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सीतामढ़ी के बोधायन आश्रम में गुरुकुल परंपरा जीवित:वैदिक मंत्रों की गूंज से सनातन शिक्षा को नया जीवन

सीतामढ़ी के बाजपट्टी प्रखंड स्थित बोधायन आश्रम अपनी ऐतिहासिक पहचान पुनः प्राप्त कर रहा है। यह वही स्थल है जहाँ महर्षि बोधायन ने वैदिक सूत्रों और ऋचाओं की रचना की थी। आधुनिक युग में जहाँ गुरुकुल परंपरा विलुप्त हो रही थी, वहीं बोधायन आश्रम नारायण संस्कृत विद्यापीठ इस गौरवशाली विरासत को पुनर्जीवित करने का केंद्र बन गया है। सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी से पंजीकृत इस विद्यापीठ की स्थापना 10 अक्टूबर 2024 को अश्विन मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को महंत जनार्दन दास के संरक्षण में हुई थी। वर्तमान में, आचार्य शंभुनाथ शास्त्री के मार्गदर्शन में नौ ब्रह्मचारी छात्र वैदिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहाँ छात्रों का जीवन पूर्णतः शास्त्रोक्त अनुशासन पर आधारित है। दिन की शुरुआत ब्रह्ममुहूर्त में सुबह चार बजे योग, संध्या वंदन और मंत्रोच्चार से होती है। छात्रों को वेद, वेदांग, व्याकरण, ज्योतिष, गीता, पुराण, न्यायशास्त्र और कर्मकांड की व्यवस्थित शिक्षा दी जा रही है। “वसुधैव कुटुंबकम” और “विश्व कल्याण” इन ग्रंथों का मूल सार आचार्य शंभुनाथ शास्त्री के अनुसार, “वसुधैव कुटुंबकम” और “विश्व कल्याण” इन ग्रंथों का मूल सार है। उन्होंने कहा कि आज के समय में इनकी प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। यह गुरुकुल न केवल स्थानीय छात्रों के लिए, बल्कि सीमांचल और नेपाल तक के विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का केंद्र बन चुका है। मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, झंझारपुर, सीतामढ़ी और नेपाल के विभिन्न जिलों से 20 से अधिक छात्र यहां आवासीय व्यवस्था के साथ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। व्यवस्था पर्यटन विभाग द्वारा निर्मित भवनों में की गई छात्रों के रहने की व्यवस्था पर्यटन विभाग द्वारा निर्मित भवनों में की गई है। भोजन और अन्य संसाधन ग्रामीण सहयोग तथा धार्मिक अनुष्ठानों से प्राप्त दक्षिणा से पूरे किए जाते हैं। यहाँ अध्ययनरत छात्र बताते हैं कि इस गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करना उनके लिए एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है। ग्रामीण समाज इस पहल को सनातन संस्कृति के पुनर्जीवन का एक मजबूत प्रयास मानता है। ग्रामीणों का विश्वास है कि यदि प्रशासनिक सहयोग मिले, तो यह गुरुकुल बिहार-नेपाल क्षेत्र का एक प्रमुख वैदिक शिक्षा केंद्र बन सकता है। यह पहल केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और वैदिक परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक संकल्प बन चुकी है।


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