बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे ज्यादा चर्चा जिस नेता ने बटोरी, वह थे तेजस्वी यादव। क्योंकि वे जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने तारीख भी तय कर दी थी- “14 नवंबर रिजल्ट, 18 को शपथ”। लेकिन जब नतीजे आए, घटनाक्रम उलट गया। NDA ने 202 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की और RJD सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई। पूरे महागठबंधन का आंकड़ा भी 35 से आगे नहीं बढ़ा। चुनावी हार के बाद एक और बात चर्चा में रही- तेजस्वी यादव का सार्वजनिक जीवन से अचानक गायब हो जाना। 20 नवंबर को पटना के गांधी मैदान में ऐतिहासिक शपथ समारोह हुआ। प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, 11 राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद थे, लेकिन तेजस्वी यादव गायब। आमंत्रण भी गया था, सीट भी रिजर्व थी, लेकिन तेजस्वी नहीं दिखे। 14 से 23 नवंबर तक वे ना रोड पर, ना मीडिया के सामने, ना प्रेस कॉन्फ्रेंस में नजर आए। बस राबड़ी आवास तक सीमित रहे। सोशल मीडिया X पर तेजस्वी ने नीतीश सरकार को सिर्फ एक औपचारिक रूप से बधाई दी। इन 8 दिनों में RJD में विवाद, परिवार में नाराजगी, हार की समीक्षा को लेकर उथल पुथल चलती रही। तेजस्वी के बाहर नहीं आने को लेकर सैकड़ों सवाल उठे कि क्या ये रणनीतिक तौर पर चुप हैं, मानसिक थकान है, आंतरिक असंतोष है या राजनीतिक पुनर्गठन का समय? इसके पीछे की पूरी कहानी पढ़िए, अगले 10 पॉइंट में…। सबसे बड़ा सवाल- सबसे बड़ी चुप्पी: 18 नवंबर शपथ तक गायब क्यों? 14 नवंबर को नतीजों की घोषणा शुरू हुई तो तेजस्वी अपने 1, पोलो रोड आवास में ही रहे। RJD की सीटें घटती गईं, लेकिन पूरे दिन उन्होंने मीडिया से दूरी बनाए रखी। रात में वे राबड़ी आवास पहुंचे, लेकिन कोई बयान नहीं दिया। 15-16 नवंबर के दिन भी सन्नाटा देखने को मिला। इस चुनावी हार के बाद परंपरा रही है कि विपक्ष का नेता जनता और समर्थकों को संदेश दे, लेकिन तेजस्वी बाहर ही नहीं आए। सबसे बड़ा सवाल शपथ ग्रहण समारोह को लेकर उठा, क्योंकि बिहार के राजनीतिक इतिहास में ऐसा शायद ही हुआ होगा कि नेता प्रतिपक्ष इस मौके पर मौजूद ना हो। नीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे। मंच पर प्रधानमंत्री सहित दर्जनों राष्ट्रीय नेता थे, लेकिन RJD की खाली कुर्सी सभी का ध्यान खींच रही थी। क्या तेजस्वी निमंत्रण से नाखुश थे या कोई रणनीति थी या परिवार में चल रहे विवाद ने सार्वजनिक उपस्थिति रोक ली? RJD नेताओं ने भी इस मामले पर चुप्पी साथ रखी थी। तेजस्वी की यही चुप्पी चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन गई है। 