3.66 लाख लोगों को अपील करने का अधिकार… जानें SIR पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर मामले पर गुरुवार को सुनवाई हुई. जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ मामले की सुनवाई की. तमाम पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन कार्यवाहियों के परिणाम के बावजूद एक चुनौती यह है कि अंतिम सूची से बाहर रखे गए लगभग 3.66 लाख लोगों को अपील करने का अधिकार सुनिश्चित किया जाए. शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग ने ऐसा रुख अपनाया है कि जैसे प्रत्येक व्यक्ति को बहिष्कार के कारणों सहित आदेश दिया गया है. याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध किया है लेकिन अपील दायर करने का समय कम हो रहा है, इसलिए हम इसे उचित मानते हैं.
कोर्ट ने कहा कि एक अंतरिम उपाय के रूप में बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष से अनुरोध किया जाए कि वे आज ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सभी सचिवों को पैरालीगल स्वयंसेवकों और मुफ्त कानूनी सहायता परामर्शदाताओं की सेवाएं प्रदान करने के लिए पत्र भेजें ताकि बाहर रखे गए व्यक्तियों को वैधानिक अपील दायर करने में सहायता मिल सके.
सचिव तुरंत प्रत्येक गांव में पैरालीगल स्वयंसेवकों के मोबाइल नंबर और पूर्ण विवरण पुनः अधिसूचित करें, जो बीएलओ से संपर्क करेंगे. वे अंतिम सूची से बाहर रखे गए व्यक्तियों के संबंध में जानकारी एकत्र करेंगे. पीएलवी अपील के अधिकार के बारे में सूचित करने वाले व्यक्तियों तक पहुंचेंगे. वे अपील का मसौदा तैयार करने और मुफ्त कानूनी सहायता परामर्श सेवाएं प्रदान करेंगे. एसएलएसए जानकारी एकत्र करेगा और एक हफ्ते में अदालत को स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा.
चुनाव आयोग ने दीं क्या दलीलें
इससे पहले चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने कहा कि एडीआर समेत अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से हलफनामे में किए गए वोट काटे जाने के आरोप पूरी तरह से गलत हैं. गलत कहानी गढ़ी जा रही है. चुनाव आयोग ने कहा कि जिस महिला का नाम काटने का दावा किया जा रहा है. उसका मसौदा सूची और अंतिम सूची में भी नाम है. चुनाव आयोग ने कहा कि एक नाम का पर्चा बेचा जा रहा है कि यह नाम काटा गया है जबकि उनकी ओर से आवेदन ही नहीं किया गया है. द्विवेदी ने कहा कि एक तर्क यह था कि ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़ी संख्या में लोगों के नाम थे, लेकिन अचानक उनके नाम सूची से गायब हो गए.
मुझे अब तक तीन हलफनामे मिले हैं. हमने इसकी जांच की है. यह हलफनामा पूरी तरह से झूठा है. कृपया पैरा 1 देखें कि उन्होंने कहा है कि मैं बिहार का निवासी हूं और ड्राफ्ट मतदाता सूची में था. वह वहां नहीं थे. हकीकत ये है उन्होंने मतदाता गणना फॉर्म जमा नहीं किया था. यह झूठ है. फिर उन्होंने मतदाता पहचान पत्र संख्या दी, दिया गया मतदान केंद्र 52 है, लेकिन वास्तविक संख्या 653 है.
EC के वकील ने क्या कहा?
लेकिन वह नाम भी एक महिला का है, उनका नहीं. वह ड्राफ्ट मतदाता सूची में नहीं थे. द्विवेदी ने कहा कि इस मद में उनका नाम ही नहीं है. ड्राफ्ट और फाइनल लिस्ट में भी एक महिला का नाम है. फिर हलफनामे में लिखा है कि अनुलग्नक संलग्न हैं. ऐसा कोई अनुलग्नक नहीं है. फिर एक स्टाम्प पेपर है, जिस पर 8 सितंबर की तारीख है. यही वह तारीख है जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सहायता करेंगे. आवेदक का नाम भी देखिए, ऐसा लगता है कि नोटरी इस कागज को बार-बार बेच रहे हैं.
द्विवेदी ने कहा कि आयोग ने निर्देश दिया था कि जिन नामों को सूची से बाहर रखा गया है, उन्हें बूथवार प्रकाशित करें. हमने इसे हर जगह लगा दिया है. उन्हें तब पूरी जानकारी थी. बीएलओ, बीएलए, राजनीतिक दल वगैरह, सब वहां मौजूद हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अब इसमें संदेह है कि ऐसा कोई व्यक्ति है भी या नहीं. द्विवेदी ने कहा कि भूषण के हलफनामे में बड़ी संख्या में लोगों के सूची से बाहर होने की बात हटा दी है. अब वे कहते हैं कि 130 लोगों को सूची से बाहर किया गया है और वे कहते हैं कि कुछ लोग पहली बार नामांकन कराना चाहते थे. अगर उन्हें कोई शिकायत है तो वे 5 दिनों के भीतर अपील दायर कर सकते हैं.
राजनीतिक दल सिर्फ नैरेटिव सेट करना चाहते- द्विवेदी
द्विवेदी ने कहा कि ये राजनीतिक दल सिर्फ नैरेटिव सेट करना चाहते हैं और कोई मदद नहीं. अब उन्होंने कई मुसलमानों को बाहर रखा है, आदि का विश्लेषण किया है. हम एक ऐसे आदेश की प्रार्थना कर रहे हैं, जिसके तहत लोग 5 दिनों में अपील दायर कर सकें क्योंकि उसके बाद विंडो बंद हो जाएगा. जस्टिस कांत ने कहा कि हम सिर्फ उन लोगों की मदद करना चाहते हैं जिन्हें शामिल नहीं किया गया है.
वरिष्ठ अधिवक्ता हंसारिया और द्विवेदी ने कहा कि अगर कोई संगठन ऐसी बातें अदालत में रख रहा है जहां उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है, तो उसके खिलाफ अदालत को गुमराह करने (perjury) की सुनवाई नहीं होनी चाहिए. वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यहां झूठी जानकारी और दलील दी गई है.
ADR के वकील प्रशांत भूषण ने क्या कहा?
एडीआर की तरफ से प्रशांत भूषण ने कहा कि अदालत लीगल सर्विस अथॉरिटी से छानबीन करा ले. स्पष्ट हो जाएगा जो चुनाव आयोग कह रहा है. जस्टिस बागची ने कहा कि यह दस्तावेज कल सौंपा गया था. जब आप दस्तावेज पीठ को सौंपते हैं तो यह एक जिम्मेदारी होती है. भूषण ने कहा कि मुझे यह दस्तावेज एक जिम्मेदार व्यक्ति ने दिया था. अगर चुनाव आयोग कहता है कि कोई समस्या है, तो विधिक सेवा प्राधिकरण पूछताछ कर सकता है, क्योंकि नाम और पता दिया गया है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हमारी बात नहीं सुनी जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दिख रहा है कि तथ्य गलत हैं. जस्टिस कांत ने कहा कि लीगल सर्विस अथॉरिटी स्वेच्छा से मदद करेगा, निर्देशों की कोई जरूरत नहीं है. 20 अन्य हलफनामे हैं. जस्टिस बागची ने कहा कि इस हलफनामे के अनुभव से हम कैसे जान सकते हैं कि बाकी 20 भी सही हैं? भूषण ने कहा कि ये मौखिक दावे हैं. जस्टिस बागची ने कहा कि सब कुछ मौखिक है. आपको देखना चाहिए था कि मोहम्मद शाहिद का नाम ड्राफ्ट रोल में था या नहीं.
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