सीवान नगर परिषद के दो कर्मियों कनीय अभियंता ओमप्रकाश सुमन और कार्यालय सहायक रंजीत कुमार शर्मा—के आवास पर जिला प्रशासन द्वारा की गई छापेमारी अब विवाद का केंद्र बन गई है। महादेवा थाना क्षेत्र के रामदेव नगर में हुई इस कार्रवाई ने प्रशासनिक हलकों और आम जनता दोनों में चर्चा छेड़ दी है। छापेमारी के पीछे का दावा सदर एसडीपीओ अजय कुमार सिंह और नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी विपिन कुमार के नेतृत्व में की गई इस कार्रवाई में नगर थाना, महादेवा थाना और महिला थाना के जवानों को तैनात किया गया था। प्रशासन ने बताया कि नगर परिषद से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण फाइलें कार्यालय में नहीं मिल रही थीं और सूचना थी कि वे संबंधित कर्मियों के घरों में रखी गई हैं। हालांकि, छापेमारी के दौरान कोई भी फाइल बरामद नहीं हुई, जिससे कार्रवाई की गंभीरता और औचित्य पर संदेह गहरा गया। निजता और संवेदनशीलता पर उठे सवाल रंजीत कुमार शर्मा जिस किराये के मकान में रहते हैं, वहां की महिला मकान मालिक ने बिना अनुमति घर में प्रवेश करने पर आपत्ति जताई। आरोप है कि सदर एसडीपीओ ने महिला से असंवेदनशील भाषा में बात की। छापेमारी के दौरान पुलिस ने मुख्य दरवाजा तोड़कर घर में प्रवेश किया और कमरे में रखे लैपटॉप व चार्जर जब्त कर लिए। यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती किस कानूनी आधार पर की गई। मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए मौके पर मौजूद अधिकारियों ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया और मौके से गाड़ी में बैठकर रवाना हो गए। जिलाधिकारी की प्रतिक्रिया और पृष्ठभूमि दैनिक भास्कर के संवाददाता के सवाल पर जिलाधिकारी विवेक रंजन मैत्रेय ने बातचीत टालते हुए केवल ‘थैंक्यू’ कहा। सूत्रों के अनुसार, जिलाधिकारी के पदभार ग्रहण करने के बाद से नगर परिषद में व्याप्त अनियमितताओं पर वे सख्त रुख अपना रहे हैं और लगातार निरीक्षण कर रहे हैं। हाल ही में नगर परिषद की निवर्तमान कार्यपालक पदाधिकारी अनुभूति श्रीवास्तव को आय से अधिक संपत्ति के मामले में निलंबित किया गया था। निलंबन के दिन ही 76 कार्यादेश जारी किए गए थे, जिन्हें संदिग्ध मानते हुए जिलाधिकारी ने रद्द करने के लिए नगर विकास एवं आवास विभाग के सचिव को पत्र लिखा। यही कार्यादेश और संबंधित फाइलें इस छापेमारी का आधार मानी जा रही हैं। स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया स्थानीय लोग कार्रवाई की आवश्यकता तो मानते हैं और भ्रष्टाचार पर कदम को सराहनीय बताते हैं, लेकिन उनका कहना है कि केवल फाइलों की तलाश के नाम पर सरकारी कर्मियों के घरों पर भारी पुलिस बल के साथ छापेमारी करना, दरवाजा तोड़ना और मकान मालिक से असंवेदनशील व्यवहार करना प्रशासनिक शक्ति का अनुचित प्रदर्शन प्रतीत होता है। वे चाहते हैं कि ऐसी कार्रवाई कानून और संवेदनशीलता के दायरे में हो, ताकि प्रशासन पर जनता का भरोसा बना रहे।
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