सुप्रीम कोर्ट आज केरल में SIR की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की याचिका पर सुनवाई करेगा। केरल सरकार की याचिकाओं में राज्य में लोकल बॉडी चुनावों के कारण SIR की प्रक्रिया को टालने की मांग की गई है। इससे पहले, 26 नवंबर को, कोर्ट ने तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में SIR एक्सरसाइज को चुनौती देने वाली पॉलिटिकल लीडर्स, एक्टिविस्ट्स और NGO की तरफ से दायर कई पिटीशन पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। इधर, पश्चिम बंगाल में एसआईआर के बीच कई बूथ पर 100% एन्युमेरेशन फॉर्म डिजिटाइज्ड हो गए। निर्वाचन आयोग को 2208 पोलिंग स्टेशन में कुछ संदेह हुआ, जब यहां से अनकलेक्टेबल फॉर्म जीरो पाया गया। अनकलेक्टेबल फॉर्म में डेथ, डुप्लीकेट, एब्सेंट और शिफ्टेड वोटर्स कैटेगरी हैं। निर्वाचन आयोग के सॉफ्टवेयर में इन बूथों पर एक भी अनकलेक्टेबल फॉर्म नहीं मिला, जबकि ऐसा संभव नहीं कि एक भी वोटर उन 4 कैटेगरी में न हो। निर्वाचन आयोग ने सीईओ दफ्तर में इसकी जांच कर रिपोर्ट देने को कहा। इसके बाद ही सीईओ मनोज अग्रवाल ने संबंधित जिलों के डीईओ को 24 घंटे के भीतर यानी मंगलवार तक रिपोर्ट देने को कहा है। तमिलनाडु में SIR से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई 4 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट एक्टर से नेता बने विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) की SIR के खिलाफ याचिका पर भी सुनवाई के लिए मान गया। CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले को तमिलनाडु से जुड़ी दूसरी पेंडिंग याचिकाओं के साथ 4 दिसंबर को सुनवाई के लिए लिस्ट किया है। जब TVK के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने दावा किया कि आंगनवाड़ी वर्कर और स्कूल टीचर बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के तौर पर टारगेट पूरा करने के लिए बहुत दबाव में हैं। अगर वे टारगेट पूरा नहीं करते हैं, तो उन्हें रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल्स एक्ट के सेक्शन 32 के तहत नोटिस मिलते हैं, जिसके तहत उन्हें जेल हो सकती है। शंकरनारायणन ने कहा, “BLO को तीन महीने की जेल हो सकती है और वे अपनी नौकरी खो सकते हैं और जेल जा सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक 21 BLO ने आत्महत्या की है। बांग्लादेश से आकर बंगाल में बसे लोगों की याचिका पर 9 दिसंबर को सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की तरफ से दायर एक याचिका पर भी नोटिस जारी किया, जिन्हें 2019 के सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के तहत सर्टिफिकेट जारी करने में देरी के कारण मताधिकार से वंचित होने का डर है। कोर्ट ने NGO आत्मदीप की याचिका पर EC से जवाब मांगा है। आत्मदीप ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें 2014 से पहले भारत में आए हिंदू, बौद्ध, ईसाई और जैन शरणार्थियों के लिए सुरक्षा की मांग वाली PIL पर सुनवाई करने से मना कर दिया गया था, लेकिन उन्हें अभी तक सिटिजनशिप नहीं दी गई है। पिटीशनर NGO की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा कि बौद्ध, सिख, जैन और ईसाई समुदायों के शरणार्थी बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न से भागकर कानूनी कट-ऑफ तारीख से पहले पश्चिम बंगाल में बस गए हैं। CAA के तहत उनके एप्लीकेशन अब तक प्रोसेस नहीं हुए हैं और वे SIR प्रोसेस के तहत वोटर लिस्ट में प्रोविजनल नाम शामिल करने की मांग कर रहे हैं। NGO ने कहा, “भले ही हम 2014 से पहले आ गए थे, लेकिन हमारे एप्लिकेशन प्रोसेस नहीं किए गए हैं। बेंच ने कहा कि इस मामले की डिटेल में सुनवाई 9 दिसंबर को होगी, साथ ही पश्चिम बंगाल में SIR एक्सरसाइज को चुनौती देने वाली संबंधित पिटीशन पर भी सुनवाई होगी। CJI कांत ने कहा- हमारी प्रॉब्लम यह है कि हम सिर्फ इसलिए फर्क नहीं कर सकते कि कोई जैन है या कोई हिंदू है। उन्होंने कहा कि नागरिकता के मुद्दे की जांच केस-बाय-केस बेसिस पर करनी होगी।
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