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1 करोड़ का भैंसा, सीमन से सालाना 21 लाख कमाई:सोनपुर मेले में बिक रहा प्रतिबंधित अमेरिकन बुल डॉग, रोज 8 लीटर दूध पीता है प्रधान बाबू

‘यह प्रधान बाबू है। 38 महीने का हो गया। मेरे लिए बहुत लकी है। इसके जन्म के साल मुखिया बना था। लोगों ने 50 लाख रुपए तक कीमत लगाई, लेकिन मैं नहीं बेचूंगा। यह 1 करोड़ से कम का नहीं। मेरे लिए बेटे जैसा है।’ बीरबल सिंह बड़े गर्व से अपने भैंसे प्रधान बाबू के बारे में बताते हैं। कहते हैं-इसके जन्म के साल मेरे पिता ब्रह्मदेव सिंह मुखिया बने थे। इसलिए इसका नाम प्रधान बाबू रखा है। बीरबल अपने भैंसा को लेकर सोनपुर मेला आए हैं। इसके सीमन से सालाना करीब 21 लाख रुपए (रोज 6 हजार) कमाई होती है। यह भैसा हर दिन 8 लीटर दूध पीता है। पटना से करीब 20km दूर लगा यह मेला कभी एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला था। अब यह मुख्य रूप से घोड़े, बकरी और थिएटर के लिए जाना जाता है। यहां प्रतिबंधित अमेरिकन बुल डॉग बिक रहा है। सोनपुर मेला में इस साल कितने घोड़े आए, कितने बिके? सबसे महंगा कौन है? मेला में किस तरह के कुत्ते लाए गए हैं? पढ़ें, ग्राउंड रिपोर्ट सोनपुर मेला से हाथी-घोड़े खरीदते थे राजा सोनपुर मेला का नाम सुनते ही जेहन में हाथी-घोड़ों की तस्वीरें आती हैं। एक वक्त था जब सोनपुर मेला में इतने हाथी आते थे कि गंडक के दोनों किनारे इनसे भरे रहते थे। राजा-महाराजा यहां अपनी सेना के लिए हाथी-घोड़े और हथियार खरीदने आते थे। वक्त बदला, हाथी की खरीद-बिक्री पर रोक लगी। अब यह मेला घोड़ों के व्यापार के लिए अधिक चर्चित है। इस साल करीब 8000 घोड़े बिके हैं। सोनपुर मेला में क्या खास है? यह जानने के लिए भास्कर की टीम पहुंची। गाय बाजार की शान बना जाफराबादी भैंसा प्रधान बाबू सोनपुर मेला ग्राउंड पहुंचने के बाद हम सबसे पहले गाय बाजार के रास्ते घोड़ा बाजार की ओर बढ़े। गाय बाजार पहुंचे तो देखा, एक भैंसा के पास भीड़ जुटी है। काले रंग का विशाल भैंसा पूरे शान से खड़ा था। मालिक ने सरसों के तेल से उसके शरीर की मालिश कर रखी है। कंघी किए हुए बाल, लाल रस्सी और गले पर लाल गमछा। हमने इसके मालिक पूर्व मुखिया ब्रह्मदेव सिंह कुशवाहा के बेटे बीरबल सिंह से बात की। वह रोहतास के सूर्यपुरा प्रखंड के गोशलडीह, रत्नपटी के रहने वाले हैं। एक करोड़ से कम का नहीं प्रधान बाबू बीरबल सिंह ने कहा, ‘प्रधान बाबू के लिए 50 लाख रुपए से अधिक की बोली लग चुकी है, लेकिन मेरी नजर में इसकी कीमत 1 करोड़ रुपए से कम नहीं। यह मेरे लिए बेटे जैसा है। इसके जन्म के साल पिताजी मुखिया बने थे। इसलिए प्रधान बाबू नाम रखा।’ उन्होंने बताया, ‘प्रधान बाबू करीब 8 फीट लंबा और 5 फीट ऊंचा है। यह बहुत शांत स्वभाव का है। भैंस की जाफराबादी नस्ल मूल रूप से गुजरात की है। इस नस्ल की भैंस अधिक दूध देती है। आकार में बड़ी होती हैं।’ बीरबल ने बताया कि हमलोग इसकी मां को गुजरात से खरीदकर लाए थे। उस समय वह गर्भवती थी। हमारे घर में इसका जन्म हुआ। इसके भोजन का खास ख्याल रखा जाता है। चोकर-भूसा के साथ यह रोज केला, सेब और काजू खाता है। 