सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड स्थित बोधायनसर में आज महान गणितज्ञ, दार्शनिक और वेदविद भगवान बोधायन की जयंती श्रद्धापूर्वक मनाई जा रही है। पौष कृष्ण द्वादशी के पावन अवसर पर मंदिर परिसर को फूलों, दीपों और रंगीन रोशनी से सजाया गया है। सुबह से ही श्रद्धालु उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंच रहे हैं। बोधायनसर, जो बनगांव गांव में स्थित है, वह ऐतिहासिक स्थल है जहां भगवान बोधायन ने तपस्या करते हुए धर्म, गणित और दर्शन के अमूल्य ग्रंथों की रचना की थी। यह पावन भूमि सदियों से ज्ञान, तप और साधना की प्रतीक रही है। यहाँ का पीपल वृक्ष और प्राचीन मंदिर स्थानीय लोगों के लिए ज्ञान की विरासत का प्रतीक हैं। अध्ययन के माध्यम से ज्ञान को बढ़ाया मान्यता है कि इसी स्थल पर भगवान बोधायन ने गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप शास्त्रार्थ और अध्ययन के माध्यम से ज्ञान को आगे बढ़ाया। राज्य सरकार द्वारा बीते वर्षों में इस स्थल के सौंदर्यीकरण और बुनियादी सुविधाओं का विकास किया गया है, ताकि इसे पर्यटन मानचित्र पर स्थापित किया जा सके। आज यहां न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दूर-दराज से आए श्रद्धालु और शोधार्थी भी इस ऐतिहासिक धरोहर को नमन करने पहुंच हैं। भगवान बोधायन का जन्म 8वीं से 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच मिथिला क्षेत्र में उपवर्ष नामक स्थान पर माना जाता है। वे अपने समय के असाधारण विद्वान थे, जिन्होंने गणित, धर्म, दर्शन और वेदशास्त्र को एक नई दिशा दी। उनके द्वारा रचित बौधायन सूत्र प्राचीन भारत में यज्ञ, वैदिक अनुष्ठान और ज्यामिति के नियमों का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। इन्हीं सूत्रों में उस प्रमेय का उल्लेख मिलता है, जिसे आज विश्व पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जानता है। यह तथ्य दर्शाता है कि भारतीय गणितज्ञों ने पश्चिमी जगत से सदियों पहले वैज्ञानिक और तार्किक सिद्धांतों को विकसित कर लिया था। बोधायन ने 200 ग्रंथों की रचना की बोधायन केवल गणित तक सीमित नहीं थे। वे एक महान दार्शनिक, ज्योतिषाचार्य और वेदज्ञ भी थे। परंपराओं के अनुसार उनके शिष्यों में महान व्याकरणाचार्य पाणिनि भी शामिल थे, जिन्होंने संस्कृत व्याकरण की अमर कृति ‘अष्टाध्यायी’ की रचना की। कहा जाता है कि बोधायन ने लगभग दो सौ से अधिक ग्रंथों की रचना की, जिनमें वेदवृति, वेदांत, गृहसूत्र और धर्मसूत्र प्रमुख हैं। उनके ग्रंथों में धार्मिक नियमों के साथ-साथ सामाजिक जीवन, गणितीय तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी समावेश मिलता है। स्थानीय पुरालेखों के अनुसार उनके पिता का नाम शंकरदत्त और माता का नाम चारुमति था। संत समाज -विश्वास समाज में किया स्वीकार इस संबंध में स्थानीय सुनील झा ने बताया कि मूर्ति प्रतिस्थापन कर इंद्रिय करण करने का जो संदेश उन्होंने दिया उसको पूरे भारतवर्ष के तत्कालीन संत समाज और विश्वास समाज में स्वीकार किया। सही मन में मूर्ति पूजन की परंपरा आज तक जो चल रही है वह भगवान बोधायन की देन है। वेद वेदांत को पर व्याख्यान देकर अपनी तत्कालीन हजारों हजार शिष्यों के बीच उन्होंने वेदांत के सूत्रों को सरलीकृत किया। वहीं सूत्र उनके महाभाष्य के रूप में वर्णित होकर काल क्रम में रामानंदाचार्य जी महाराज, वल्लभाचार्य उन्हीं के शिष्य परंपरा में है। रामानुजाचार्य जी महाराज ने स्वयं लिखा है कि भगवान के द्वारा दिए गए ग्रंथ सूत्र को मैं अति संक्षिप्त रूप में यहां व्याख्या ही कर रहा हूं। भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन जयंती के अवसर पर बोधायनसर में विशेष आरती, अष्टजाम, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया गया है। श्रद्धालु समीपवर्ती घाटों पर स्नान कर परिक्रमा करते हुए मंदिर पहुंच रहे हैं। स्थानीय बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों ने इस स्थल को राजकीय महोत्सव का दर्जा देने तथा भगवान बोधायन के सिद्धांतों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की मांग उठाई है।
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