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स्पेन की जैमा कर रही हिमालय को साफ:पीठ पर लादा 200 किलो कूड़ा; जहां सांस लेना मुश्किल, वहां कचरा बीन रही

उत्तराखंड के पहाड़ों को सात समंदर पार से आई एक यूरोपियन लड़की साफ कर रही है। स्पेन की रहने वाली जैमा कोलिल पेशे से ग्राफिक डिजाइनर हैं, लेकिन आज उनकी असली पहचान हिमालय की चोटियां साफ करने वाली बेटी के तौर पर बन गई है। करीब दो साल पहले जैमा भारत ट्रैकिंग के लिए आई थीं। लेकिन चोटियों पर बिखरी गंदगी ने उन्हें झकझोर दिया। इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड को अपना घर बनाया और वह जंग शुरू की, जिसे असल में हमें लड़ना चाहिए था। जैमा कोलिल ने बातचीत के दौरान बताया कि वे पेशे से ग्राफिक डिजाइनर हैं, लेकिन उन्हें पहाड़ों और योग से खास प्यार है। ऋषिकेश में योग सीखने आईं थी जैमा जैमा कोलिल ने कहा कि फिलहाल मैं उत्तराखंड के चमोली जिले के लोहाजंग गांव में एक होम-स्टे में रहती हूं। कुछ साल पहले जब पहली बार भारत आई, तो मैंने ऋषिकेश के एक आश्रम में योग सिखा। यह मेरे लिए बिल्कुल अलग अनुभव था। लेकिन असली चुनौती तब मिली जब मैं नेपाल के अन्नपूर्णा ट्रैक पर गई। तब महसूस हुआ कि हिमालय के सामने स्पेन के पहाड़ कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि वहां का सबसे ऊंचा पहाड़ भी सिर्फ 3,000 मीटर ऊंचा है। लेकिन हिमालय पर चढ़ने के लिए खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना पड़ता है। जब मैं हिमालय में ट्रैकिंग करने गई, तो वहां फैली गंदगी देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। स्पेन में हम अपना कचरा खुद साथ लेकर वापस लाते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यह मेरे लिए थोड़ा अजीब था। शायद यही वह पल था, जब मेरा और हिमालय का गहरा रिश्ता बन गया। 2023 में ट्रैकिंग के दौरान बदला मन जैमा कोलिल ने 108 चोटियों को साफ करने का संकल्प लिया है। वे उन चोटियों में कूड़ा उठाती है, जहां ऑक्सीजन की कमी से अच्छे-अच्छों की सांसें फूल जाती हैं। जैमा अब तक हिमालय की ऊंची चोटियों से 200 किलो से ज्यादा कचरा अपने कंधों पर ढोकर नीचे ला चुकी हैं। जिन रास्तों पर हम खुद को संभालने के लिए लाठियां और ऑक्सीजन सिलेंडर ढोते हैं, वहां यह युवती कचरे से भरे बैग ढो रही है। जैमा कोलिल बताती हैं कि 2023 में वह दोबारा भारत ट्रैकिंग और योग सिखाने आईं, और यहीं से “108 पीक” अभियान की शुरुआत हुई। इस नाम के पीछे वजह यह थी कि हिंदू धर्म में 108 को शुभ माना जाता है। चाहे माला के 108 मनके हों या योग की परंपरा। त्रिदेव की अवधारणा में भी इसका विशेष महत्व है।इसी सोच के साथ मैंने लक्ष्य तय किया और अब तक हमने हिमालय के अलग-अलग हिस्सों से 200 किलो से ज्यादा कचरा निकाला है। ऋषिकेश में मिले मनोज ने दिया साथ जैमा इस लड़ाई में अकेली नहीं हैं। उनके साथ हैं स्थानीय ट्रैकर मनोज राणा। दोनों की मुलाकात ऋषिकेश में हुई। दोस्ती हुई और फिर इस अनोखी पहल ने जन्म लिया। जैमा कहती हैं कि मनोज सिर्फ अच्छे ट्रैकर ही नहीं, बल्कि पहाड़ों से सच्चा प्यार भी करते हैं। मनोज राणा बताते हैं कि वह चमोली जिले के लोहाजंग गांव के रहने वाले हैं। “मैंने अपने होम टाउन से इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की। शुरुआत में हमने अपने ट्रैक पर दो-तीन बार खुद सफाई की, लेकिन कुछ दिनों बाद वहां फिर से गंदगी दिखी। लोग कचरा उठाकर वापस नहीं ले जाते।” इसके बाद हमने 108 पीक नाम से एक योजना बनाई, जिसके जरिए इस अभियान को आगे बढ़ाया गया। जैमा कहती हैं कि सफाई करना चुनौती नहीं है, लेकिन दोबारा कचरा फैल जाना असली समस्या है। इसलिए जैमा और मनोज स्थानीय स्कूलों में बच्चों को हिमालय का महत्व, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संरक्षण के बारे में समझा रहे हैं। लोग हिमालय को देवता मानते हैं, फिर भी गंदगी फैलाते हैं जैमा कहती हैं कि भारत में लोग हिमालय को देवता मानते हैं, लेकिन यहां गंदगी भी उतनी ही फैलाई जाती है।पश्चिमी देश की नागरिक होने के नाते यह मेरे लिए अजीब है कि जिस जगह को पूजा जाता है, उसका इतना अपमान कैसे किया जा सकता है। यह मेरे लिए एक बड़ा विरोधाभास है। शायद इसी वजह से पश्चिमी देशों में भारत को विरोधाभासों की भूमि कहा जाता है।हमारे अभियान की सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ हिमालय से कचरा ढोकर लाना नहीं, बल्कि वहां दोबारा कचरे का जमा हो जाना है। इसीलिए हम स्कूलों में जाकर बच्चों को ग्लोबल वार्मिंग और पहाड़ों के संरक्षण के बारे में जागरूक कर रहे हैं।हम स्थानीय महिलाओं से भी बातचीत कर रहे हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि अगर स्थानीय लोग जागरूक होंगे, तो परिणाम ज्यादा बेहतर होंगे।सच कहूं, अब यह इलाका मेरे लिए सिर्फ जगह नहीं, बल्कि मेरा घर बन चुका है।


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