सिटी रिपोर्टर|मुजफ्फरपुर सफला एकादशी 15 दिसंबर को है। पौष माह के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 14 दिसंबर रविवार को शाम 6 बजकर 50 मिनट पर होगा। वहीं, अगले दिन 15 दिसंबर को रात के 9 बजकर 21 मिनट पर इसका समापन होगा। ऐसे में उदय तिथि के नियमानुसार सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर सोमवार को रखा जाएगा। पौष माह के कृष्णपक्ष में पड़ने वाली यह एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही भक्तों के सभी कार्यों को सफल बनाने वाली मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा और निष्ठा से व्रत और भगवान विष्णु की आराधना करने से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी एकादशी में सफला एकादशी का विशेष स्थान है। इस व्रत को करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों का नाश होता है और जीवन में सकारात्मकता आती है। पद्म पुराण में भी इस एकादशी की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। सफला एकादशी के दिन मुख्य रूप से जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भक्त इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लेते हैं। भगवान विष्णु को फल, फूल, पंचामृत, धूप, दीप और तुलसी दल अर्पित किए जाते हैं। इस दिन श्रीहरि को ऋतु फल (मौसमी फल) चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप व विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। कई भक्तगण इस रात जागरण भी करते हैं और भजन-कीर्तन में लीन रहते हैं। व्रत का पारण अगले दिन यानी 16 दिसंबर को सूर्योदय के बाद द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले किया जाएगा। इस दिन पारण का शुभ समय सुबह 7:07 बजे से 9:11 बजे तक रहेगा। मान्यताओं के अनुसार सफला एकादशी की कथा राजा महिष्मान के पुत्र लुम्भक से जुड़ी है। लुम्भक अत्यंत दुराचारी और पापी था। उसके कारण राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। वन में भटकते हुए वह एक पौष कृष्ण एकादशी को वृक्ष के नीचे भूखा-प्यासा रहा। अनजाने में यह दिन सफला एकादशी का था। थकान और ठंड के कारण वह वहीं गिर गया और रात भर जागता रहा। अगले दिन जब उसे होश आया, तो उसके द्वारा अनजाने में किए गए इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप नष्ट हो चुके थे। धीरे-धीरे उसके विचारों में सकारात्मक परिवर्तन आया और वह वापस अपने पिता के पास गया। राजा ने उसे अपना राज्य सौंप दिया। लुम्भक ने पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की भक्ति की और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह कथा दर्शाती है कि सफला एकादशी का व्रत करने, कथा पढ़ने या सुनने मात्र से भी मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इस दिन दान-पुण्य करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
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