14 नवंबर- नतीजों के दिन राबड़ी आवास के बंद दरवाजे और बेचैनी 14 नवंबर की सुबह चुनावी गिनती के दौरान शुरुआत में RJD कार्यकर्ता उत्साहित थे। सेट ट्रेंड देख उम्मीदें बनीं, लेकिन धीरे-धीरे तस्वीर बदलने लगी। पोलो रोड आवास के बाहर मीडिया, समर्थक, राजनीतिक विश्लेषक जुटे। सभी को केवल तेजस्वी के बयान का इंतजार था, लेकिन पूरे दिन ना कोई प्रेस नोट, ना अपीयरेंस, ना सोशल मीडिया संदेश। देर रात तक जब हार तय हो गई थी, तेजस्वी राबड़ी आवास पहुंचे, लेकिन वहां भी सन्नाटा पसरा था। लालू परिवार में क्या हुआ, रणनीति पर क्या चर्चा हुई, इसको लेकर बाहर किसी को भी जानकारी नहीं दी गई। यह पहली बार हुआ, जब तेजस्वी ने चुनावी हार पर फौरन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इससे यह सवाल उठा कि क्या RJD की हार उम्मीद के विपरीत थी, जबकि वे जीत को निश्चित मान बैठे थे या पार्टी के भीतर असंतोष को शांत करने में देरी हुई। RJD के युवा कैडर लगातार पूछते रहे- “दिशा क्या है?” लेकिन जवाब नहीं मिला। उस रात RJD की चुप्पी ने कहानी बदल दी। पासपोर्ट ऑफिस विजिट और बैकडोर मूवमेंट- इसके पीछे क्या संकेत था? चुनाव में हार के बाद 15-16 नवंबर के दिन मीडिया ने तेजस्वी को खोजने की कोशिश की। इसी दौरान जानकारी आई कि वे पासपोर्ट ऑफिस गए थे, लेकिन मुख्य गेट से नहीं, पीछे के गेट से। यह खबर जैसे ही फैली, राजनीतिक अफवाहें शुरू हो गईं। क्या विदेश जाने की तैयारी है? क्या मेडिकल इमरजेंसी है या क्या यह मीडिया से दूरी बनाए रखने की रणनीति है? इस पर RJD ने सफाई दी—“पासपोर्ट रिन्यूअल था” पर सवाल खत्म नहीं हुए। इससे यह भी साबित हुआ कि तेजस्वी सार्वजनिक रूप से दिखाई नहीं देना चाहते थे। यह वो तेजस्वी थे, जिन्होंने चुनाव से पहले सबसे ज्यादा 171 रैलियां कीं, नीतीश से भी दोगुनी। लेकिन नतीजों के तुरंत बाद उनका पूरा व्यवहार बदल गया- सावधान, सीमित, नियंत्रित। इससे राजनीतिक विरोधियों को बयानबाजी का मौका मिला। कोई बोला “पराजय स्वीकार करने का साहस नहीं” तो समर्थकों ने कहा- “यह आत्ममंथन का समय है।” लेकिन असल वजह आज भी साफ नहीं है। 17 नवंबर- हार की समीक्षा बैठक, लेकिन कैमरे से रही दूरी 17 नवंबर का दिन RJD के लिए बेहद अहम था। एक पोलो रोड स्थित कार्यालय में सभी हारे उम्मीदवारों को बुलाया गया। लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, मीसा भारती और तेजस्वी यादव एक साथ पहुंचे। अंदर लगभग तीन घंटे समीक्षा चली- किसकी हार क्यों हुई? सीट बंटवारे में गलती? कैडर मैनेजमेंट? मुस्लिम-यादव वोट का बिखराव? INDIA गठबंधन का नुकसान? लेकिन इस बैठक के दौरान तेजस्वी चुप थे, कैमरे से चेहरे छुपाते दिखे। राजनीति में हार के बाद नेतृत्व की भूमिका और भी बड़ी मानी जाती है। बैठक के बाद RJD ने उन्हें औपचारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष चुना। यानी संगठन को अभी भी उन पर भरोसा है। लेकिन बाहर आकर भी तेजस्वी ने एक शब्द नहीं बोला। यही चुप्पी राजनीतिक पहेली बन गई कि क्या वे खुद को जिम्मेवार मान रहे हैं? या आरोप लगाने वालों से बच रहे हैं? 