8 लीटर दूध पीता है। बिरबल ने बताया, ‘इस भैंसा से हर साल करीब 18-20 लाख रुपए कमाते हैं। उन्होंने बताया कि इस भैंसे का सीमेन काफी महंगा बिकता है। रोज तीन से चार राउंड बिडिंग होता है। हर राउंड के लिए 2 हजार रुपए चार्ज लगता है।’ मेला आया 15 लाख का राजा, 11 लाख का सुल्तान गाय बाजार से हम आगे बढ़े और घोड़ा बाजार पहुंचे। यहां 15 लाख रुपए के राजा और 11 लाख रुपए के सुल्तान की चर्चा सुनी। हमें सीवान के बसंतपुर के रहने वाले अली इमाम खान मिले। पेशे से घोड़ा व्यवसायी और राजा घोड़ा के मालिक हैं। इमाम खान ने कहा, ‘सोनपुर मेला में इस साल घोड़ों का खूब कारोबार हुआ है। करीब 8 हजार घोड़े मेला में आए थे, अब करीब 200 बचे हैं। घोड़ा खरीदना-बेचना मेरा पुश्तैनी काम है। पहले दादा घोड़ा बेचते थे। उनके बाद पिता ने यह काम संभाला। पिछले 40 साल मैं घोड़ा बेच रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘हर साल सोनपुर मेला में घोड़ा बेचने आता हूं। मेरे पास इस समय मारवाड़ी और सिंधी नस्ल के घोड़े हैं। ये घोड़े पंजाब के पाकिस्तान बॉर्डर के पास लगने वाली एक मंडी से खरीदकर लाया हूं।’ 5.6 फुट का है सुल्तान, सीधा खड़ा हो जाए तो लगाम लगाना मुश्किल इमाम खान ने बताया कि उनका घोड़ा सुल्तान मारवाड़ी नस्ल का है। इसका शरीर पूरा सफेद है। ऐसे घोड़े को नुकरा कहते हैं। मेले में इस कद-काठी का नुकरा घोड़ा और कोई नहीं है। अली ने कहा, ‘सुल्तान की ऊंचाई 5.6 फुट है। यह सीधा खड़ा हो जाए तो लगाम लगाने वाला आदमी इसके सिर तक ठीक से नहीं पहुंच पाता। सुल्तान को दो साल पहले खरीदा था। तब इसकी उम्र चार महीने थी।’ उन्होंने कहा, ‘यह रेस लगाने वाला घोड़ा नहीं है। इसका ज्यादातर इस्तेमाल सजावट और शोभा के लिए होता है। लोग इसे अपने दरवाजे पर खड़ा रखते हैं, बारात में दूल्हा बिठाकर घुमाते हैं।’ सुल्तान की कीमत को लेकर मेले में खूब मोलभाव हो रहा है। ग्राहकों ने अब तक 8-9 लाख रुपए तक बोली लगाई है। अली इमाम 11 लाख रुपए से कम में बेचने को तैयार नहीं। उन्होंने बताया कि इस घोड़े को शादी-विवाह और शुभ कामों में भेजने से हर साल करीब 4 लाख रुपए आमदनी हो जाती है। 40-45 km/h की रफ्तार से दौड़ सकता है राजा घोड़ा बाजार में ही हमें अली इमाम के रिश्तेदार इरफान मिले। वह भी घोड़े बेचने आए हैं। कहते हैं मेरे पास सिन्धी नस्ल का घोड़ा राजा है। इसकी कीमत 15 लाख रुपए है। यह 40-45 km/h के स्पीड से दौड़ सकता है। इरफान ने कहा, ‘राजा को रोज करीब 15 kg चारा देता हूं। यह 1kg काजू, चना, छुहारा और बादाम खाता है। रात में गुड़, सूखे मेवे और उबला हुआ चावल देता हूं। इससे इसकी ताकत और चमक बनी रहती है।’ घोड़ा बिकने पर मेला मैनेजर को देना होता है 1500 रुपए घोड़ा बाजार में चंद कदम आगे बढ़ने पर हमें घोड़ा व्यापारी अरुण पटेल मिले। वह बक्सर जिले के डुमरांव के रहने वाले हैं। अरुण पटेल ने बताया, ‘हर साल सोनपुर मेला आता हूं। राजस्थान और हरियाणा से घोड़े लाकर यहां बेचता हूं। इस साल 30 घोड़े और घोड़े के बच्चों को लेकर आया था। 15 बिके, बाकी को गांव भेज दिया। बिकने पर प्रति घोड़ा मेला मैनेजमेंट को 1500 रुपए देना होता है। घोड़ा नहीं बिका तो पैसे नहीं लगते।’ पहाड़ी बकरी की कीमत 1400 रुपए प्रति किलो घोड़ा बाजार से लौटते वक्त हम बकरी बाजार पहुंचे। यहां काफी संख्या में बकरियां लाईं गईं हैं। लखनऊ के मोहम्मद सरवर 15 दिनों से मेला में हैं। सरवर ने कहा, ‘मेरे पास तोतापरी, हंस, मित्तल जैसी नस्लों की बकरियां हैं। इन्हें दूध के लिए पाला जाता है। इन नस्लों के बकरे के मांस की मांग अधिक है।’ सरवर ने हमें एक पहाड़ी बकरी दिखाई। कहा, ‘इसकी कीमत 1400 रुपए प्रति किलो है। हम लोग बकरी को वजन के हिसाब से बेचते हैं।’ तोतापुरी के जोड़े की कीमत 75 हजार रुपए जयपुर के मुन्ना राजस्थानी नस्ल ‘तोतापरी’ के जोड़े लेकर सोनपुर मेला पहुंचे हैं। उन्होंने कहा, ‘ये असली राजस्थानी नस्ल के हैं। जोड़े की कीमत 75 हजार रुपए है। तोतापरी नस्ल के बकरे का मीट महंगा बिकता है। करीब 100 बकरे-बकरियां लेकर आया था। 40-45 बिक गईं हैं।’ अमेरिकन बुली डॉग भारत में बैन, मेला लेकर पहुंचे वाहिद सोनपुर मेला में हमें ऐसी प्रजाति के जानवर भी बिकने के लिए लाए गए मिले, जिनकी खरीद-बिक्री भारत में बैन है। पटना में रहने वाले वाहिद ‘अमेरिकन बुली’ डॉग लेकर आए हैं। उन्होंने कहा, ‘अमेरिकन बुली भारत में बैन है। यह बहुत खतरनाक होता है। इसलिए इस कुत्ते को रखना नियमों के हिसाब से मुश्किल है। यह नस्ल एग्रेसिव होता है। मालिक के लिए जान देने तक की वफादारी निभाता है। यह बुलडॉग से भी ज्यादा खतरनाक है।’ वाहिद ने कहा कि इस कुत्ते की कीमत 25 हजार रुपए है। इसपर रोज करीब 500 रुपए खर्च होते हैं। दिन भर में करीब 1 kg चिकन, अंडे और दूध उबालकर हल्दी के साथ खिलाना होता है। वाहिद ने कहा, ‘इस नस्ल के एक पपी को मैंने पहले 40 हजार रुपए में बेचा था। मेरे पास पॉमेरियन कुत्ता, लेब्राडोर और जर्मन शेफर्ड समेत कई नस्ल के कुत्ते हैं।’ कुत्तों के एक और कारोबारी पटना सिटी के छोटू ने कहा, ‘मेरे पास गोल्डन रिट्रीवर, पग, पामेरियन, लेब्राडोर, पिट बुल और अमेरिकन बुली सहित कई नस्लों के कुत्ते हैं। अमेरिकन बुली को लोग खतरनाक और एग्रेसिव मानते हैं, इसलिए यह फैमिली के लिए कम और सिक्योरिटी के लिए ज्यादा लिया जाता है।’ मेले में हमें तोता, पहाड़ी तोता, बत्तख, हंस, कबूतर, जैसी कई प्रजातियों की चिड़ियां बिकती नजर आईं। बदल गया सोनपुर मेला, अब थिएटर के चलते जुटती है ज्यादा भीड़ सोनपुर मेला में घूमते हुए हम विकास कुमार से मिले। विकास का घर सोनपुर में ही है। बचपन से इस मेला को देख रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘अब मेला पहले जैसा नहीं रहा। पहले वाली रौनक खत्म हो गई है। पहले मेला की चर्चा हाथियों के चलते होती थी। बिक्री पर रोक लगने के चलते अब हाथी नहीं आते।’ विकास ने कहा, ‘पहले हजारों की संख्या में बैल मेला लाए जाते थे। दूर-दूर से किसान यहां बैलों की खरीद-बिक्री के लिए आते थे। अब बैलों की जगह ट्रैक्टरों ने ले ली है। पशुओं के नाम पर मेला में घोड़ों, बकरियों और कुत्तों की खरीद-बिक्री होती है। अब थिएटर के चलते ज्यादा भीड़ जुटती है।’


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