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सिस्टम की नींद में जनता की आवाज दब रही:सूचना आयोग : 29,919 मामले पेंडिंग 2013 की अपील पर सुनवाई 2026 में

सूचना का अधिकार को लोकतंत्र में नागरिकों का सबसे सशक्त औजार माना गया। इसका उद्देश्य था सरकारी कामकाज को पारदर्शी बनाना, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना और जनता को समयबद्ध सूचना देकर सत्ता को जवाबदेह बनाना। लेकिन, बिहार राज्य सूचना आयोग में न्याय का कैलेंडर उल्टा चल रहा है। 2013 की अपीलें 2026 में सुनवाई पर आ रही हैं। प्रतिवर्ष औसतन 7000 पेंडिंग मामले बढ़ रहे हैं। कुल 29,919 द्वितीय अपील लंबित हैं। इनमे नगर विकास, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य विभागों के मामले ज्यादा हैं।सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत लोक सूचना पदाधिकारी (PIO) को 30 दिनों में सूचना, प्रथम अपील पर 45 दिनों में निर्णय और द्वितीय अपील पर 90 दिनों में निपटारा अनिवार्य है। 1550 मामलों में अर्थदंड, वसूली अस्पष्ट : सूचना में देरी या इनकार पर 2015-23 में 1,550 मामलों पर ₹~3.75 करोड़ दंड लगाया गया। ज्यादातर मामलों में ₹25,000 (अधिकतम) जुर्माना लगाया गया, तब भी सूचना देने की प्रवृत्ति में सुधार नहीं है। क्योंकि वसूली अस्पष्ट है। आरटीआई कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह देरी भ्रष्टाचार उजागर करने के बजाय प्रक्रिया को औपचारिक बना रही है। गौरतलब है कि आयोग के योजना मद में 7 करोड़ और गैर योजना मद में 4 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष खर्च होते हैं। केस- 1 सामान्य सूचना, तीन साल इंतजार बक्सर के अधिवक्ता शारदेन्दु राय ने 2022 में थाना प्रभारी की पदस्थापना व संपत्ति विवरण मांगा। अपीलों के बावजूद सूचना अप्राप्त है। 2026 में सुनवाई होनी है। उन्होंने कहा कि एक साधारण सूचना के लिए तीन साल की देरी जवाबदेही पर सवाल है। केस – 2 अवैध निर्माण, तारीख 2026 में RTI एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय ने 2022 में अवैध निर्माण की जानकारी मांगी। तीन साल बाद भी स्पष्ट जवाब नहीं मिला। 2025 में नोटिस जारी हुआ, सुनवाई 2026 में तय। उन्होंने कहा कि तात्कालिक मामलों में यह देरी संरक्षण जैसी है। केस – 3 12 साल बाद सुनवाई : भागलपुर के RTI एक्टिविस्ट अजीत कुमार सिंह ने 2013 में कृषि विभाग से सूचना मांगी। अपीलों के बाद भी 2025 में सुनवाई तय हुई, जो 2026 में होगी। उन्होंने कहा 12 साल की देरी RTI तंत्र की गंभीर विफलता दिखाती है। ऑन द रिकॉर्ड बात को कोई तैयार नहीं आयोग के अफसर ऑन द रिकॉर्ड बात करने को तैयार नहीं हैं। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, एक आयुक्त प्रतिदिन 20 मामलों की सुनवाई करते हैं, लेकिन, आयुक्तों के चार में एक पद रिक्त होने से लंबित मामलों का दबाव बढ़ रहा है। पेनल्टी वसूलने के लिए आयोग के पास व्यवस्था नहीं है, यह जिम्मेदारी संबंधित विभाग पर है।


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