सहरसा के मैना गांव के 32 साल मो. आलम ने सिंघाड़ा की खेती में सफलता हासिल की है। उन्होंने अपने दिवंगत पिता के छोटे स्तर पर किए जा रहे इस काम को आगे बढ़ाया और आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग कर इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आलम अब क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं। मैट्रिक पास मो. आलम ने शुरुआत में केवल 3 एकड़ भूमि पर सिंघाड़ा की खेती की थी। अपने अनुभव, तकनीकी ज्ञान और कड़ी मेहनत से उन्होंने अब इसे 25 एकड़ तक फैला दिया है। उनके अनुसार, एक एकड़ सिंघाड़ा की खेती में लगभग 10 हजार रुपए की लागत आती है और इससे करीब 10 क्विंटल उत्पादन होता है। बाजार में अच्छी मांग के कारण प्रति एकड़ लगभग 40 हजार रुपए की आय होती है। इस प्रकार, वे तीन महीने के सीजन में लगभग 10 लाख रुपए तक कमा लेते हैं। लीज पर जमीन लेकर खेती का विस्तार किया शुरुआती दिनों में उन्हें कुछ लोगों के उपहास का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। भूमि की कमी के बावजूद, उन्होंने लीज पर जमीन लेकर खेती का विस्तार किया। अब वे बंजर या कम उपजाऊ भूमि पर भी सफलतापूर्वक सिंघाड़ा उगा रहे हैं। उनकी सफलता से प्रेरित होकर गांव के कई युवा अब कृषि की ओर लौट रहे हैं और सिंघाड़ा सहित अन्य फसलों की खेती में रुचि ले रहे हैं। 400-500 रुपए की दैनिक मजदूरी पर काम कर रहे मो. आलम ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधारी है, बल्कि गांव के लगभग 20 युवाओं को रोजगार भी प्रदान किया है। जिन मजदूरों को पहले दिल्ली-पंजाब जैसे शहरों में दिहाड़ी मजदूरी के लिए जाना पड़ता था, वे अब गांव में ही 400-500 रुपए की दैनिक मजदूरी पर काम कर रहे हैं। काम कर रहे मजदूर मोहम्मद शमशाद बताते हैं कि पहले अन्य प्रदेश में मजदूरी के लिए जाना होता था। लेकिन अब गांव में ही रोजगार मिलने से परिवार में भी सभी लोग खुश रहते हैं। व्यापारी सीधे उनके घर से सिंघाड़ा खरीदते हैं, जिससे उन्हें बाजार तक ले जाने की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।
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