20 नवंबर- सोशल मीडिया पर नहीं दिखे एक्टिव, सिर्फ नीतीश सरकार को औपचारिक बधाई दी तेजस्वी यादव आमतौर पर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं। तेज प्रतिक्रियाएं, तंज, ग्राफिक्स, रैली अपडेट, वीडियो संदेश। नतीजों आने के बाद तस्वीर बिल्कुल उलट दिखी। तेजस्वी ने 8 दिनों तक एक भी ट्वीट नहीं किया। सिर्फ 20 नवंबर को शपथ दिवस पर औपचारिक पोस्ट- “शुभकामनाएं” बस लिखा। कोई प्रतिक्रिया, कोई आत्मनिरीक्षण, कोई राजनीतिक संदेश नहीं। डिजिटल दौर में चुप्पी राजनीतिक निर्णय नहीं, राजनीतिक संदेश बन जाती है। इससे यह सवाल उठा कि क्या RJD डिजिटल टीम को भी “चुप रहने” का निर्देश मिला था? क्या पार्टी बड़े संकट प्रबंधन मोड में थी? या पारिवारिक विवादों को बढ़ने से रोकना चाहती थी? राजनीतिक संचार विशेषज्ञ कहते हैं कि चुनाव के बाद जनता उम्मीद करती है कि नेता सामने आए, बोले, दिशा दे। लेकिन यहां साइलेंस ने ही खबर बना दी। रोहिणी विवाद- परिवार की कलह ने राजनीतिक सरगर्मी और बढ़ाई हार के तुरंत बाद RJD परिवार में तनाव खुलकर सामने आया। रोहिणी आचार्य के पोस्ट असंयमित, भावुक, आरोपों से भरे थे, जो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। फिर मीसा भारती की प्रतिक्रिया, unfollow-follow एपिसोड, समर्थकों की लड़ाई और कथित राजनीतिक सलाहकारों पर निशाना। RJD समर्थकों ने पहली बार इतने खुले रूप में लालू परिवार को विभाजित देखा। यह वही लालू परिवार है, जिसने 30 वर्षों तक एकता की छवि बनाई। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि हार के बाद पार्टी को संदेश देना चाहिए था कि “हम एक हैं”, लेकिन हुआ उल्टा। फिर भी तेजस्वी चुप रहे और कोई सफाई, कोई अपील, कोई मध्यस्थता नहीं किया। इससे यह धारणा बनी कि या तो वे पहले से नाराज थे या वे पारिवारिक भावनात्मक विस्फोट को रोक नहीं पा रहे थे। इस विवाद ने तेजस्वी की गैर-मौजूदगी को और सवालों के घेरे में ला दिया। क्या 171 रैलियां करने के बाद भी हार ने निजी सदमे का रूप लिया? तेजस्वी यादव का चुनाव अभियान देशभर में चर्चा में रहा। कुल 171 रैलियां, 20 रोड शो, प्रति दिन 7-8 सभाएं, औसतन 4 जिले प्रतिदिन। उन्होंने नीतीश और मोदी दोनों से अधिक रैलियां की। यह असाधारण राजनीतिक ऊर्जा थी। युवाओं की भीड़, महिलाओं की उपस्थिति, बेरोजगारी का मुद्दा- सभी ने संकेत दिए थे कि RJD दौड़ में है। लेकिन नतीजे उम्मीद से बिल्कुल विपरीत आए। शायद यही सबसे बड़ा भावनात्मक झटका बना। राजनीतिक मनोविज्ञान कहता है कि जो नेता अभियान में बेहद निवेश करता है, वह हार के बाद सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आता, क्योंकि वह पहले खुद से लड़ता है। तेजस्वी की चुप्पी को इससे भी पढ़ा जा सकता है। या तो आत्ममंथन हो सकता है या हार पचाने की प्रक्रिया। लेकिन सवाल वही- क्या नेता को जनता से भी eight-day recovery की जरूरत थी? 