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सांस्कृतिक विरासत का भव्य उत्सव फिर सजने को तैयार:राजगीर महोत्सव 2025, कैलाश खेर देंगे प्रस्तुति; लगाया जा रहा है जर्मन पंडाल

बिहार की अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नगरी राजगीर एक बार फिर संस्कृति, संगीत और लोक कला के रंगों में रंगने को तैयार है। 19 से 21 दिसंबर तक अंतरराष्ट्रीय राजगीर महोत्सव का आयोजन होगा। चार दशकों की समृद्ध परंपरा को समेटे यह महोत्सव एक बार फिर देश-विदेश के पर्यटकों और कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनने जा रहा है। कैलाश खेर की ‘कैलाशा’ से होगी शुरुआत महोत्सव की पहली संध्या को सुप्रसिद्ध सूफी और बॉलीवुड के पार्श्व गायक कैलाश खेर अपनी मधुर आवाज से सजाएंगे। इसके अलावा बॉलीवुड के अन्य नामचीन कलाकारों और स्थानीय लोकगीत कलाकारों की सूची शीघ्र ही सार्वजनिक की जाएगी। सांस्कृतिक महाकुंभ की तैयारियां अंतिम चरण में स्टेट गेस्ट हाउस परिसर में भव्य पंडाल का निर्माण कार्य पूरे जोरों पर है। तीन दिवसीय इस महोत्सव में हर शाम सांस्कृतिक संध्या का आयोजन होगा, जबकि दिनभर मेला परिसर में विभिन्न गतिविधियां चलती रहेंगी। ग्रामश्री मेला, व्यंजन मेला, पुस्तक मेला, खादी ग्रामोद्योग, कुटीर एवं हस्तशिल्प स्टॉल, बच्चों के लिए झूले, फन जोन और लोक कला प्रदर्शनी महोत्सव की रौनक को कई गुणा बढ़ाने वाले हैं। जिला प्रशासन और पुलिस विभाग सुरक्षा, यातायात, स्वच्छता, मंच व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन को लेकर लगातार समीक्षा बैठकें कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि इस बार महोत्सव को यादगार बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। खजुराहो से मिली थी प्रेरणा राजगीर महोत्सव की परिकल्पना मध्य प्रदेश के विश्वप्रसिद्ध खजुराहो नृत्य महोत्सव से प्रेरित होकर की गई थी। पर्यटन विभाग का उद्देश्य राजगीर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान दिलाना था। इस महोत्सव का शुभारंभ 4 मार्च 1986 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे, राज्य शिक्षा मंत्री सुरेंद्र प्रसाद तरुण और केंद्रीय पर्यटन मंत्री एचकेएल भगत ने संयुक्त रूप से किया था। प्रथम आयोजन भारतीय नृत्य कला मंदिर और पर्यटन विकास निगम के साझा प्रयास से संपन्न हुआ था। उस समय इसे ‘राजगीर नृत्य महोत्सव’ नाम दिया गया था, जो बाद में ‘राजगीर महोत्सव’ के रूप में विख्यात हुआ। उतार-चढ़ाव भरा सफर राजगीर महोत्सव के चार दशकों के सफर में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। 1989 तक यह महोत्सव ऐतिहासिक सोन भंडार परिसर में आयोजित होता रहा, लेकिन वन क्षेत्र और दूरस्थ स्थल होने के कारण दर्शकों की संख्या घटने लगी। इसके बाद कुछ वर्षों तक आयोजन स्थगित रहा। 1995 में तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. दीपक प्रसाद की पहल पर यूथ हॉस्टल के मुक्ताकाश मंच पर महोत्सव को नए कलेवर में पुनर्जीवित किया गया। शहर से लेकर पहाड़ों तक रोशनी की सजावट ने पूरे राजगीर को जगमगा दिया। प्लाईवुड से निर्मित मुख्य प्रवेश द्वार को ऐतिहासिक स्वरूप दिया गया, जिससे महोत्सव ने नई पहचान बनाई। हेमा मालिनी से लेकर पंकज उधास तक 1997 में अभिनेत्री हेमा मालिनी की प्रस्तुति ने इस महोत्सव को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। उनके साथ सोनल मानसिंह, माधवी मुदगल और कमलिनी जैसी शास्त्रीय नृत्यांगनाओं ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। 1998 में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, अनूप जलोटा और अर्चना जोगलेकर ने महोत्सव की गरिमा को और बढ़ाया। जन-जन का उत्सव 2010 में तत्कालीन जिलाधिकारी संजय अग्रवाल के प्रयास से आयोजन स्थल को अजातशत्रु किला मैदान में स्थानांतरित किया गया। सभी गतिविधियों को एक परिसर में समेटकर महोत्सव को मेले का स्वरूप दिया गया, जिससे यह सभी वर्गों के लिए सुलभ हो सका। इसी दौर में भोजपुरी गायकों को भी मंच मिला और कृषि मंडप, व्यंजन मेला, युवा उत्सव जैसी गतिविधियां जुड़ीं। राजगीर महोत्सव के मंच पर समय-समय पर शान, जसविंदर नरुला, अलका याग्निक, सुखविंदर सिंह, विनोद राठौड़, अदनान सामी, उदित नारायण और गजल सम्राट पंकज उधास जैसे दिग्गज कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। कोरोना काल में 2020-21 में आयोजन स्थगित रहने के बाद 2022 से महोत्सव ने फिर गति पकड़ी। हाल के वर्षों में 2022 में शान और ममता शर्मा, 2023 में जावेद अली, 2024 में जुबिन नौटियाल और मैथिली ठाकुर ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।


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