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सहरसा में 10 दिवसीय तबला कार्यशाला खत्म:बच्चों ने शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी, डॉ. अभिषेक तुषार ने दिया प्रशिक्षण

शिक्षा विभाग द्वारा स्थापित बिहार बाल भवन, सहरसा के देखरेख में आयोजित 10 दिवसीय तबला कार्यशाला का समापन मंगलवार की शाम 5 बजे उत्साह और सांस्कृतिक गरिमा के साथ संपन्न हो गया। यह कार्यशाला 13 दिसंबर से प्रारंभ हुई थी, जिसका उद्देश्य बच्चों के सर्वांगीण विकास, सांस्कृतिक चेतना के संवर्धन तथा उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा से परिचित कराना था। कार्यशाला के दौरान जिले के विभिन्न विद्यालयों और क्षेत्रों से आए संगीत में रुचि रखने वाले बच्चों ने सक्रिय सहभागिता की। पूरे दस दिनों तक बाल भवन परिसर में तबले की थाप, रियाज़ की गूंज और बच्चों के अनुशासित अभ्यास का माहौल बना रहा। बनारस घराने के डॉ. अभिषेक तुषार ने दिया प्रशिक्षण इस विशेष कार्यशाला में बनारस घराने के प्रसिद्ध तबला वादक एवं संगीतज्ञ डॉ.अभिषेक तुषार ने बतौर विशेषज्ञ प्रशिक्षक बच्चों को प्रशिक्षण प्रदान किया। डॉ.तुषार ने अपनी प्रारंभिक तालीम तबला सम्राट पंडित शारदा सहाय से प्राप्त की है और वर्तमान में पंडित संजू सहाय से उच्च स्तर की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनकी गहन शास्त्रीय समझ, समृद्ध अनुभव और सरल व प्रभावशाली शिक्षण शैली ने बच्चों को गहराई से प्रभावित किया। बच्चों ने न केवल तबला वादन की तकनीक सीखी, बल्कि शास्त्रीय संगीत के प्रति सम्मान और लगाव भी विकसित किया। मूल बोलों से लेकर जटिल तिहाइयों तक का अभ्यास प्रशिक्षण के दौरान बच्चों को तबला वादन के मूल बोला, ‘ना’, ‘ता’, ‘धा’, ‘तिन’, ‘धिन’, ‘धागे’ की शुद्धता, स्पष्टता और लयबद्धता पर विशेष ध्यान दिलाया गया। इसके साथ ही विभिन्न कायदे, उनके पल्टे, ताल के अनुसार विस्तार और प्रस्तुति की विधियों को व्यावहारिक रूप से सिखाया गया। कार्यशाला में बच्चों को दमदार, वैदमदार और चक्रदार तिहाइयों का अभ्यास कराया गया। इसके अलावा परन की संरचना, उसकी गति और प्रभावशाली प्रस्तुति पर भी विशेष प्रशिक्षण दिया गया। इससे बच्चों के तालबोध, हाथों की सफाई और आत्मविश्वास में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली। ‘तबला केवल वाद्य नहीं, व्यक्तित्व निर्माण का माध्यम’ डॉ. अभिषेक तुषार ने बच्चों को यह समझाया कि तबला केवल एक वाद्य यंत्र नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, साधना और धैर्य का माध्यम है। उन्होंने कहा कि नियमित रियाज़ न केवल संगीत में निपुणता लाता है, बल्कि जीवन में भी संयम और एकाग्रता विकसित करता है। उन्होंने बच्चों को प्रेरित करते हुए कहा कि यदि वे निरंतर अभ्यास और समर्पण के साथ आगे बढ़ें, तो वे भविष्य में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं। समापन समारोह में बच्चों की शानदार प्रस्तुति कार्यशाला के समापन अवसर पर एक भव्य सांस्कृतिक समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें बच्चों ने मंच पर कार्यशाला के दौरान सीखी गई विधाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति दी। बच्चों के तालबद्ध वादन और आत्मविश्वास से भरी प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अभिभावकों और अतिथियों ने बच्चों की मेहनत और प्रगति की खुलकर सराहना की और तालियों से उनका उत्साह बढ़ाया। प्रबुद्ध अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.आरती, डॉ.गिरिधर श्रीवास्तव, प्रो.गौतम सिंह, शैलेन्द्र नारायण सिंह और विजय कुमार वर्मा उपस्थित रहे। अतिथियों ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएं बच्चों की रचनात्मक क्षमता को निखारने के साथ-साथ उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। बाल भवन की पहल की सराहना अतिथियों और अभिभावकों ने बिहार बाल भवन सहरसा द्वारा आयोजित इस कार्यशाला की सराहना करते हुए कहा कि आज के डिजिटल और व्यस्त दौर में बच्चों को शास्त्रीय संगीत से जोड़ना एक सराहनीय प्रयास है। इससे बच्चों का मानसिक विकास होता है और वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। सांस्कृतिक चेतना को मजबूत करने की दिशा में पहल यह 10 दिवसीय तबला कार्यशाला न केवल संगीत प्रशिक्षण तक सीमित रही, बल्कि यह बच्चों के व्यक्तित्व विकास, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक चेतना को मजबूत करने का भी सशक्त माध्यम बनी। आयोजन ने यह संदेश दिया कि यदि बच्चों को सही मंच और मार्गदर्शन मिले, तो वे कला और संस्कृति के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। कार्यशाला के सफल समापन के साथ ही बिहार बाल भवन द्वारा भविष्य में भी इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की उम्मीद जताई गई है, ताकि जिले के अधिक से अधिक बच्चे अपनी प्रतिभा को पहचान सकें और निखार सकें।


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