20 नवंबर- NDA का शपथ ग्रहण में सीट खाली, क्या राजनीतिक संदेश था? 20 नवंबर की तस्वीरें आज भी सोशल मीडिया पर तैर रही हैं। गांधी मैदान में ऐतिहासिक मंच, सुरक्षा का अभूतपूर्व इंतजाम, देशभर के नेताओं का जमावड़ा, हजारों कार्यकर्ताओं की भीड़ और तेजस्वी की खाली कुर्सी। समारोह लोकतंत्र का उत्सव था, लेकिन विपक्ष की अनुपस्थिति संतुलन तोड़ रही थी। आमतौर पर विपक्षी नेता भी शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचते हैं, क्योंकि सत्ता और विपक्ष संसद की दो अनिवार्य दीवारें हैं। लेकिन RJD की गैर-मौजूदगी को BJP ने अवसर बना लिया। जेडीयू ने कहा “हार पच नहीं रही।” यह राजनीतिक नजारा लोगों के मन में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। सवाल है कि क्या यह बायकॉट था? क्या यह निजी निर्णय था या फिर यह कोई संकेत था? तेजस्वी ने न स्पष्टीकरण दिया, न ही खंडन किया। राजनीति में बिना बोले भी संदेश बन जाता है। RJD के भीतर सवाल, नेतृत्व शैली पर पहली बार खुली चर्चा चुनाव समीक्षा बैठक के बाद कई उम्मीदवारों ने खुलकर कहा कि टिकट वितरण जल्दबाजी में हुआ। गठबंधन की रणनीति गलत थी। मुस्लिम-यादव वोट NDA में शिफ्ट हुआ और कुछ जिलों में प्रचार कमजोर रहा। यह आवाजें पहले कम सुनाई देती थीं, जो अब खुलकर सामने आने लगीं। सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या RJD अब भी पूरी तरह से तेजस्वी-केंद्रित है या संगठन बदलाव चाहेगा? अनुभवी नेताओं का यह भी मत है कि हार के बाद नेता को सामने आना चाहिए। जनता और कार्यकर्ताओं को संबोधित करना चाहिए। लेकिन आठ दिनों की अनुपस्थिति ने भीतरी असंतोष को उभरने का मौका दे दिया। इसी बीच तेज प्रताप भी दो बार सार्वजनिक हुए और समर्थकों से मिले। यानी नेतृत्व केवल एक चेहरा नहीं रह गया। यह RJD संरचना में भावी परिवर्तन की संभावनाओं की शुरुआत हो सकती है। अब आगे क्या- तेजस्वी की अगली चाल ही विपक्ष का भविष्य तय करेगी तेजस्वी का राजनीतिक सफर अभी लंबा है। युवा पहचान, जनाधार और विपक्ष का चेहरा, सब उनके पास है। हार एक अंत नहीं, री लॉन्च का अवसर हो सकती है। अब सबसे बड़ा सवाल— क्या वे आक्रामक विपक्ष बनेंगे? क्या वे INDIA ब्लॉक से दूरी बढ़ाएंगे? क्या वे संगठन का पुनर्गठन करेंगे? क्या वे परिवार के भीतर मतभेद सुलझाएंगे? क्या वे बेरोजगारी और महंगाई पर आंदोलन शुरू करेंगे? या कुछ समय के लिए public visibility कम रखेंगे? मीडिया, जनता और राजनीतिक गलियारों की नजर तेजस्वी के अगले कदम पर टिकी हुई है। बिहार की राजनीति में खालीपन नहीं रहता। अगर विपक्ष खामोश रहा तो NDA का नरेटिव स्थायी हो जाएगा। तेजस्वी जल्दी ही लौटेंगे, ऐसी उम्मीद उनके समर्थक कर रहे हैं। लेकिन तेजस्वी का अगला कदम ही तय करेगी कि उन्होंने कुछ सीख लिया या भीतर से टूट गए?
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