राजस्थान हाईकोर्ट ने निचली अदालत का 31 साल पुराना फैसला पलटा है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि दो व्यक्तियों के बीच निजी या व्यावसायिक लेन-देन के विवाद को SC-ST एक्ट का रूप देना कानून का सरासर गलत इस्तेमाल है। जस्टिस फरजंद अली की अदालत ने रिपोर्टेबल जजमेंट में कहा- अगर कोई घटना बंद दुकान या घर की चारदीवारी के भीतर होती है, तो उसे ‘पब्लिक व्यू’ में नहीं माना जा सकता। जो इस एक्ट के लिए अनिवार्य शर्त है। कोर्ट ने 1994 में निचली अदालत की ओर से सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए आरोपी शोरूम मालिक को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी (दुकानदार) द्वारा बकाया राशि की मांग करना कानूनी रूप से जायज था। निचली अदालत ने एक निजी विवाद में SC/ST Act के कड़े प्रावधान लागू करके कानून का गलत इस्तेमाल किया है। चारदीवारी के भीतर अपमान SC-ST एक्ट के दायरे में नहीं
फैसले का सबसे अहम कानूनी पहलू ‘पब्लिक व्यू’ की व्याख्या है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक्ट की धारा 3(1)(x) तभी लागू होती है, जब अपमानजनक घटना सार्वजनिक स्थान पर या जनता की नजरों के सामने हुई हो। कोर्ट ने नक्शा मौका का हवाला देते हुए कहा- कथित घटना शोरूम के अंदर ‘चारदीवारी के भीतर’ हुई थी। यह एक बंद जगह थी, जहां आम जनता की सीधी पहुंच या दृश्यता नहीं थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि चूंकि घटना सार्वजनिक दृष्टि में नहीं थी, इसलिए SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं बनता। विवाद बाइक फाइनेंस, किस्त और रिपेयरिंग के रुपयों का
जोधपुर निवासी शिकायतकर्ता राजन सोलंकी ने 22 अगस्त 1991 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें बताया कि जोधपुर के ही पुंगलपाड़ा निवासी आरोपी बृजमोहन उर्फ राजा ने उन्हें जानबूझकर जाति का हवाला देते हुए अपमानित किया। धमकाया और शारीरिक रूप से हमला किया। शिकायत में आरोप लगाया गया कि यह आचरण SC/ST Act की धारा 3(1)(x) और IPC की धारा 323 के तहत अपराध है। विवाद की असली वजह व्यावसायिक थी। राजन ने अप्रैल 1990 में बृज मोहन के शोरूम से बजाज कंपनी की बाइक लोन पर खरीदी थी, जो बजाज ऑटो फाइनेंस कंपनी लिमिटेड से लोन पर ली थी। सोलंकी ने मासिक किस्तों का भुगतान नहीं किया। उनके कई चेक बाउंस हो गए, जो ट्रायल के दौरान स्वीकृत तथ्य हैं। इस दौरान बाइक का एक्सीडेंट हो गया। उसे बृज मोहन के शोरूम में रिपेयरिंग के लिए लाया गया। रिपेयरिंग का खर्च लगभग 10 हजार रुपए आया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, जब राजन बाइक लेने गए तो उन्होंने डिमांड ड्राफ्ट से भुगतान की पेशकश की, जिसे बृज मोहन ने मना कर दिया। कैश या चेक में भुगतान की मांग की। आरोप है कि इसी बातचीत के दौरान बृज मोहन ने राजन को उनकी जाति का हवाला देकर अपमानित किया और शोरूम से बाहर धक्का दे दिया। ट्रायल कोर्ट का फैसला
जांच के बाद IPC की धारा 323 और SC/ST Act की धारा 3(1)(x) के तहत चार्जशीट दायर की गई। ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष ने सात गवाह पेश किए और दस्तावेजी साक्ष्य दिए। बचाव पक्ष ने तीन गवाह और 12 दस्तावेज पेश किए। 19 सितंबर 1994 को स्पेशल जज ने बृज मोहन को दोनों धाराओं के तहत दोषी ठहराया। छह महीने की साधारण कैद और 1500 रुपए जुर्माना की सजा सुनाई गई। इसी फैसले के खिलाफ बृज मोहान ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने कहा- विशेष कानून का गलत इस्तेमाल हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के रवैये पर कड़ी टिप्पणी करते हुए क्या कहा, जानिए… कोर्ट ने माना कि यह मामला दीवानी (Civil) प्रकृति का था, जिसे आपराधिक रंग दिया गया। परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने 1994 के फैसले को रद्द करते हुए आरोपी बृज मोहन को सभी आरोपों से बरी कर दिया और उसकी जमानत मुचलके खारिज कर दिए। ……. ये खबर भी पढ़िए… बिना नोटिस-बिना सुनवाई,हाईकोर्ट ने पलट दिया सिंगल जज का फैसला:ग्राम पंचायत सरपंच को नहीं दिया मौका, सिंगल बेंच को वापस भेजा मामला राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर की डिवीजन बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए एकलपीठ द्वारा 27 मई को पारित आदेश को रद्द कर दिया। जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि सिंगल जज ने बिना नोटिस जारी किए और बिना सुनवाई का मौका दिए ही फैसला सुना दिया, जो न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। (पढ़िए पूरी खबर)
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