान होती है।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि योजना दोहरी है। एक तरफ बांग्लादेशी और रोहिंग्या आबादी को सीमा पार भेज कर जनसांख्यिक दबाव बनाने की तैयारी है तो, दूसरी तरफ प्रशिक्षित आतंकी अलग जत्थों में घुसेंगे। खुफिया जानकारी के अनुसार, इन लोगों को आर्थिक तंगी का लालच देकर चुना जाता है, फिर उन्हें विशेष शिविरों में रखा जाता है। इन शिविरों को दो हिस्सों में बांटा गया है। एक हिस्से के लोग केवल बसावट और दबाव के लिए होते हैं जबकि दूसरे हिस्से के लोग हिंसक गतिविधियों के लिए तैयार किए जाते हैं।
बताया जा रहा है कि यह साजिश केवल सीमावर्ती राज्यों तक सीमित नहीं है। एक बार घुसपैठ सफल होने पर इन तत्वों को जम्मू-कश्मीर, दक्षिणी राज्यों और महाराष्ट्र जैसे इलाकों में फैलाने की योजना है। यानी लक्ष्य पूरे देश की आंतरिक सुरक्षा है। देखा जाये तो 1971 में पराजय के बाद पाकिस्तान ने समझ लिया था कि सीधी जंग से कुछ हासिल नहीं होगा। तब से छद्म युद्ध की यह राह चुनी गई थी जोकि आज तक जारी है।
1973 में भारतीय खुफिया एजेंसियों को पता चला था कि जमात ए इस्लामी और आईएसआई ने मिलकर भारत में अवैध घुसपैठ के जरिये जनसांख्यिक बदलाव का खाका बनाया था। मकसद था बहुसंख्यक समाज में असुरक्षा पैदा करना और फिर साम्प्रदायिक टकराव भड़काना। उस समय यह योजना पूरी तरह सफल नहीं हो सकी क्योंकि बांग्लादेश में भारत मित्र सरकारें थीं। आज हालात बदले हैं। सत्ता परिवर्तन के बाद आईएसआई समर्थित जमात का प्रभाव बढ़ा है और यही उन्हें खुला मैदान देता है।
देखा जाये तो भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने चुनौती बहुस्तरीय है। सरकार को सीमा प्रबंधन में तकनीक, बल और खुफिया तंत्र का और निर्भीक तरीके से इस्तेमाल करना होगा। नदी किनारे और वन क्षेत्रों में विशेष निगरानी, त्वरित पहचान और कड़ी कार्रवाई जरूरी है। साथ ही देश के भीतर भी स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि अवैध घुसपैठ और आतंक के प्रति शून्य सहनशीलता है।


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